चुनाव 2020 : बदल दिए गए परिदृश्य, अब सिद्धांत-संघर्ष और सेवा पर नहीं टिकी है राजनीति
बेगूसराय, 26 अगस्त (हि.स.)। चुनाव आयोग ने बिहार विधानसभा चुनाव की घोषणा अभी भले ही नहीं की है लेकिन चुनावी बिगुल बज चुकी है। बेगूसराय के सभी सात विधानसभा क्षेत्रों से चुनाव लड़ने की तैयारी में लगे लोग मतदाताओं की परिक्रमा शुरू चुके हैं। पहले किसी भी घटना में प्रखंड क्षेत्र की चर्चा होती थी, लेकिन अब नेतागण किसी भी घटना को विधानसभा क्षेत्र से जोड़कर प्रचारित कर रहे हैं। सभी राजनीतिक दल कोरोना के कारण वर्चुअल रैली कर रहे हैं। बेगूसराय के सात विधानसभा क्षेत्रों में से तीन विधानसभा क्षेत्र बखरी (सुरक्षित), साहेबपुर कमाल और तेघड़ा पर राजद का कब्जा है। बेगूसराय नगर एवं बछवाड़ा कांग्रेस तथा मटिहानी एवं चेरिया बरियापुर जदयू के कब्जे में है। 2015 के मुकाबले इस बार गठबंधन का गणित बदल चुका है जिसके कारण प्रत्याशियों के गणित में भी तोड़फोड़ हो रही है। एनडीए गठबंधन और विपक्षी गठबंधन दोनों सभी सातों सीट पर चुनाव की तैयारी में लगे हुए हैं। सीट का बंटवारा अभी तक नहीं हुआ है, लेकिन चुनावी परिदृश्य बदले-बदले से हैं। अब पिछले दशक की तरह चुनाव नहीं हो रहा है, चुनावों में सब कुछ बदल चुका है। पहले राजनीति तीन चीजों सिद्धांत, संघर्ष और सेवा पर टिकी है। राजनीति में लोग सिद्धांत से प्रभावित होकर आते थे, वे अपने सिद्धांत के प्रति समर्पित होते थे। सिद्धांत पर चलकर उसके प्रचार-प्रसार को लेकर राजनीति को दिशा देते थे। सिद्धांत के लिए संघर्षरत रहते थे और अच्छाई के लिए संघर्ष करना उनकी विचारधारा का हिस्सा होता था। वे हमेशा एक सिद्धांत वाले बने रहने की कोशिश करते थे। वह राजनीति में विचारों के संघर्ष के साथ ही जुड़ते थे। राजनीति में जाकर जनता की सेवा, समाज की सेवा, राष्ट्र की सेवा करने के लिए संकल्पित होकर राजनीति से समाज को दिशा देने का संकल्प रखते थे। लेकिन आज राजनीति की परिभाषा बदल गई है। समाजनीति और राजनीति पर गहरी पकड़ रखने वाले महेश भारती कहते हैं कि अब राजनीति सत्ता, संपत्ति और सुविधा या स्वार्थ के लिए की जा रही है। राजनीति में आए हैं तो जितना जल्दी हो पद पकड़ लो। मुखिया, प्रमुख, जिला पार्षद, एमएलए, एमपी तो छोड़ दीजिए पार्टी में कोई छोटा मोटा पद भी चाहिए ही चाहिए। जितना हो सरकारी संपत्ति को लूटकर, योजनाओं की राशि लूटकर अपना घर भर लो। येन-केन प्रकारेण धन जमा करने में सत्ता का जितना दुरुपयोग करना हो कर लो। संसार की जितनी सुविधा हो सब अपने पास, अपने बाल बच्चों, यहां तक कि सात पीढ़ियों तक के लिए जमा कर लो। आज सुविधाएं हासिल करने का स्वार्थ ही राजनीति का पर्याय बना है। राजनीति की वह संघर्षशील पीढ़ी कब की खत्म हो गई या कर दी गई। आजादी के आंदोलन में लोग शहीद हुए, जेल गए, उनकी संपत्ति कुर्क कर ली गई, लाठियों और बूटों से उन्हें रौंदा गया। लेकिन उन्होंने आजादी के सिद्धांत को लेकर उफ तक नहीं की। हर सिद्धांत के लोगों की अपनी एक पहचान होती थी। राजनीति तब गंवाने का दौर था, सब-कुछ लुटा देने का था। आज वह दौर खत्म है, सब राजनीतिक सुख पाना चाहते हैं, राजनीति के चकाचौंध की मरीचिका में भटकते हैं। उन्होंने कहा कि चुनाव के दौर में अब कोई राजनीतिक कार्यकर्ता नजर नहीं आते, नेता और सही नेतृत्व भी नहीं है। धन से टिकट खरीदने वाले, चुनाव जीतने वाले, पद पकड़ने वाले लोग हैं। सत्ता पर कब्जा हो कर संपत्ति हड़पने की होड़ है। सादगी, संयमित, सद्भावना वाले लोग राजनीति से विलुप्त हो गए। नई पीढ़ी की राजनीतिक पौध के लिए ये आदर्श नहीं हैं, आदर्श तो वे खोजते भी नहीं। सिद्धांत सेवा से दूर दूर का वास्ता नहीं।