बोरदोलोई का अक्स ढूंढ़ते हैं लोग असम चुनाव में
गुवाहाटी, 08 मार्च (हि.स.) । लोग आते हैं, फिर चले जाते हैं। बस, रह जाते हैं तो उनके अच्छे-भले काम। इसी दृष्टि से देखें तो बीते 73 सालों में असम की जनता ने कुल 14 मुख्यमंत्रियों को देखा है। उनमें एक नाम है गोपीनाथ बोरदोलोई का। वे असम के पहले मुख्यमंत्री थे।
बोरदोलोई की पहचान गांधीवादी राजनेता की थी। बेहद सामान्य जीवन जीने वाले गोपीनाथ बोरदोलोई दूरदर्शी राजनेता थे। कुछ इतिहासकारों का दावा है कि बोरदोलोई की दूरदर्शिता का ही नतीजा है कि आज असम भारत का हिस्सा है। विभाजन के समय असम को इच्छा के अनुरूप भारत या फिर पाकिस्तान में मिलने की छूट थी। लेकिन, गोपीनाथ बोरदोलोई ने सरदार वल्लभ भाई पटेल से मिलकर असम को भारत में विलय करने का निर्णय लिया।
आजादी के बाद विधानसभा का चुनाव हुआ तो गोपीनाथ बोरदोलोई असम के कामरूप सदर (दक्षिण) सीट से चुनकर आए। वे असम के पहले मुख्यमंत्री बने। एक मुश्किल वक्त में उन्होंने असम को संभाला और राज्य को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
यह बात 6 जून, 1890 की है। उसी दिन बुद्धेश्वर बोरदोलोई और प्रानेश्वरी बोरदोलोई के घर एक शिशु का जन्म हुआ था, जो आगे चलकर असम का पहला मुख्यमंत्री बना। गोपीनाथ बोरदोलोई मूल रूप से गांधीवादी सिद्धांत के अनुयायी थे। अहिंसा में उनका विश्वास था। असम की जनता के प्रति उनका नि:स्वार्थ समर्पण ही था कि तत्कालीन राज्यपाल जयराम दास दौलतराम ने उन्हें ‘लोकप्रिय’ यानी ‘सभी से प्यार’ की उपाधि से सम्मानित किया।
गोपीनाथ बोरदोलोई ने अपनी प्रारंभिक और उच्च शिक्षा बारी-बारी से गुवाहाटी, उसके बाद कोलकाता में पूरी की। कोलकाता विश्वविद्यालय से एमए करने के बाद उन्होंने कानून की पढ़ाई शुरू की लेकिन आखिरी वर्ष की परीक्षा दिये बिना गुवाहाटी लौट आए। फिर तरुण राम फुकन के अनुरोध पर सोनाराम हाई स्कूल के प्रधानाध्यापक के रूप में अस्थायी नौकरी करने लगे। उस दौरान कानून की पढ़ाई भी पूरी की और गुवाहाटी में वकालत करना शुरू कर दिया। यहीं से राजनीति के प्रति उनकी रुचि बढ़ी और वे कांग्रेस पार्टी में सक्रिय हो गए।
सरदार वल्लभभाई पटेल से उनकी निकटता थी। उनके साथ मिलकर काफी काम किया। एक तरफ चीन के खिलाफ असम की संप्रभुता को सुरक्षित किया तो दूसरी तरफ पाकिस्तान को आगे बढ़ने से रोका। बोरदोलोई ने उन लाखों हिंदू शरणार्थियों के पुनर्वास को व्यवस्थित करने में मदद की, जो बंटवारे के बाद व्यापक हिंसा और धमकियों के कारण पूर्वी पाकिस्तान में अपना घर-बार छोड़कर भारत आ आए थे।
गोपीनाथ बोरदोलोई के कार्य ने सांप्रदायिक सद्भाव, लोकतंत्र और स्थिरता को सुनिश्चित करने का आधार बनाया, जिसने 1971 में पूर्वी पाकिस्तान की स्वतंत्रता पर प्रभावी रूप से असम को सुरक्षित और प्रगतिशील रखा।
अपनी दूरदृष्टि का परिचय देते हुए बोरदोलोई ने गुवाहाटी विश्वविद्यालय, असम के उच्च न्यायालय, असम मेडिकल कॉलेज, असम वेटनरी कॉलेज आदि की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे प्रतिभाशाली लेखक भी थे। आजादी के आंदोलन के समय जेल यात्रा के दौरान उन्होंने कई पुस्तकें लिखीं। हर मुश्किल मोड़ पर असम की जनता के लिए आसान राह बनाई।
मुख्यमंत्री होने के बावजूद साधारण जीवन व्यतीत करते रहे। 5 अगस्त, 1950 को उनका निधन हो गया। वाजपेयी सरकार के समय उन्हें मरणोपरांत ‘भारत-रत्न’ से सम्मानित किया गया। अक्टूबर 2002 में उनकी आदमकद प्रतिमा संसद भवन में लगाई गई। तब से अबतक ब्रह्मपुत्र का पानी बहुत बह चुका है, लेकिन गोपीनाथ बोरदोलोई की स्मृति असम में कदम-कदम पर है। यहां के लोग अपने हर मुख्यमंत्री में गोपीनाथ बोरदोलोई का अक्स तलाशते हैं।