नई दिल्ली, 02 अक्टूबर (हि.स.)। पूर्वी लद्दाख क्षेत्र में चीन सीमा के करीब सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) निकट भविष्य में 1500 किलोमीटर और सड़कों का निर्माण करेगा। बीआरओ यहां पहले से ही खुद की बनाई हुई 5000 किलोमीटर सड़क का रखरखाव कर रहा है। यह परियोजनाएं क्षेत्र में पर्यटन को बढ़ावा देने, सशस्त्र बलों की अभियानगत तैयारियां बढ़ाने, स्थानीय लोगों को रोजगार प्रदान करने तथा लद्दाख क्षेत्र की सामाजिक-आर्थिक स्थिति मजबूत करने की दिशा में अहम भूमिका निभाएंगी।
बीआरओ के महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल राजीव चौधरी के मुताबिक लद्दाख प्रशासन और सीमा सड़क संगठन के बीच 03 सितंबर 2021 को पहाड़ी क्षेत्र में कनेक्टिविटी के लिए सड़कों और सुरंगों का निर्माण करने के सम्बंध में एक करार हुआ था। इसके तहत केंद्रशासित प्रदेश लद्दाख में कई परियोजनाएं बीआरओ को सौंपी गईं हैं। इनमें से पांच परियोजनाएं उपराज्यपाल राधाकृष्ण माथुर ने भारत के सबसे उत्तरी गांव तुरतुक से शुरू की हैं। इन परियोजनाओं में ग्रीनफील्ड एलाइनमेंट की तैयारी और प्रमुख सिंगल लेन सड़कों को डबल-लेन में अपग्रेड करने के साथ ही टनलिंग का कार्य शामिल हैं।
उन्होंने बताया कि पूर्वी लद्दाख क्षेत्र में बीआरओ पहले से ही खुद की बनाई हुई 5000 किलोमीटर सड़क का रखरखाव कर रहा है और निकट भविष्य में 1500 किलोमीटर और सड़कों का निर्माण करेगा। इनमें लगभग 26.6 किलोमीटर लंबी हनुथांग-हैंडनब्रोक-जुंगपाल-तुर्तुक सड़क का निर्माण करके हनुथांग-हैंडनब्रोक (सिंधु घाटी) और ज़ुंगपाल-तुर्तुक (श्योक घाटी) को जोड़े जाने की योजना है। यह संपर्क मार्ग ख़तरनाक खारदुंगला दर्रे को पार किए बिना यात्रा के समय को मौजूदा नौ घंटे से घटाकर साढ़े तीन घंटे कर देगा। उन्होंने बताया कि बीआरओ पर्यटकों और मोटर चालकों की सुरक्षा के लिए एलईडी आधारित कर्ब स्टोन और अन्य पर काम कर रहा है।
इसके अलावा 4 अन्य प्रमुख सिंगल लेन सड़कों का उन्नयन भी शुरू हो गया है। इनमें 50 किमी. लम्बी कारगिल से डुमगिल सड़क है जिसमें कारगिल से बटालिक तक निर्बाध संपर्क सुनिश्चित करने के लिए हंबोटिंगला में एक सुरंग का निर्माण भी होगा। पूर्वी लद्दाख में ही 78 किमी. लम्बी खालसे से बटालिक, 70 किमी. लम्बी खालसर से श्योकविया अघम और 31 किमी. लम्बी तंगसे से लुकुंग तक की सड़क भी इसी परियोजना में शामिल है। इन सभी सड़कों का इस्तेमाल पर्यटन स्थलों जैसे हुंदर (नुब्रा घाटी), तुर्तुक गांव, श्योक, पैन्गोंग झील और दाह, गरकोन दारचिक आदि तक पहुंचने के लिए किया जाता है।