भाजपा उम्मीदवार सुब्रत साहा:कश्मीर और पश्चिम बंगाल के हालात में बहुत सी समानताएं
कोलकाता, 01 अप्रैल (हि. स.)। कोलकाता के रासबिहारी विधानसभा सीट से भाजपा उम्मीदवार और सेना के सेवानिवृत्त डेपुटी चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ लेफ्टिनेंट जनरल सुब्रत साहा कश्मीर और पश्चिम बंगाल के हालात में बहुत सी समानताएं देख रहे हैं। उनके मुताबिक फर्क सिर्फ इतना है कि कश्मीर में आतंकवादी हिंसा कर रहे हैं और पश्चिम बंगाल में यह काम एक संवैधानिक रूप से मान्यता प्राप्त राजनीतिक पार्टी (तृणमूल कांग्रेस) कर रही है।
साहा ने विशेष बातचीत में बताया कि उनके पूर्वज नारायणगंज के ढाका में रहते थे। उनका जन्म कोलकाता के फोर्ट विलियम में हुआ। पुरुलिया के सैनिक स्कूल से पास करने के बाद कलकत्ता में सेंट जेवियर्स में रसायन विज्ञान के साथ दाखिला लिया। उसके बाद उन्होंने 1977 में दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से बी-एससी किया।फिर 1989 में उन्होंने इग्नू से मैनेजमेंट में डिप्लोमा प्राप्त किया। साल 2010 में पेंसिल्वेनिया आर्मी वॉर कॉलेज से स्टडीइज में मास्टर्स किया। 2011 में इंदौर में डिफेंस और मैनेजमेंट स्टडीज में एम फिल। दो साल के बाद, उन्होंने मद्रास विश्वविद्यालय से डिफेन्स और स्ट्रेटजिक स्टडीज में एम.एससी। 2020 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्ट्रेटजिक स्टडीज में पीएचडी किया।
उन्होंने बताया कि उनके शरीर मे योद्धाओं का रक्त बहता है। पिता भी आर्मी ऑफिसर थे। द्वितीय विश्व युद्ध में, वह मलेशिया के बटाविया (इंडोनेशिया) में बर्मी सीमा पर ब्रिटिश भारतीय सेना के सदस्य थे। मेरे पिता 1982 में सेवानिवृत्त हुए। सेवानिवृत्ति के बाद, मेरे पिता आसनसोल आए और एक व्यवसाय शुरू किया।
पश्चिम बंगाल की दुर्दशा के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा कि इस राज्य के सुनहरे दिन हमारी आंखों के सामने खो गए हैं। अभी भी राज्य की बदहाली बनी हुई है। इसलिए जब उन्हे दिल्ली से कहा गया कि आपने जीवन में बहुत काम किया है, जाइए अब अपने राज्य के लिए कुछ करिए। तब मैंने संकोच नहीं किया। मैंने सोचा, यह भी एक युद्ध है। पश्चिम बंगाल के लोगों को बचाने के लिए।
देबाशीष कुमार रासबिहारी के तृणमूल कांग्रेस उम्मीदवार हैं जो स्थानीय निवासी भी है। इसबारे में जब सुब्रत से पूछा गया कि आप अपने पूरे जीवन राज्य से बाहर रहे हैं! क्या आपके ऊपर भी बाहरी होने के आरोप लगे? इसका जवाब देते हुए सुब्रत साहा कहा कि ये क्या अन्याय है! इस राज्य में कितने जवान-ऑफिसर हैं। जब वे वापस आए और उन्हें बाहरी कहा जाने लगे तो कैसा लगेगा?
सुब्रत साहा के कहा कि इस राज्य में पिछले 10 वर्षों में कोई औद्योगिक विकास नहीं हुआ। साल 2011 से ममता बनर्जी के सत्ता में आने के बाद से सिर्फ वादे पर वादे किये जा रहे हैं। बिजनेस समिट भी करवाया गया पर राज्य को कोई लाभ नहीं हुआ बल्कि बेरोजगारी और बढ़ी है। तृणमूल सरकार गावों में भी न्यूनतम आय सुनिश्चित नहीं कर सकी। भ्रष्टाचार, रिश्वत और जबरन वसूली भी बढ़ी है। इन्ही सब कारणों ने सुब्रत साहा को राजनीति में प्रवेश करने के लिए प्रोत्साहित किया है। अपने छात्र जीवन में कभी राजनीति नहीं की। सेना के जीवन में राजनीति करना संभव नहीं था।
सुब्रत साहा से पहले, उनकी रैंक का कोई अन्य अधिकारी पश्चिम बंगाल से विधानसभा या लोकसभा चुनावों में खड़ा नहीं हुआ था। जनरल शंकर रॉय चौधरी एक सांसद थे लेकिन वह राज्यसभा में थे।
चुनाव में जीत की संभावनाओं के बारे में पूछने पर सुब्रत साहा ने जवाब दिया कि मैं बहुत आशावादी हूं।” लेकिन स्थानीय तृणमूल उम्मीदवार को एक कुशल संगठक के रूप में जाना जाता है।विभिन्न क्लबों और पूजा उद्यमियों के करीबी हैं। क्या उसके साथ लड़ाई बहुत मुश्किल नहीं होगी? जवाब में, सुब्रत साहा ने “हिन्दुस्थान समाचार” से कहा कि देखिये! आर्मी में एक कहावत है। ‘वेन द गोइंग गेट्स टफ, द टफ गेट गोइंग ‘-जब दबाव बढ़ता है, तो जो संभाल सकते हैं वे जाएंगे। सेना में कोई भी हार से नहीं डरता। अधिकारी और सैनिक हमेशा जीतने की अदम्य इच्छा के साथ लड़ते हैं। मैं भी जीतने के लिए लड़ रहा हूं। मुख्य बात प्रधानमंत्री के संकल्प पत्र को वास्तविकता में लागू करना है। हम उसके लिए जो भी संभव होगा, करने की कोशिश करेंगे।
उल्लेखनीय है कि रासबिहारी विधानसभा क्षेत्र में 26 अप्रैल को सातवें चरण में मतदान होगा।