कर्ज लेने में बिहार सबसे पीछे और ओडिशा आगे

0

बचत खाता के मामले में बिहार फिसड्डी

बिहार के 10 प्रतिशत शहरी के पास 51 प्रतिशत संपत्ति

गांवों में रहने वाली पिछड़ी जाती का रिकार्ड शहरों में रहने वालों से बेहतर



पटना, 24 अक्टूबर (हि.स.)। अखिल भारतीय ऋण-निवेश सर्वे-2019 की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक कर्ज ना लेने के मामले में बिहार का रिकार्ड बहुत ही अच्छा है। बिहार में कर्ज का औसत केवल 1.5 प्रतिशत है यानी औसत संपत्ति 2,484 के मुकाबले केवल 37 रुपये कर्ज हैं। शहरी क्षेत्र में सबसे ज्यादा कर्ज आंध्र प्रदेश के लोग लेते हैं। इसके बाद केरल और तेलंगाना का नंबर आता है।

आंध्र प्रदेश में 1,712 रुपये की संपत्ति पर 163 रुपये कर्ज है यानी प्रति व्यक्ति आय के मुकाबले 9.5 प्रतिशत। इस रिपोर्ट में ऐसे कर्ज को शामिल किया गया है, जो बैंक या किसी संस्था से लिया गया हो। औसत संपत्ति की बात की जाए तो देश में सबसे कम प्रति व्यक्ति औसत संपत्ति 532 रुपये ओडि़शा की है लेकिन संपत्ति के मुकाबले हर व्यक्ति पर 31 रुपये यानी 5.8 प्रतिशत कर्ज है।

बचत खाते के मामले में बिहार की स्थिति बेहतर नहीं है। बिहार में 77.7 प्रतिशत ग्रामीण आबादी के पास बचत खाता है, जबकि शहर की 79.6 प्रतिशत लोगों के पास सेविंग एकाउंट हैं। बचत खाता खोलने के मामले में बिहार से बेहतर स्थिति उत्तर प्रदेश की है। यहां 83.0 प्रतिशत ग्रामीण आबादी के पास बचत खाता है, जबकि शहरी आबादी के 80.7 प्रतिशत लोगों के पास बचत खाता है।

आंध्र प्रदेश इस लिस्ट में सबसे ऊपर है। यहां 91.2 प्रतिशत शहरी आबादी का बचत खाता है। वहीं, ग्रामीण आबादी में 86.9 प्रतिशत के पास बचत खाता है। बचत खाता के मामले में बिहार से केरल, आंध्र प्रदेश, राजस्थान, तमिलनाडू, छतीसगढ, तेलंगाना, हरियाणा, पश्चिमी बंगाल और पड़ोसी उत्तर प्रदेश आगे हैं।

रिपोर्ट में जो सबसे चौकाने वाले तथ्य सामने आए हैं उसके मुताबिक बिहार के 10 प्रतिशत शहरी नगरों में रहने वाली आबादी 51 प्रतिशत संपत्ति के स्वामी हैं। राज्य के शहरों में आर्थिक हालात के सबसे निचले पायदान पर मौजूद 10 प्रतिशत लोगों के पास भौतिक या वित्तीय संपत्ति में कुछ भी नहीं है। बिहार के शहरों में ही नहीं गांवों में भी आर्थिक रूप से समर्थवान और अ-समर्थवान के बीच गहरी खाई है। यहां भी 10 संपन्न लोग ही 43 प्रतिशत संपत्ति के मालिक हैं।

नीचे के 10 प्रतिशत लोग गांव की केवल एक प्रतिशत संपदा के भरोसे हैं। इससे एक पायदान ऊपर के 10 प्रतिशत गरीब भी कोई अच्छी हालत में नहीं हैं। इनके गुजर-बसर के लिए भी केवल दो प्रतिशत संपत्ति का सहारा है। सच मायने में अगर कहा जाए तो राज्य में गरीबों की बड़ी आबादी दो जून की रोटी के लिए संपत्ति की जगह केवल हाड़तोड़ मेहनत के भरोसे है। कई बार श्रम से रोटी और दवा की जुगाड़ में बाधा पड़ने पर अनौपचारिक स्रोतों (महाजन) से कर्ज का ही केवल आसरा होता है।

गांवों में रहने वाली पिछड़ी जातियां बेहतर

रिपोर्ट में एससी, एसटी, ओबीसी और सामान्य लोगों की तुलना भी है। गांवों में रहने वाले एससी कैटेगरी के लोग शहरों से बेहतर हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के बचत खाते 84.9 प्रतिशत और शहरी क्षेत्र में 83.6 प्रतिशत हैं। यही हाल ओबीसी का है। इस समाज के ग्रामीण क्षेत्र में 85 प्रतिशत लोगों के खाते हैं। प्रदेश के शहर गरीबों को सहारा देने में अभी पूरी तरह से सक्षम नहीं हो पाए हैं। गांव के गरीबों से भी शहर के गरीबों की हालत खराब है।

आर्थिक स्थिति में सबसे नीचे के 10 प्रतिशत लोगों के पास शहरों में प्रति व्यक्ति संपत्ति केवल 4,692 रुपये है, जबकि गांवों में इसी पायदान के 10 प्रतिशत लोगों के पास प्रति व्यक्ति संपत्ति 16,293 रुपये है। हालांकि, सबसे ऊपर के 10 प्रतिशत अमीरों की प्रति व्यक्ति संपत्ति गांवों की तुलना में शहरों में ज्यादा है। शहरों के सबसे अमीर 10 लोगों के पास प्रति व्यक्ति संपत्ति 27 लाख 68 हजार 450 रुपये है, जबकि गांवों में सबसे धनवान 10 प्रतिशत लोगों की प्रति व्यक्ति संपत्ति नौ लाख 26 हजार है।


प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *