बिहार के आर्थिक और सामाजिक विकास पर हुआ मंथन- जीटीआरआई

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यहां की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि समृद्ध बिहार का उदाहरण



पटना 27 फरवरी ।राजधानी में शनिवार से ग्रैंड ट्रैंक रोड इनेसिएटिव (जीटीआरआई) के दो दिवसीय सेमिनार का आगाज हुआ। इसमें देश-दुनिया की 15 नामचीन हस्तियों ने तीन अलग-अलग विषयों पर तीन सत्रों में मंथन किया।
पहला सत्र, बिहार के ऐतिहासिक प्रदृश्य पर प्रकाश डालते हुए बिहार के साथ क्यों और क्या बुरा हुआ, विषय पर गहन परिचर्चा की गयी। इसमें पांच वक्ताओं ने अपने विचार प्रकट किये। विषय प्रवेश करते हुए कार्यक्रम के संरक्षक अदिति नंदन ने कहा कि बिहार को विकसित प्रदेश बनाने के लिए इसके माध्यम से बेहद सार्थक पहल की गयी है। इन दो दिनों के संवाद में प्रबुद्धजनों के आपसी मंथन और विचारों का आदान-प्रदान कर भविष्य के विकास की रणनीति तैयार करने की कवायद की गयी है।
पहले वक्ता के तौर पर आईपीएस अधिकारी विकास वैभव ने बिहार की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर विशेषतौर पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि ग्रैंड ट्रैंक रोड एक ऐतिहासिक रोड है, जो पूर्व में कोलकाता से पश्चिम में पेशावर तक को जोड़ने वाला था। वर्तमान में भी इसकी उपयोगिता काफी है। यह देश के गौरवपूर्ण इतिहास को दर्शाता है। यह संचार का भी बड़ा माध्यम है। भागलपुर के पास चंपा विश्व का पहला नगर था। यह प्राचीन संकलन यहां के अर्थशास्त्र से भी जुड़ा हुआ है। उन्होंने कहा कि राज्य में बाद में समय के साथ शासकीय व्यवस्था बदल गयी। समाज की अवधारणा धर्म प्रधान से परिवर्तित होकर अर्थ प्रधान हो गयी। उन्होंने कहा कि बाद में समाज में जाति व्यवस्था जैसी कुरीतियां हावी हो गयी, इतिहास में नंद वंश जैसे शासक का होना, यह बताता है कि पहले पौराणिक काल में हर वर्ग को समान अधिकार था। व्यक्ति की क्षमता के अनुसार उसका आंकलन होना चाहिए, तभी उसका समुचित विकास हो पायेगा।
पूर्व डीजीपी अभ्यानंद ने अपने जीवन से जुड़ी घटनाओं का उदाहरण देते हुए कुछ अहम ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के संदर्भ में बातें की। अपने पिता और अपने समय का समेकित तुलना किया।
मैडगास्कर में भारतीय राजदूत अभय कुमार ने अपनी कविता ‘नालंदा’ के माध्यम से बिहार की समृद्ध ऐतिहासिकता पृष्ठभूमि को दर्शाया। ऑनलाइन माध्यम से इस कार्यक्रम में जुड़े अभय कुमार ने इस बात पर फोकस किया कि बिहार को फिर से समृद्धशाली बनाने के लिए सभी को ज्ञान अर्जन पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है। इसी को आधार बनाकर नये बिहार को फिर से गढा जा सकता है। हर गांव में एक लाइब्रेरी होनी चाहिए, चाहे वे चलंत हो या स्थायी। ताकि बच्चों को किताबें नियमित मिलती रहे। बिहार की सबसे बड़ी पूंजी यहां का मानव संसाधन है और इसे ज्ञानवान बनाकर ही सही तरीके से इनका उपयोग कर सकते हैं।उन्होंने कहा कि बिहार के साथ कुछ भी गलत नहीं है। सिर्फ पुरानी क्षमता को फिर से विकसित करने की जरूरत है। यह मानव संसाधन का समर्धन करके ही किया जा सकता है।

