हमीरपुर, 15 जून (हि.स.)। केन्द्रीय राज्यमंत्री साध्वीं निरंजन ज्योति के पैतृक गांव पत्यौरा में उनके परिजन आज भी परिवार के भरण के लिये मेहनत और मजदूरी करते है। मंत्री के भाई और भाभी बड़े ही सादगी के साथ रहते है। इनके रिहायशी घर भी कच्चे बने हैं। इसके बावजूद इन लोगों में गजब का उत्साह देखा जा रहा है। छोटा भाई राज मिस्त्री है तो बड़ा भाई खेती किसानी के साथ मेहनत मजदूरी करता है। भाभी भी बिना किसी शर्म के साथ तीन सौ रुपये की दिहाड़ी मजदूरी के लिये फावड़े चलाती है। वह ईंटें भी उठाती है।
साध्वीं निरंजन ज्योति हमीरपुर जनपद के सुमेरपुर थाना क्षेत्र के पत्यौरा गांव की रहने वाली है। दोबारा केन्द्रीय मंत्री बनने के बाद भी इन्होंने अपने परिवार और समाज के लिये एक समान व्यवहार रखा। उनके दो भाई और परिवार के लोग आज भी गांव में एक सामान्य जीवन जी रहे है। बड़ा भाई राजेन्द्र के पास एक दो बीघा जमीन है। ये खेती किसानी के साथ मेहनत मजदूरी करता है। छोटा भाई रमेश कुमार परिवार को अच्छा जीवन देने के लिये आज भी राज मिस्त्री का काम करता है। वह पांच सौ रुपये की दिहाड़ी मजदूरी में लोगों के मकान बनाता है। जबकि इसकी पत्नी तीन सौ रुपये में मजदूरी करती है। तपती धूप में ये फावड़े भी चलाती है। तो ईंटों को उठाकर एक जगह से दूसरी जगह रखती है।
इधर केन्द्रीय मंत्री के करीबी अशोक कुमार उर्फ गुरु ने सोमवार को बताया कि मंत्री साध्वीं का परिवार गरीब है जो सिर्फ मेहनत मजदूरी करके परिवार को अच्छा जीवन दे रहा है। उन्होंने कहा कि ये परिवार किसी के सामने हाथ भी नहीं फैलाये है। बिना शर्म के दिन भर मजदूरी करते है।
भाई के पुत्रों के लिये अब मददगार बनी साध्वीं
रमेश कुमार ने बताया कि बड़ा पुत्र शिव वीर मंत्री के यहां रहकर नौकरी कर रहा है। वहीं बड़े भाई राजेन्द्र का एक पुत्र मंत्री के यहां रह रहा है। मंझला पुत्र सतीश इन्टरमीडियेट की पढ़ाई करता है। सबसे छोटा पुत्र शशिकांत गांव में ही प्राइमरी स्कूल में कक्षा चार में पढ़ता है। केन्द्रीय मंत्री के तीन भाईयों में बड़े की मौत हो चुकी है। ये रेलवे विभाग में काम करता था। अब उसका पुत्र नौकरी कर रहा है। मंत्री के दोनों भाईयों के घर आज भी कच्चे बने है। रमेश के मकान में कुछ हिस्सा जरूर पक्का हो गया है।
लाकडाउन में पाई-पाई को मोहताज हुआ परिवार
केन्द्रीय मंत्री साध्वीं निरंजन ज्योति के भाई रमेश कुमार ने बताया कि कोरोना वायरस महामारी को लेकर लाकडाउन में बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ी है। ढाई महीने का बुरा वक्त पूरे परिवार को भुगतना पड़ा है। उन्होंने बताया कि प्रतिदिन मेहनत मजदूरी से आठ सौ रुपये मिलते थे लेकिन ढाई महीने में पचास हजार रुपये से अधिक की आमदनी का नुकसान उठाना पड़ा है। बुरा वक्त खत्म हो गया है। काम धंधा भी पहले की तरह शुरू हो गया है। उसने कहा कि मेहनत से पैसा कमाने से सुख मिलता है।