बीएसएफ के लिये बड़ी चुनौती चुनावी मौसम में घुसपैठ रोकना
कोलकाता, 23 मार्च (हि.स.)। पश्चिम बंगाल का 2217 किलोमीटर सीमा क्षेत्र बांग्लादेश से लगा हुआ है। चुनावी मौसम में घुसपैठ अहम मुद्दा बना हुआ है। ऐसे में सीमा पर खड़ी बीएसएफ राजनीतिक दलों के लिए पंचिंग बैग बन गई है। अभी कुछ दिनों पहले ही सत्तारूढ़ पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने आरोप लगाया था कि बीएसएफ के जवान सीमा पर बसे गांव वालों को डरा धमका कर भाजपा के पक्ष में मतदान के लिए दबाव बना रहे हैं। हालांकि इसके तत्काल बाद बीएसएफ ने सफाई दी थी और कहा था कि उनका राजनीति से कोई लेना-देना नहीं। चुनाव आयोग ने भी इस मामले में सख्ती बरती थी और स्पष्ट कर दिया था कि बिना आधार इस तरह के आरोप नहीं लगने चाहिये
इधर केंद्र की सत्ता पर आरूढ़ भाजपा प्रत्यक्ष तौर पर बीएसएफ के खिलाफ कोई आरोप भले ही नहीं लगाती लेकिन पार्टी के नेता चुनावी भाषण में दावे करते हैं कि ममता बनर्जी को वोट देने के लिए बांग्लादेश से लोग आते हैं। भले ही यह सीधे तौर पर बीएसएफ पर हमला नहीं पर सवाल तो उठता ही है कि आखिर सीमा पर खड़ी बीएसएफ इसे रोकने में विफल क्यों है? भाजपा का इस बार चुनाव में मुख्य मुद्दा बंगाल से घुसपैठ खत्म करना और घुसपैठियों को बाहर भगाना है। इसे लेकर सत्तारूढ़ पार्टी लगातार सवाल पूछ रही है कि आखिर सीमा पर खड़ी आपकी बीएसएफ क्या करती है कि घुसपैठ नहीं रुक रही?
सीमा क्षेत्रों में बांग्लादेशी मतदाता निभाते हैं निर्णायक भूमिका
राज्य के सीमावर्ती इलाकों में बांग्लादेशियों द्वारा मतदान में भाग लेना एक जमीनी हकीकत है। चुनाव की घोषणा होने के बाद केंद्रीय खुफिया एजेंसी रॉ ने अलर्ट जारी किया था कि मतदान में बांग्लादेशी मतदाता मताधिकार का इस्तेमाल करेंगे।
बीएसएफ के एक उच्च पदस्थ सूत्र ने “हिन्दुस्थान समाचार” को इस बारे में जानकारी देते हुए बताया कि भारत-बांग्लादेश सीमा पर करीब 70 से 80 गांव ऐसे हैं जो जीरो लाइन पर बसे हुए हैं। जीरो लाइन वह बिंदु है जहां से दोनों ही देशों की सीमा शुरू होती है। खास बात यह है कि जहां भारत और पाकिस्तान की सीमा है वहां करीब एक से दो किलोमीटर का क्षेत्र ऐसा है जो जन शून्य रखा जाता है। लेकिन बांग्लादेश सीमा पर स्थिति ऐसी नहीं है। यहां सीमा का बंटवारा ऐसा हुआ है कि लोगों के घरों से सीमा रेखा गुजरती है। मतलब कहीं-कहीं ऐसे भी क्षेत्र हैं जहां घर का आधा हिस्सा भारत में तो आधा बांग्लादेश में है और फेंसिंग नहीं होने की वजह से यहां रह रहे लोगों को अलग करना संभव नहीं। उक्त अधिकारी ने बताया कि भारत-बांग्लादेश सीमा पर ऐसे हजारों लोग रहते हैं जो रहते बांग्लादेश में हैं लेकिन उनका खेत भारत में है, या रहते भारत में हैं और उनका खेत बांग्लादेश में है। हजारों ऐसे लोग हैं जिन्होंने बंटवारे के बाद सीमा क्षेत्रों में जमीन मकान खरीदे और