सेना के बहादुरों को मिलेंगे ‘असली पदक’अब 12 साल बाद

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आखिरकार 2008 के बाद खरीदे गए 17.27 लाख ‘वास्तविक’ सेवा पदक अब तक वर्दी पर लगाये जा रहे थे स्थानीय बाजारों के डुप्लीकेट मेडल 



नई दिल्ली, 24 मार्च (हि.स.)। अब सेना के जवानों और अधिकारियों को बहादुरी के लिए ‘असली पदक’ मिलेंगे। 12 साल बाद ऑर्डर किये गए 17.27 लाख सेवा पदकों की आपूर्ति सेना को मिलनी शुरू हो गई है। दरअसल रक्षा मंत्रालय ने एक दशक से पदकों की खरीद प्रक्रिया ठंडे बस्ते में डाल रखी थी। इस वजह से भारतीय सैनिकों की वर्दी पर लगाये जाने वाले पदक स्थानीय बाजारों से डुप्लीकेट खरीदे जा रहे थे। अब वे सैनिक भी अपनी वर्दी पर गर्व के साथ असली सेवा पदक लगा सकेंगे, जो अब तक डुप्लीकेट मेडल लगाकर सेना की शान बढ़ा रहे थे। 
 
स्वतंत्रता के बाद पहले तीन वीरता पुरस्कारों परमवीर चक्र, महावीर चक्र और वीर चक्र को भारत सरकार ने 26 जनवरी, 1950 को स्थापित किया था। इन पुरस्कारों को 15 अगस्त, 1947 से प्रभावी माना गया था। इसके बाद अन्य तीन वीरता पुरस्कारों अशोक चक्र वर्ग- I, अशोक चक्र वर्ग- II और अशोक चक्र वर्ग- III को भारत सरकार ने 4 जनवरी, 1952 को स्थापित किया लेकिन इन्हें भी 15 अगस्त, 1947 से प्रभावी माना गया। इन पुरस्कारों को जनवरी 1967 में क्रमशः अशोक चक्र, कीर्ति चक्र और शौर्य चक्र नाम दिया गया। इनमें से वीरता पुरस्कार सीधे सशस्त्र बलों के सर्वोच्च कमांडर यानी भारत के राष्ट्रपति के हाथों हर साल गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस पर आयोजित होने वाले समारोह में दिए जाने की परंपरा है।
 
रक्षा मंत्रालय के अधीन पदक विभाग पर मूल पदक जारी करने की जिम्मेदारी है लेकिन 2008 से यह खरीद प्रक्रिया ठप पड़ी थी। यही वजह है कि 12 साल से विभाग ने एक भी पदक जारी नहीं किया है। पिछले 12 वर्षों से गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस पर सम्मानित होने वाले सैनिकों और अधिकारियों की वर्दी पर डुप्लीकेट पदक ही लगाये जा रहे थे। यह डुप्लीकेट पदक स्थानीय तौर पर गोपीनाथ बाजार (दिल्ली छावनी) से खरीदे जा रहे थे। इस अवधि में विभिन्न प्रकारों के लगभग 14.5 लाख डुप्लीकेट पदक खरीदे गए हैं। कुछ युवा अधिकारियों को मंत्रालय द्वारा पदक जारी किए जाने की प्रक्रिया के बारे में भी जानकारी नहीं है, इसलिए वह बाजार से खरीदे गए पदक ही शान के साथ वर्दी पर लगा रहे हैं। 
 
लगातार 12 साल से पदकों की खरीद न होने पर डिफेंस फाइनेंस विंग ने आपत्ति जताई, जिस पर रक्षा मंत्रालय को 17 प्रकार के पदकों के लिए टेंडर जारी करना पड़ा। इसके बाद सेना ने पिछले साल अक्टूबर में 13 करोड़ रुपये से अधिक की लागत से 17 विभिन्न किस्म के 17.27 लाख वास्तविक सेवा पदक खरीदने का आदेश दिया। इसके बाद रक्षा मंत्रालय (सेना) के एकीकृत मुख्यालय ने 17.27 लाख सर्विस मेडल की खरीद का अनुबंध एक कंपनी से किया, जिसकी आपूर्ति अब शुरू हुई है। अगस्त तक सभी पदकों की आपूर्ति सेना को कर दी जाएगी। सेना ने इतनी बड़ी संख्या में विभिन्न प्रकार के पदक इसलिए खरीदें हैं ताकि पिछले वर्षों में दिए गए डुप्लीकेट पदकों को इन असली पदकों से बदला जा सके। साथ ही भविष्य में असली पदकों से ही बहादुर सैनिकों और सैन्य अधिकारियों को सम्मानित किया जा सके। 
सूत्रों का कहना है कि इनमें उन जवानों और अधिकारियों की भी बड़ी संख्या है, जो इन 12 साल के दौरान डुप्लीकेट पदक पाकर सेवानिवृत्त भी हो चुके हैं। ऐसे लोगों से पुराने पदक वापस लेकर नए दिए जाने की योजना है। दरअसल आधिकारिक तौर पर जारी किये जाने वाले असली मेडल में इसे पाने वाले का नाम और उसका सर्विस नंबर लिखा होता है लेकिन अब तक दिए जा रहे डुप्लीकेट पदकों में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं थी। यानी सिर्फ खानापूरी के लिए दिए जा रहे सेवा पदक महज वर्दी की शोभा बन रहे थे। अब वीरता, प्रतिष्ठित सेवा पुरस्कार, प्रशंसा, लंबी सेवा के लिए कर्मियों को दिए जाने वाले पदकों में उनके नाम के साथ ही सेवा संख्या का भी उल्लेख होगा, जिसे वे गर्व के साथ अपनी वर्दी पर लगा सकेंगे।
 
सूत्रों का कहना है कि इस दौरान सियाचिन ग्लेशियर पदक और उच्च-योग्यता वाले पदक से लेकर सैनिक सेवा पदक और 9 वर्ष की लंबी सेवा वाले पदकों की कमी रही है लेकिन हर साल दिए जाने वाले प्रमुख वीरता पदक, परम वीर चक्र (शांति काल में अशोक चक्र), महा वीर चक्र (कीर्ति चक्र) और वीर चक्र (शौर्य चक्र) वास्तविक दिए गए हैं। सैनिकों का मनोबल बढ़ाने के लिए दिया जाने वाला सेवा पदक भी महत्वपूर्ण हैं क्योंकि सभी को वीरता पदक से सम्मानित नहीं किया जा सकता है। एक ऑपरेशन में कई लोग भाग लेते हैं लेकिन कुछ को ही वीरता पदक दिया जाता है। ऐसे में वास्तविक ‘सेवा पदक’ भी वर्दी पर उसी गर्व के साथ लगना चाहिए जितना वीरता पदक। 
 
भारतीय सेना ने अपने एक अधिकारिक बयान में कहा है कि रक्षा मंत्रालय (सेना) के एकीकृत मुख्यालय ने कुल 17.27 लाख सर्विस मेडल की खरीद का अनुबंध किया है। इस खरीद ने भारतीय सेना को सेवा पदकों की उन सभी बकाया मांगों को पूरा करने में सक्षम बनाया है, जो भारतीय सेना में सेवा कर चुके हैं या कर रहे हैं।
 

 


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