15 अगस्त हम आजादी के जश्न के रूप में सन् 1947 से मनाते रहे हैं। लेकिन अब भारत 5 अगस्त को भी राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाएगा। इसका कारण है कि भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह ने भारत की भावना को समझते हुए पिछले 70 साल की भूल जो भारत को शूल की तरह चुभ रही थी, उसे 5 अगस्त को समाप्त करने का ऐतिहासिक फैसला लिया। यह फैसला सिर्फ ऐतिहासिक नहीं है बल्कि साहसिक भी है। सरकार का निर्णय वह होता है जिससे जनता को लगे कि यह हमारा निर्णय है। भारत का प्रत्येक नागरिक रोटी से ज्यादा चिंता राष्ट्र की करता है। नरेन्द्र मोदी सरकार ने यह साफ कर दिया कि उनके सामने राष्ट्र से बड़ा कोई नहीं। अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी करने का निर्णय न केवल इतिहास रचने वाला है, बल्कि भूगोल बदलने वाला है। नरेन्द्र मोदी की सरकार के इस निर्णय ने भारत के प्रत्येक नागरिक की राष्ट्रीयता को जगा दिया।
राज्यसभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में गृहमंत्री अमित शाह ने 5 जुलाई 2019 को इतिहास रच दिया। जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को सरकार द्वारा निष्प्रभावी कर दिया गया। राष्ट्रपति ने संविधान आदेश (जम्मू-कश्मीर के लिए) 2019 पर दस्तखत कर दिए। गृह मंत्री अमित शाह ने राज्यसभा में इससे जुड़ा संकल्प पेश किया। तत्काल बाद सरकार द्वारा अधिसूचना भी जारी कर दी गई। अनुच्छेद 370 के निष्प्रभावी होते ही राज्य के पुनर्गठन का रास्ता साफ हो गया।
हमें याद रखना होगा कि भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने जब अनुच्छेद 370 लागू किया था तो कहा था कि यह अस्थायी अनुच्छेद है। यह घिसते-घिसते घिस जाएगा। लेकिन 70 साल बाद भी यह अनुच्छेद घिसा नहीं। जाने-अनजाने कश्मीर समस्या नेहरूजी की ही देन है। संसद में गृहमंत्री अमित शाह ने इसे निष्प्रभावी करने का जो संकल्प लाया उससे यह लगा कि राजनीतिक दल जो बातें अपने संकल्प पत्र में लिखते हैं उसे पूरा करने की दिशा में आगे आते हैं। गृहमंत्री अमित शाह ने राज्यसभा में हंगामे के बीच हुई चर्चा का जवाब देते कहा कि हमारा इरादा केंद्र शासित राज्य की व्यवस्था को लंबे समय तक बनाए रखने का नहीं है। उचित समय आने पर फिर राज्य बना दिए जाने के बारे में विचार किया जा सकता है।
26 अक्टूबर 1947 को जम्मू-कश्मीर के राजा हरि सिंह ने विलय संधि पर दस्तखत किए थे। उसी समय अनु्च्छेद 370 की नींव पड़ गई थी, जब समझौते के तहत केंद्र को सिर्फ विदेश, रक्षा और संचार मामलों में दखल का अधिकार मिला था। 17 अक्टूबर 1949 को अनुच्छेद 370 को पहली बार भारतीय संविधान में जोड़ा गया। गृहमंत्री अमित शाह ने गलत नहीं कहा कि अनुच्छेद 370 के कारण आज जम्मू-कश्मीर के लोग गुरबत की जिंदगी जी रहे हैं। उधर, इसकी छाया में 3 परिवारों ने आजादी से लेकर आज तक राज्य को लूटा है। अनुच्छेद 370 के कारण जम्मू-कश्मीर में कभी भी लोकतंत्र प्रफुल्लित नहीं हुआ। अनुच्छेद 370 के कारण भ्रष्टाचार पनपा, फला-फूला और चरम सीमा पर पहुंचा। अनुच्छेद 370 के कारण ही गरीबी घर कर गई। उसी की वजह से जम्मू कश्मीर और लद्दाख में लोकतंत्र मजबूत नहीं हो पाया। जम्मू कश्मीर में बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं मिल पाईं। उन्होंने सच ही कहा कि 40 हजार पंच-सरपंचों का अधिकार 70 साल तक जम्मू कश्मीर के लोगों से ले लिया गया। इसका जिम्मेदार है अनुच्छेद 370। राष्ट्रपति शासन के बाद वहां चुनाव हुए और आज 40 हजार पंच-सरपंच वहां के विकास में योगदान दे रहे हैं। एक बड़े अचरज की बात उन्होंने कही कि जम्मू कश्मीर में जो पाकिस्तान के शरणार्थी गए उन्हें आज तक नागरिकता नहीं मिल पाई है लेकिन देश को 2 प्रधानमंत्री पाकिस्तान से आए शरणार्थियों ने दिए हैं। मनमोहन सिंह और गुजराल देश के प्रधानमंत्री बन सकते हैं पर उन्हें जम्मू-कश्मीर की नागरिकता नहीं मिल सकती। शाह ने बताया कि देश के राष्ट्रपति को अनुच्छेद 370 (3) के तहत पब्लिक नोटीफिकेशन से धारा 370 को समाप्त करने का अधिकार है। संविधान के अनुच्छेद 370 (3) के अंतर्गत जिस दिन से राष्ट्रपति द्वारा इस सरकारी गजट को स्वीकार किया जाएगा, उस दिन से अनुच्छेद 370 (1) के अलावा अनुच्छेद का कोई भी खंड लागू नहीं होगा। जम्मू-कश्मीर में अभी राष्ट्रपति शासन है। इसलिए जम्मू-कश्मीर विधानसभा के सारे अधिकार संसद में निहित हैं।
अनुच्छेद 370 के फैसले के बाद जम्मू-कश्मीर में दोहरी नागरिकता का प्रावधान था। यहां का अलग संविधान और घ्वज था। अब यह नहीं रहेगा। दोनों ही हट जाएंगे। इसके कारण प्रदेश से बाहर के लोगों के वहां जमीन खरीदने, सरकारी नौकरी पाने, संस्थानों में दाखिला लेने का अधिाकर नहीं था। अब यह भी समाप्त हो जाएगा। जम्मू-कश्मीर की विधानसभा का कार्यकाल छह साल का होता था। भारत की संसद यहां के संबंधों में सीमित दायरे में ही कनून बना सकती थी। यहां पर राज्यपाल की नियुक्ति होती थी। अब जम्मू-कश्मीर में दिल्ली की तरह विधानसभा वाला केन्द्र शासित प्रदेश होगा। इसका कार्यकाल पांच वर्ष होगा। साथ ही लद्दाख पूर्णत: केन्द्र शासित राज्य होगा। पहले रक्षा, विदेश मामले और संचार के अलावा किसी कानून के लागू करवाने के लिए केन्द्र सरकार को राज्य सरकार की मंजूरी चाहिए होती थी। अब जम्मू-कश्मीर व लद्दाख में उपराज्यपाल का पद होगा। राज्य की पुलिस केन्द्र के अधिकार क्षेत्र में रहेगी। जम्मू-कश्मीर कैडर के आईपीएस, आईएएस अधिकारी यूटी कैडर के अधिकारी हो जाएंगे। जम्मू-कश्मीर की कोई महिला यदि भारत के किसी अन्य राज्य के व्यक्ति से शादी करती थी तो उसकी जम्मू-कश्मीर की नागरिकता समाप्त हो जाती थी। अब किसी अन्य राज्य के व्यक्ति से शादी के बाद भी जम्मू-कश्मीर की महिला के अधिकारों व उसकी नागरिकता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। पाकिस्तानी नागरिकों को मिला विशेषाधिकार खत्म होगा। पूर्व में राज्य में आपातस्थिति में राज्यपाल शासन लगाने का प्रावधान था। कश्मीर के हिन्दू-सिख आदि अल्पसंख्यकों को 16 फीसदी आरक्षण का लाभ नहीं मिलता था। अब अल्पसंख्यकों को आारक्षण का लाभ मिल सकता है। अब यहां अनुच्छेद 356 का भी उपयोग हो सकेगा। यानि राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकेगा। पूर्व में सूचना का अधिकार, शिक्षा का अधिकार और सीएजी लागू नहीं होती थी। यहां रणवीर दंड संहिता लागू थी। अब सूचना का अधिकार और शिक्षा का अधिकार जैसे कानून लागू हो सकेंगे। भारतीय दंड संहिता भी प्रभावी होगी। नए कानून और कानून में होने वाले संशोधन अब कश्मीर में भी लागू हो जाएंगे। पूर्व में बाहरी राज्यों का व्यक्ति न मतदान कर सकता था और न ही चुनावों में उम्मीदवार बन सकता था लेकिन अब भारत का कोई भी नागरिक जम्मू-कश्मीर का मतदाता और चुनाव में उम्मीदवार हो सकेगा। भारत के सुप्रीम कोर्ट का फैसला यहां मान्य नहीं होता था। लेकिन अब सर्वोच्च न्यायालय द्वारा लिए गए फैसले जम्मू-कश्मीर और लद्दाख पर भी मान्य होंगे।
इतिहास के पन्ने भी पलटने चाहिए। भारतीय जनसंघ के संस्थापक और पहले अध्यक्ष डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने अनुच्छेद 370 के विरुद्ध पहला आंदोलन किया था। वे जम्मू-कश्मीर जाने के लिए परमिट व्यवस्था के विरोधी थे। उसी का विरोध करते हुए मुखर्जी 1953 में गिरफ्तार हुए। हिरासत में ही उनकी संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई। वे आजाद भारत के पहले व्यक्ति थे जिनकी मौत हिरासत में हुई। वे जम्मू-कश्मीर की लड़ाई लड़ने वाले पहले भारतीय थे।
डॉ. मुरली मनोहर जोशी जब भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने तो उन्होंने देश में एकात्मता यात्रा की शुरुआत की और कहा कि वे श्रीनगर के लाल चौक पर तिरंगा फहराएंगे। लाल चौक पर तिरंगा फहराने की इस यात्रा का जिम्मा भाजपा ने नरेन्द्र मोदी को सौंपा था। मोदीजी उस एकात्मता यात्रा के संयोजक थे। सरकार ने लाल चौक पर तिरंगा फहराने पर रोक लगा दी थी। लेकिन नरेन्द्र मोदी नहीं माने। उधर, डॉ. जोशी ने कहा कि चाहे जान चली जाए, पर हम तो लाल चौक पर तिरंगा फहराएंगे। उस समय नरेन्द्र मोदी का जो भाषण हुआ था वह 5 अगस्त को गृहमंत्री अमित शाह ने राज्यसभा में साकार किया। मैं स्वयं स्वदेश के सहसंपादक के नाते उस कार्यक्रम में मौजूद था।
नरेन्द्र मोदी राष्ट्र को सर्वोपरि मानते हैं। राष्ट्र का मस्तक ऊंचा रहे इस दिशा में निर्णय लेते हैं। मुझे यहां कहने और लिखने में कोई संकोच नहीं कि भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का पूरा सहयोग तत्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल को कभी नहीं मिला। अगर मिला होता तो आज देश की परिस्थिति अलग होती। लेकिन गृहमंत्री अमित शाह का यह सौभाग्य है कि उन्हें नेता और देश के प्रधानमंत्री के रूप में नरेन्द्र मोदी मिले हैं। अमित शाह को हमेशा नरेन्द्र मोदी का समर्थन राष्ट्रहित में मिलता रहा है। यही कारण है कि लोग दबे-छुपे कहते सुने जाते हैं कि सरदार वल्लभ भाई पटेल के सपनों को यदि कोई साकार करेगा तो वो गुजरात का बेटा अमित शाह है। अमित शाह की खासियत है कि वे जिस कार्य में लगते हैं, पूरे जुनून से लगते हैं। वे काम को परिणाम तक ले जाने में विश्वास करते हैं। लोग क्या समझते हैं मुझे पता नहीं, पर अनुच्छेद 370 की समाप्ति और जम्मू कश्मीर राज्य का पुनर्गठन कर वे आजाद भारत के वे नेता हो गए जिस पर राष्ट्र विश्वास करता है और आगे भी करेगा।
(लेखक भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और राज्यसभा के सदस्य हैं।)