*सिर्फ पोस्टर में ही नहीं हो बेटी बचाओ और बेटी पढाओ :-*

आईआईएम, बोधगया की निदेशक डॉ विनिता सहाय ने कहा कि आज जरूरत है, सिर्फ पोस्टर में ही नहीं जमीन पर भी बेटी बचाओ, बेटी पढाओ अभियान को उतारने की आवश्यकता है। बिहार की समृद्ध ऐतिहासिक पृष्ठभूमि का उदाहरण देते हुए कहा कि कोलकाता से पेशावर तक के जीटी रोड को फिर से नहीं तैयार किया जा सकता है। ऐसे में जरूरत है कि नये सिरे से पूरे शहर को गढ़ने की। इसके लिए कई स्तर पर प्रयास करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि 1990 से 2005 तक बीमारू राज्य का जो टैग था, वह अब हट गया है। अभी विकास के कई मानक देखने को मिल रहे हैं। 2015 तक सूबे की विकास दर दो अंकों तक पहुंच गयी है। इस कोविड काल में बिहार बोर्ड की परीक्षा सीबीएसई से पहले हुई है। यह बड़ी उपलब्धि है। इसके लिए संबंधित अधिकारी बधाई के पात्र हैं। राज्य के शिक्षा विभाग में बेहतरीन मंत्री और अधिकारियों के अलावा आधारभूत संरचना को बनाये रखने की जरूरत है। हर क्षेत्र में काम करके ही बिहार तरक्की कर सकता है। उन्होंने कहा कि अगर यहां के युवा खाली घुमने लगे, तो यह सबसे बड़ी आपदा होगी। इन्हें हुनरमंद बनाने, रोजगार देने और उचित अवसर प्रदान करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि यहां गुरु परंपरा को बनाये रखने की जरूरत है। शिक्षा और चिकित्सा दो ऐसे क्षेत्र हैं, जो सीधे लोगों के जीवन से जुड़ते हैं।
नालंदा विश्वविद्यालय के डीन डॉ आनंद सिंह ने कहा कि सिर्फ राजगीर के आसपास करीब 300 पौराणिक और ऐतिहासिक साइट्स हैं। इन साइट्स को विशेषतौर पर विकसित करने की जरूरत है।
दूसरा सत्र, टिकाऊ आर्थिक विकास में कृषि और कृषि ॠण की भूमिका विषय पर आधारित था। इसमें ऑनलाइन माध्यम से मुंबई से जुड़े एसबीआई फाउंडेशन के सीओओ निक्सन जोसेफ ने कहा कि ग्रामीण क्षेत्र का विकास करके ही बिहार के आर्थिक क्षेत्र में टिकाऊ विकास किया जा सकता है। इसके लिए राज्य सरकार को भी सजगता पैदा करने की जरूरत है। उन्होंने बताया कि जमुई जिले में पांच गांव को गोद लेकर टिकाऊ विकास से जुड़े सभी विकासात्मक कार्य किये जा रहे हैं। इसमें लोगों के समुचित विकास के लिए सभी सार्थक प्रयास किये जा रहे हैं। ग्रामीणों को सरकारी योजनाओं की जानकारी और उनके संचालन की जिम्मेदारी उन्हें देने जैसे कई नवीन प्रयोग किये जा रहे हैं। इसके सार्थक परिणाम मिल रहे हैं। ऐसे प्रयास राज्य भर में किये जा सकते हैं।

*बिहार के विशेष राज्य के दर्जे की मांग जायज और जरूरी :-*

वित्त विभाग के प्रधान सचिव डॉ एस सिद्धार्थ ने कहा कि राज्य की आर्थिक स्थिति काफी बेहतर हुई है, लेकिन अब भी चुनौती काफी बरकरार है। यहां की आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए विशेष राज्य के दर्जे की जरूरत है। यह मांग बेहद लाजमी और आज के संदर्भ में बेहद जरूरी भी है। राज्य में ऋण यानी बाजार में पैसे के प्रवाह को बढावा देने के लिए यहां के बैंकों के सीडी (क्रेडिट डिपॉजिट) रेसियो को बढावा देने की जरूरत है। आंध्र प्रदेश का सीडी रेसियो 125 प्रतिशत, महाराष्ट्र का 102 प्रतिशत, गुजरात का 74 प्रतिशत है। बिहार में इस अनुपात को पाने के लिए बैंक बेहद महत्वपूर्ण सेक्टर है। यह रौशनी के द्वार की तरह है। बैंक अगर बाजार में वापस डालेंगे, तो इससे यहां की अर्थव्यवस्था दोगुनी हो जायेगी। राज्य सरकार सेक्टर डेवलपमेंट पर खासतौर से काम कर रही है। अगर यह प्रयास लगातार पांच साल तक जारी रहा, तो बिहार विकसित राज्य बन जायेगा। इससे टैक्स संग्रह भी बढ़ेगा।
गन्ना उद्योग विभाग की प्रधान सचिव डॉ एन विजयलक्ष्मी ने कहा कि ग्रामीण क्षेत्र में लोन की सुलभता बढ़ा कर इसे समृद्ध किया जा सकता है। कृषि, पशुपालन, मत्स्य पालन के क्षेत्र में निवेश को बढ़ाकर इसे मजबूत किया जा सकता है।
इस कार्यक्रम को प्राकृतिक विशेषज्ञ रीचा रंजन, आरबीएल बैंक के उपाध्यक्ष कौशिक चटर्जी ने भी संबोधित किया।
तीसरे सत्र का विषय तकनीक, व्यावधान एवं अस्तित्व में रहने की कवायद रहा। इसे कॉम्यूनिकेशन स्ट्रेटजी के मर्मज्ञ राजकुमार झा, देहात फाउंडेशन के शशांक कुमार, विप्रो के अंतर्राष्ट्रीय ऑपरेशन प्रमुख कुणाल सिन्हा, आईआईटी पटना के प्रो ऋषि राज और भारत फंड के सरस अग्रवाल ने संबोधित किया।


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