कोविड-19 : ब्लड प्लाज़्मा तकनीक का उपचार सफल हो रहा है

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न्यू  यॉर्क, 30 मार्च (हिस): कोरोनावायरस से संक्रमित  छह लोगों  को  ब्लड प्लाज़्मा दिया गया और उन सभी के परिणाम सुखद रहे है। यह प्लाज़्मा कोरोना से संक्रमित पीड़ित लोगों के रक्त से तैयार किया गया था।  इसे कोरोनावायरस संक्रमित को आई वी विधि के ज़रिए दिया जा रहा है।  राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने रविवार को प्रेस काँफ़्रेंसे में यह जानकारी देते हुए बताया कि इसका आगे भी प्रयोग जारी रहेगा।  उन्होंने कहा कि ब्लड प्लाज़्मा के लिए रक्त उसी का लिया जा रहा है, जो पूरी तरह स्वस्थ है और कोरोना जैसे संक्रामक रोग से उबर कर आया है।

 न्यूयॉर्क के गवर्नर एंड्रयू क़ौम ने सोमवार को कहा था कि  फ़ूड एंड एडमिनिस्ट्रेशन (एफ डी ए) ने इस तकनीक की अधिकृत तौर पर स्वीकृति दे दी  है । इसे  आरोग्य लाभ प्लाज़्मा का नाम दिया गया है। एफ डी ए ने यह स्वीकृति इमर्जेंसी प्रोटोकोल के तहत दी है। हालाँकि एफ डी ए ने ब्लड प्लाज़्मा को कोविड-19 के पूरी तरह टेस्टेड प्रभावशाली नहीं माना है। अब जैसे ही किसी गंभीर रोगी को ब्लड प्लाज़्मा दिया जाएगा, एफडी ए चार से आठ घंटे में अनुमति दे देगी। इस की शुरुआत सब से पहले उन हेल्थकेयर कर्मियों से की जाएगी, जो ज़िंदगी और मौत के बीच झूल रहा होगा। इसका प्रयोग सफल होता है, तो फिर कोरोनावायरस से स्वस्थ व्यक्तियों से डोनर के रूप में ब्लड लिया जा सकेगा। इसके लिए बड़ी संख्या में लोग आ रहे हैं। इसके लिए देश भर के ब्लड बैंकों को चिन्हित कर लिया गया है।

विदित हो, आधुनिक वैक्सीन और एंटी वायरल ड्रग का पूर्व सन 1918 में फल्यू महामारी के दौरान प्रयोग किया था। इस संबंध में अमेरिकी चिकित्सकों का मत था कि जब तक कोरोना वायरस की नई वैक्सीन नहीं तैयार हो जाती है, तब तक इसका प्रयोग किया जाना चाहिए। नई वैक्सीन में बारह से 18 महीनों का समय लग सकता है। असल में यह मेडिकल विधा नई नहीं है, इस से संक्रमित मरीज़ का इम्यून सिस्टम उन्नत होता है और वह शरीर में प्रतिरोधात्मक क्षमताओं की बदौलत संक्रामक जीवाणुओं से लोहा लेने में सफल रहता है। संक्रामक रोग विशेषज्ञ ने सरल शब्दों में बताया कि मोटे तौर पर यह प्लाज़्मा फलों और सब्ज़ियों के ‘जूस’ की तरह है, जिसमें सभी अवयव होते हैं और वह शरीर में प्रतिरोधात्मक क्षमता बढ़ाता है। कोरोनावायरस एक ऐसा दैत्य है जो निर्बल व्यक्ति के इम्यून सिस्टम पर हमला करता है और उसमें प्रतिरोधात्मक क्षमता नहीं होने के कारण वह साँस नहीं ले पाता है। इस संक्रामक दैत्य का प्रकोप इतना उग्र होता है कि वह चंद दिनों में अपने शिकार को दबोच लेता है। बाल्टीमोर स्थित जान होप्किंस मेडिकल सेंटर के अनुसार कोरोनावायरस से 195 देशों के क़रीब चार लाख लोग संक्रमित हो चुके हैं जबकि इस से 18,500 लोगों की जाने जा चुकी हैं। इसके बावजूद एक लाख लोग इस संक्रमण से उबर पाए हैं। फिर भी पाँच प्रतिशत कोरोना संक्रमित मरीज़ जीवन और मौत के बीच झूल रहे हैं।

विश्व के विख्यात जान होप्किंस यूनिवर्सिटी में मेडिकल सेंटर के निदेशक डाक्टर आर्टुरो कसडेवल की देखरेख में जाने-माने मेडिकल केंद्रों ‘मेयो क्लीनिक (मिनिसोटा), सान फ़्रांसिस्को के स्टेनफ़ोर्ड मेडिकल सेंटर और न्यू यॉर्क के अलबर्ट आइंस्टीन मेडिकल कालेज सहित अमेरिका के दो दर्जन मेडिकल संस्थानों का सहयोग लिया गया है। डाक्टर आर्टुरो का कहना है कि कोरोनावायरस की नई वेक्सीन में लम्बा समय लग सकता है। इसके लिए पिछले दो महीनों से प्रयास किए जा रहे थे। देश के विभिन्न हिस्सों में स्थापित मेडिकल केंद्रों के ब्लड बैंकों में पूरी तैयारियाँ की जा रही थी। अब कोरोनावायरस संक्रमण से निजात पाने वाले स्वस्थ लोगों को चिन्हित कर लिया गया है और बतौर नमूने कुछेक दानदाताओं के ब्लड सैम्पल भी ले लिए गए हैं। चीन ने भी सन 2002 में सार्स मरीज़ों पर इस विधा का सफल परीक्षण किया था। इसके नतीजे भी सही निकले थे।

डाक्टर आर्टुरो कसडेवल कहते हैं कि यह विधा जोखिमपूर्ण है। इसके लिए सावधानी बहुत ज़रूरी है। सर्व प्रथम यह सुनिश्चित करना ज़रूरी होगा कि कोरोनावायरस से निजात पा चुके उस व्यक्ति में संक्रमण के कोई अंश तो नहीं रह गए हैं। दूसरे, रक्त में पर्याप्त प्रतिरोधात्मक क्षमता है। तीसरे, स्थानीय ब्लड में प्लाज़्मा निकालने के वे सभी संसाधन उपलब्ध हैं। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि शुरू में गंभीर रूप से संक्रमित मरीज़ को ही प्लाज़्मा दिया जाएगा।

 


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