एनबीएफसी ने की लिक्विडिटी दिक्कतों को खत्म करने की सिफारिश
मुम्बई, 16 जून (हि.स.)। केंद्र में मोदी सरकार के दूसरे कार्याकल के गठन बाद केंद्रीय बजट की तैयारी जोर-शोर से चल रही है। बैंकिंग सेक्टर और कैपिटल मार्केट के साथ ही कॉर्पोरेट सेक्टर व रियल इस्टेट से जुड़े प्रतिनिधियों ने भारत सरकार के वित्त मंत्रालय को अपने सुझाव भेज दिए हैं। वित्तीय सेक्टर ने बजट में सबसे ज्यादा जोर ग्रोथ पर फोकस करने पर दिया है, जबकि बैंकों के प्रतिनिधियों ने इंफ्रास्ट्रक्चर, रियल एस्टेट, एमएसएमई और एक्सपोर्ट सेक्टर की ग्रोथ बढ़ाने की सुझाव दिया है। एनबीएफसी के प्रतिनिधियों ने बजट में इस सेक्टर की लिक्विडिटी दिक्कतों को खत्म करने की सिफारिश करते हुए ठोस कदम उठाए जाने की मांग रखी है। हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों की तरह एनबीएफसी के लिए भी रिफाइनेंस विंडो बनाने की मांग की गई है। ऑटो इंडस्ट्री के प्रतिनिधियों ने भी मंदी की चपेट में आए उद्योग के लिए राहत पैकेज की मांग की है।
विनिर्माण सेक्टर की समस्या दूर करे सरकार
भारतीय वाणिज्य एंव उद्योग मंडल (एसोचेम) और ट्रेड प्रमोशन काउंसिल ऑफ इंडिया (टीपीसीआई) की ओऱ से कहा गया है कि सरकार को निर्यात इंडस्ट्रीज को प्रोत्साहित करने के लिए लिक्विडिटी (तरलता) और विनिर्माण सेक्टर की समस्या को जल्द से जल्द खतम करने पर जोर देना चाहिए। टीपीसीआई ने इसके साथ ही कृषि संकट से निपटने के लिए कृषि निर्यात और खाद्य प्रसंस्करण पर ध्यान देने की अपील की है।
कॉर्पोरेट टैक्स को घटाने की मांग
कॉर्पोरेट सेक्टर ने कहा है कि कॉर्पोरेट टैक्स को साल 2015 में घटाकर 25 फीसदी करने की घोषणा की गई थी, लेकिन मौजूदा सरकार ने इसे बढ़ाकर 30 फीसदी कर दिया है। 250 करोड़ रुपये का सालाना कारोबार करनेवाली कंपनियों के लिए 30 फीसदी का कॉर्पोरेट टैक्स एक बड़ी बाधा बन कर उभर रहा है। कॉर्पोरेट कर में 5 फीसदी की कटौती करने की मांग की गई है। कॉर्पोरेट टैक्स घटाए जाने से भारत सरकार को विनिवेश को आकर्षित करने में भी मदद मिलेगी। उद्योग मंडल एसोचैम ने भी बजट में कंपनी कर को घटाने के साथ ही व्यक्तिगत आयकर दरों में कटौती तथा छूट सीमा बढ़ाने की मांग की है।
इन्फ्रा सेक्टर को दें राहत पैकेज
बुनियादी ढांचागत सेक्टर के लिए भी सरकार से राहत पैकेज की मांग की गई है। इसके साथ ही उत्पाद विकास (प्रो़डक्शन डेवलपमेंट टैक्स) कर और अनुसंधान एवं विकास पर लगनेवाले कर में कटौती की मांग की गई है। आर एंड डी को उत्पाद विकास और इसकी वैल्यू चेन (मूल्य श्रृंखला) सिस्टम के तहत शामिल करने की मांग रखी गई है। इससे निर्यात क्षेत्र के लिए एक समान कर लाभ का अवसर मिल सकेगा। नए उत्पादों के साथ ही मौजूदा उत्पादों के डिजाइन, निर्माण और विपणन की पूरी प्रक्रिया को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता पर जोर दिया गया है। फर्नीचर और इलेक्ट्रिकल सेक्टर्स को भी प्रोत्साहित करने की मांग की गई है।
ऑटो सेक्टर पर एसटी की दर घटाएं
ऑटो सेक्टर ने भी कहा है कि इस साल ऑटो सेक्टर बुरे दौर से गुजर रहा है। कई दिग्गज कंपनियों को भारी नुकसान हुआ है। सरकार को जल्द ही राहत पैकेज घोषित करना चाहिए। ऑटो सेक्टर ने मौजूदा जीएसटी की दर 28 फीसदी को घटाकर 18 फीसदी करने की मांग की है। सर्विस सेक्टर की ओऱ से एकीकृत गुड्स और सेवा कर (आईजीएसटी) के दायरे को बढ़ाने के साथ ही सेस कॉम्पेनसेशन को 31 मार्च, 2020 तक बढ़ाने की मांग की गई है। निर्यात प्रोत्साहन योजनाओं के तहत सामान खरीद के लिए क्षतिपूर्ति उपकर छूट का लाभ देने की नीति में भी संशोधन करने की सिफारिश की गई है।
एमएसएमई को ब्याज सबवेंशन का लाभ दें
उद्योग ने अग्रिम प्राधिकरण योजना (एडवांस ऑथराइजेशन स्कीम), ईपीसीजी योजना और ईओयू योजना को भी मजबूती से लागू करने की मांग की है। विदेशों में भी विनिर्माण संयंत्र स्थापित करने में सरकार को सहायता देने की अपील की गई है। भारतीय कंपनियों को अपने विदेशी कारखानों की पूरी क्षमता का दोहन करने के लिए टैरिफ और व्यापार रियायतों, सस्ते श्रम, पूंजीगत सब्सिडी, व्यापार समझौते के लाभ और कम रसद लागत का लाभ भी मिलना चाहिए। चीनी कंपनियां भी अफ्रीकी देशों और लैटिन अमेरिकी देशों में विशेष रूप से एमएसएमई के लिए इसी तरह के प्रयास कर रही हैं। एमएसएमई सेक्टर के लिए ब्याज सबवेंशन का विस्तार करने की मांग भी की गई है। इंफ्रा और लॉजिस्टिक्स सेक्टर की कंपनियों ने निवेशकों को आकर्षित करने के लिए सरकार से रियायत की मांग की है। इन्फ्रा और लॉजिस्टिक चेन में कम से कम पांच साल का कर छूट का लाभ देने की मांग की गई है।