क्या भाजपा से फिर रूठेगी शिवसेना?

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भाजपा ने पहले 174 सीटें खुद के लिए और 114 सीटें शिवसेना को देने का फार्मूला तैयार किया था। पर, शिवसेना नहीं मानी। दूसरे दौर में भाजपा ने 155 सीटें खुद के लिए और 120 सीटें शिवसेना को देने का निर्णय लिया।



रमेश ठाकुर
महाराष्ट्र में चुनावों की तारीखों का एलान तो हो गया लेकिन सत्तारूढ़ गठबंधन में अभी सीट बंटवारों का मसला नहीं सुलझ पाया है। सीट बंटवारे को लेकर एक बार फिर भारतीय जनता पार्टी और शिवसेना के बीच तलवारें खिंचती नजर आने लगी हैं। शिवसेना-भाजपा में सियासी तकरार से सभी वाकिफ हैं। शिवसेना कब भाजपा से रूठ जाए, किसी को नहीं पता। पिछले विधानसभा चुनाव में दोनों पार्टियां एक-दूसरे के खिलाफ लड़ी थीं। यह अलग बात है कि चुनाव बाद दोनों ने मिलकर सरकार बनाई। माहौल एक बार फिर वैसा ही बनता दिखाई पड़ने लगा है। पिछले दो पखवाड़े के दरमियान भाजपा-शिवसेना के वरिष्ठ नेताओं के बीच सीट बंटवारे को लेकर कई बैठकें हो चुकी हैं। मामला फिफ्टी-फिफ्टी पर टिका हुआ है। शिवसेना महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भाजपा से आधी सीटों की मांग कर रही है। लेकिन भाजपा फिलहाल आधी सीटें देने को तैयार नहीं है। इससे अंदेशा कुछ ऐसा ही लगने लगा है कि पूर्व की तरह भाजपा-शिवसेना के बीच एक बार फिर सीटों के बंटवारे को लेकर पेंच फंस सकता है। हालांकि मसले को सुलझाने के लिए प्रयास लगातार जारी हैं।
भाजपा शिवसेना को आधी सीटें क्यों नहीं देना चाहती? इस थ्योरी को समझना जरूरी है। दरअसल, विगत कुछ माह के भीतर महाराष्ट्र के विभिन्न दलों को छोड़कर कई नेताओं ने भाजपा का दामन थामा है। वह सभी नेता जीत की गारंटी दे रहे हैं। इससे भाजपा को कहीं न कहीं लगने लगा है कि उनकी नैया बिना शिवसेना के भी पार हो सकती है। भाजपा महाराष्ट्र में जीत को लेकर पूरी तरह से आश्वस्त है। उसको लगता है कि प्रधानमंत्री का जादू इस वक्त मतदाताओं के सिर चढ़कर बोल रहा है। इसके अलावा दिल्ली स्थित उनके केंद्रीय नेतृत्व को लगता है कि जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 और 35ए को हटाने, तीन तलाक को प्रतिबंधित करने और उज्ज्वला योजना आदि दर्जनभर योजनाओं को अमलीजामा पहनाने के बाद माहौल उनके पक्ष में है।
भाजपा ने पहले 174 सीटें खुद के लिए और 114 सीटें शिवसेना को देने का फार्मूला तैयार किया था। पर, शिवसेना नहीं मानी। दूसरे दौर में भाजपा ने 155 सीटें खुद के लिए और 120 सीटें शिवसेना को देने का निर्णय लिया। लेकिन बात इस बार भी नहीं बनी। शिवसेना दोनों पार्टियों (भाजपा और शिवसेना) को 135-135 सीटें और 18 सीटें सहयोगी दलों को देने की बात पर अड़ी है। लेकिन पार्टी नेताओं को भरोसा है कि भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के बीच प्रस्तावित बैठक में सीटों के बंटवारे का मुद्दा सुलझ जाएगा।
शिवसेना भाजपा को सात माह पहले यानी लोकसभा चुनाव के दौरान किए समझौते को याद दिला रही है। तब भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे के बीच समझौता हुआ था कि विधानसभा चुनाव में भी दोनों दल बराबर-बराबर के फॉर्मूले पर चुनाव लड़ेंगे। शिवसेना चाहती है कि भाजपा अपने पूर्व में किए उसी फॉर्मूले पर कायम रहे। लेकिन लोकसभा चुनाव के बाद सियासी हालात पहले से बदले हैं। इसीलिए भाजपा ज्यादा सीटों की मांग पर अड़ी है। इस बात की भनक उद्धव ठाकरे लगी तो उन्होंने कुछ समय पहले पार्टी नेताओं से सूबे में अकेले चुनाव लड़ने के स्थिति में कमर कसने की तैयारी का आदेश देकर गठबंधन तोड़ने की हवा दे दी। शिवसेना ने नागपुर सीट समेत प्रदेश की सभी सीटों पर इच्छुक उम्मीदवारों के चयन की प्रक्रिया भी खामोशी से शुरू कर दी। लेकिन भाजपा भी शिवसेना के बिना चुनाव महाराष्ट्र में नहीं लड़ना चाहती। दोनों दलों को मालूम है कि गठबंधन न सिर्फ दोनों दलों की मजबूरी है बल्कि दोबारा सत्ता में आने के लिए जरूरी भी है।
19 सितम्बर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नासिक में बड़ी रैली करके फिलहाल महाराष्ट्र में चुनाव का बिगुल फूंक दिया है। 21 अक्टूबर को महाराष्ट्र के अलावा हरियाणा के भी विधानसभा चुनाव कराए जाएंगे। ऐसे में देखना होगा कि क्या शिवसेना-भाजपा गठबंधन बरकरार रहेगा। अगर रहेगा तो क्या प्रदेश में सरकार भी रिपीट होगी या फिर किसी दूसरे दल को जनता मौका देगी।
भाजपा-शिवसेना के बीच एक और पेंच फंसा हुआ है। पिछले विधानसभा में जो उम्मीदवार जीतकर आए थे उनको या तो इस बार मौका नहीं देने की खबरें हैं या फिर उनके क्षेत्र बदलने की चर्चाएं हैं। शिवसेना के कुछ सिटिंग विधायकों की सीटों पर भाजपा अपने उम्मीदवार उतारना चाहती है। ऐसी स्थिति को साफ करने के लिए दोनों दलों ने अपने काडर को सभी सीटों पर चुनावी तैयारी करने के निर्देश दिए हैं। शिवसेना कतई नहीं चाहेगी उनके विधायकों की सीटें भाजपा के खाते में जाएं।
इस बीच, महाराष्ट्र में विपक्ष के प्रमुख गठबंधन कांग्रेस और एनसीपी ने सीटों के तालमेल को अंतिम रूप देकर मुकाबले को दिलचस्प बना दिया है। कांग्रेस-एनसीपी 125-125 सीटों पर चुनाव लड़ेंगी, जबकि बाकी बची सीटों पर सहयोगी पार्टियां अपनी किस्मत आजमाएंगी।

 


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