पटना, 21 अक्टूबर (हि.स.)। बिहार विधानसभा के शताब्दी वर्ष समारोह को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा कि आज से लगभग 2,400 वर्ष पहले एक गरीब महिला ‘मुरा’ के पुत्र चंद्रगुप्त मौर्य को मगध का सम्राट बनाने से लेकर 1970 के दशक में ईमानदारी और उज्ज्वल चरित्र के प्रतीक जननायक कर्पूरी ठाकुर को मुख्यमंत्री बनाने तक इस धरती ने समतामूलक परंपरा स्थापित की है।
राष्ट्रपति ने कहा कि बिहार में सामाजिक और आर्थिक बदलाव के लिए प्रयास और योगदान के लिए राज्य के सभी पूर्ववर्ती मुख्यमंत्री प्रशंसा के पात्र हैं। कुछ ही दिनों बाद हम सभी देशवासी दीपावली और छठ का त्योहार मनाएंगे। छठ-पूजा अब एक ग्लोबल फेस्टिवल बन चुका है। नवादा से न्यू-जर्सी और बेगूसराय से बोस्टन तक छठी मैया की पूजा बड़े पैमाने पर की जाती है। यह इस बात का प्रमाण है कि बिहार की संस्कृति से जुड़े उद्यमी लोगों ने विश्व-स्तर पर स्थान बनाया है। मुझे विश्वास है कि इसी प्रकार स्थानीय प्रगति के सभी आयामों पर भी बिहार के प्रतिभावान व परिश्रमी लोग सफलता के नए मानदंड स्थापित करेंगे।
राष्ट्रपति ने कहा कि राज्यपाल के कार्यकाल के दौरान मुझे समाज के सभी वर्गों और क्षेत्रों के लोगों का भरपूर स्नेह मिला। राष्ट्रपति के रूप में जब भी मेरा बिहार आना हुआ है तब मेरे प्रति वैसे ही प्रेम और सम्मान का एहसास मुझे होता रहा है। इसके लिए मैं बिहार के सभी निवासियों, जनसेवकों, अधिकारियों और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के प्रति आभार व्यक्त करता हूं।
राष्ट्रपति कोविंद ने कहा कि हम सभी देशवासियों ने हाल ही में दुर्गा पूजा और दशहरा का त्योहार मनाया है। इस वर्ष हम सब 75वें स्वतंत्रता दिवस का अमृत महोत्सव भी मना रहे हैं। बिहार विधानसभा के शताब्दी वर्ष का यह समारोह लोकतंत्र का उत्सव है। इस अवसर पर ‘शताब्दी स्मृति स्तंभ’ का शिलान्यास करके मुझे प्रसन्नता हुई है। इस कार्यक्रम में आप सबकी उत्साहपूर्ण उपस्थिति हमारे देश में विकसित स्वस्थ संसदीय परंपरा का एक अच्छा उदाहरण है।
उन्होंने कहा कि यह बार-बार कहते हुए मुझे फख्र होता है कि बिहार की धरती विश्व के प्रथम लोकतंत्र की जननी रही है। भगवान बुद्ध ने विश्व के आरंभिक गणराज्यों को प्रज्ञा तथा करुणा की शिक्षा दी थी। साथ ही उन गणराज्यों की लोकतांत्रिक व्यवस्था के आधार पर उन्होंने संघ के नियम निर्धारित किए थे। संविधान सभा के अपने अंतिम भाषण में बाबा साहब डॉक्टर भीमराव आंबेडकर ने यह स्पष्ट किया था कि बौद्ध संघों के अनेक नियम आज की संसदीय प्रणाली में भी उसी रूप में विद्यमान हैं।
उन्होंने कहा कि भगवान बुद्ध, भगवान महावीर और गुरु गोविंद सिंह की आध्यात्मिक धाराओं से सिंचित बिहार की धरती का मुझ पर विशेष आशीर्वाद रहा है। यहां राज्यपाल के रूप में जनसेवा का मुझे अवसर मिला और उसी कार्यकाल के दौरान राष्ट्रपति पद के लिए निर्वाचित होकर उस पद की संवैधानिक जिम्मेदारियों के निर्वहन का अवसर भी प्राप्त हुआ।
राष्ट्रपति ने कहा कि बिहार की अस्मिता के लिए संघर्ष करने वाले डॉक्टर सच्चिदानंद सिन्हा के प्रयासों के परिणाम तीन चरणों में प्राप्त हुए थे। पहले चरण में बिहार व उड़ीसा को बंगाल से पृथक करने का निर्णय सन 1911 में घोषित हुआ। सन 1912 में ‘उड़ीसा व बिहार’ को लेफ्टिनेंट गवर्नर के राज्य का दर्जा दिया गया और राज्य का मुख्यालय पटना में बना। सन 1913 में विधान परिषद की पहली बैठक सम्पन्न हुई।
दूसरे चरण में सन 1919 का ‘गवर्नमेंट ऑफ इंडिया ऐक्ट’ अस्तित्व में आया जो सन 1921 में प्रभावी हुआ। उस ऐक्ट के तहत ‘उड़ीसा व बिहार’ को ‘गवर्नर प्रॉविन्स’ यानी पूर्ण राज्य का दर्जा दिया गया तथा प्रांतीय विधायी परिषद में निर्वाचित सदस्यों की संख्या बढ़ाई गई। उसी वर्ष इस विधान सभा परिसर का निर्माण सम्पन्न हुआ। मतदान के जरिए चुने गए जनप्रतिनिधियों की अधिक संख्या से युक्त तथा उत्तरदायी सरकार की आरंभिक रूपरेखा वाली बिहार विधान परिषद की पहली बैठक 07 फरवरी, 1921 को हुई।
राष्ट्रपति ने कहा कि तीसरे चरण में सन 1935 का ‘गवर्नमेंट ऑफ इंडिया ऐक्ट’ पारित हुआ। इस ऐक्ट के तहत बिहार एक अलग राज्य के रूप में स्थापित हुआ। दो सदनों से युक्त विधायिका का गठन किया गया और अंततः डॉक्टर सच्चिदानंद सिन्हा का सपना पूरा हुआ। सन 1935 के ऐक्ट के तहत स्वाधीनता के पहले दो बार चुनाव हुए। उन दोनों चुनावों के बाद श्रीबाबू बिहार के प्रधानमंत्री बने। स्वाधीनता के पहले और बाद के दशकों के दौरान श्रीबाबू और अनुग्रह बाबू ने बिहार की राजनीति को परिभाषित किया।
उन्होंने कहा कि बिहार के लोगों की मधुरता को रेखांकित करते हुए डॉक्टर राधाकृष्णन ने महाभारत के एक श्लोक का उल्लेख किया था, जिसे मैं आप सबके साथ साझा करना चाहूंगा। उस श्लोक में कहा गया है, मृदुना दारुणं हन्ति, मृदुना हन्ति अदारुणम्, नासाध्यम् मृदुना किंचित्, तस्मात् तीक्ष्णतरम् मृदु अर्थात मधुर स्वभाव से कठिन स्थितियों पर विजय पाई जा सकती हैं। मधुर स्वभाव से सामान्य स्थितियों को वश में किया जा सकता है। मधुर स्वभाव के द्वारा कुछ भी असाध्य नहीं है। अतः मधुर स्वभाव ही सबसे प्रभावी अस्त्र है।