शादी वगैरह करके रहने लगे। उनका भारत में भी निवास दस्तावेज है और बांग्लादेश में भी। ऐसे लोग जब सीमा पर पकड़े जाते हैं तो भारतीय सीमा रक्षक बलों को भारत का दस्तावेज दिखाते हैं और बांग्लादेश सीमा रक्षक बलों को बांग्लादेश का। यानी सीमा पर बसे केवल 70 से 80 गांव का ही आंकड़ा लें तो हजारों ऐसे लोग हैं जो मूल रूप से बांग्लादेश के रहने वाले हैं लेकिन उनके पास भारत का वोटर कार्ड, आधार कार्ड, पैन कार्ड और अन्य पहचान संबंधी दस्तावेज है। इसकी वजह यह है कि भारत में उनकी जमीन, खेती-बाड़ी बाड़ी है और जब भी यहां चुनाव आता है तो वे मतदान करने पहुंच जाते हैं। क्योंकि इनके पास भारत का वैध दस्तावेज होता है इसलिए बीएसएफ इन्हें रोक नहीं सकती है। बीएसएफ अधिकारियों का कहना है कि अगर इस पर रोक लगाना है तो इसके लिए भारत-बांग्लादेश सीमा पर फेंसिंग की नितांत आवश्यकता है।
चुनाव के समय सीमा पर तैनाती कम होने से और बढ़ती है घुसपैठ
एक समस्या यह भी है कि चुनाव के समय भाजपा भले ही आरोप लगाती है कि बांग्लादेश में मतदाता ममता बनर्जी (तृणमूल) के पक्ष में मतदान करते हैं। लेकिन इन्हें रोकने के लिए केंद्रीय स्तर पर जो कदम उठाया जाना चाहिए उसमें ढिलाई बरती जाती है। बीएसएफ के एक अन्य सूत्र ने बताया कि अगर वास्तव में बांग्लादेश से घुसपैठ रोकनी है तो सीमा पर तैनाती को और चौकस किया जाना चाहिए। चुनाव के समय भारत-बांग्लादेश सीमा पर तैनात बीएसएफ की टुकड़ी को हटाकर चुनावी ड्यूटी में लगा दिया जाता है। इसकी वजह से घुसपैठ बढ़ जाता है। इस बार भारत बांग्लादेश की सीमा से कुल 72 कंपनी बीएसएफ टुकड़ियों को चुनावी ड्यूटी में लगाया गया है। इसकी वजह से सीमा पर बीएसएफ की ताकत काफी कम हो जाती है और घुसपैठियों को रोकना मुश्किल होता है। इसके अलावा सीमा क्षेत्रों में लोग मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं। सीमावर्ती गांव की पूरी आबादी तस्करी में लिप्त रहती है और घात लगाकर इन्हें पकड़ने की कोशिश करने वाले बीएसएफ जवानों पर जानलेवा हमला करने से भी बाज नहीं आते। बीएसएफ के एक अधिकारी ने नाम उजागर नहीं करने की शर्त पर बताया कि चुनाव के समय अगर वाकई में बांग्लादेश से घुसपैठ को रोकना प्राथमिकता होनी चाहिए तो कायदे से भारत-बांग्लादेश सीमा पर तैनात बीएसएफ जवानों को चुनावी ड्यूटी में नहीं लगाया जाना चाहिए।
उक्त अधिकारी ने कहा कि अगर कोई दूसरा देश हमारे देश में सीमा से महज दो मीटर आगे भी आकर डेरा डाल दे तो इसे कब्जा माना जाता है जबकि हकीकत यह है कि करोड़ों की संख्या में बांग्लादेशी घुसपैठिए पश्चिम बंगाल और भारत के अन्य हिस्सों में घुस चुके हैं, जमीन खरीद चुके हैं, शहर बसा चुके हैं और रह रहे हैं। यह बेहद गंभीर हैं और राष्ट्र के प्रति घोर खतरा। कोई भी विदेशी दूसरे देश के प्रति वफादार नहीं हो सकता और मुश्किल वक्त में देश साबित हो सकता है।”