बिहार में ठहर गई प्रगति की रफ्तार कोरोना से

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पटना, 23 मार्च (हि.स.)। वैश्विक महामारी कोविड-19 का असर गहरा हुआ है। इस महामारी ने जनजीवन के साथ-साथ आर्थिक ताने-बाने को भी झकझोर दिया है। वर्ष 2020-21 में बिहार सरकार का कुल बजट 2.11 लाख करोड़ रुपये का था। लेकिन, कोरोना की रोकथाम के लिए राज्य सरकार को करीब 22 हजार करोड़ रुपये खर्च करने पड़ गए।

वित्त वर्ष 2020-21 के प्रारंभ में ही कोरोना महामारी ने राज्य को अपनी चपेट में लेना प्रारंभ कर दिया था। 42 विभागों के लिए तैयार होने वाला करीब 2.11 लाख करोड़ रुपये का बजट पेश होने के साथ ही चरमरा गया। कई विभाग ऐसे रहे जो पूरे साल कोई काम नहीं कर पाए। स्वास्थ्य, खाद्य आपूर्ति, कल्याण और आपदा जैसे विभागों का पैसा सीधे-सीधे कोरोना और लॉक-डाउन के कारण पैदा हुई विकट परिस्थियों में करीब-करीब खर्च हो गया।

बिहार एक ऐसा राज्य है, जहां से कामगार रोजगार के लिए अन्य प्रदेशों में जाते हैं। लॉक-डाउन की वजह से दूसरे प्रदेशों में फंसे कामगारों के लिए केंद्र सरकार से अनुरोध कर राज्य सरकार ने कई स्पेशल ट्रेनें चलवाईं, जिससे 10.71 लाख प्रवासी मजदूरों को बिहार लाया गया। इस मंदी में सरकार के 121.37 करोड़ रुपये खर्च हुए।

प्रवासी मजदूरों के ठहरने के लिए प्रखंड एवं पंचायत स्तर पर क्वारन्टाइन केंद्र स्थापित किए गए, जिसमें इन प्रवासियों को 14 दिन ठहराया गया। इन केंद्रों पर 14.82 लाख रुपये निबंधित अन्य राज्यों से आये श्रमिक और उनके परिवारजन ठहरे। क्वारन्टाइन सेंटर में औसतन 5,300 रुपये खर्च किये गए। क्वारन्टाइन सेंटर में रह रहे लोगों पर करीब इस मद में 785.46 करोड़ रुपये खर्च किए गए।

लॉकडाउन की वजह से आर्थिक कठिनाइयों का सामना कर रहे 1.64 करोड़ राशन कार्डधारियों के खाते में डीबीटी के माध्यम से एक हजार रुपये भेजे गए, जिसपर राज्य सरकार का 1,600 करोड़ रुपये का खर्च आया। लॉकडाउन के कारण बिहार से बाहर फंसे प्रवासियों के खाते में भी मुख्यमंत्री राहत कोष से 20.95 लाख लोगों के खाते में एक हजार रुपये डीबीटी माध्यम से स्थानांतरित किया गया। इस मद में राज्य सरकार का करीब 210 करोड़ रुपये खर्च हुआ। वित्तीय वर्ष 2020-21 में सरकारी आंकड़ों के मुताबिक तीन महीने तक लगभग 30 लाख लोगों को आपदा राहत केंद्रों में भोजन कराया गया।

राज्य सरकार के प्रयासों का दिखा असर

राज्य में कोरोना संक्रमण के खतरों से निपटने के लिए संक्रमित लोगों की पहचान जरूरी थी। राज्य सरकार ने कोविड-19 की जांच अभियान के रूप में शुरू की। जांच के बाद कोविड-19 मरीजों को पृथकवास में रखा गया। साथ ही उनको मुफ्त दवा दी गयी। 12 सरकारी लैब में आरटी-पीसीआर जांच की व्यवस्था की गयी। कोविड-19 की रोकथाम के लिए आंकड़ों के मुताबिक प्रति दस लाख जनसंख्या पर 1.72 लाख लोगों की जांच की गयी। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र स्तर तक जांच रिपोर्ट देने की व्यवस्था की गई।

राज्य के सभी छह निजी चिकित्सा महाविद्यालयों और अस्पतालों में आरटी-पीसीआर जांच की व्यवस्था की गई। यही कारण रहा कि बिहार कोविड-19 की रिकवरी रेट में लगातार सुधार हुआ। वर्तमान में राज्य की रिकवरी रेट 99 प्रतिशत से अधिक है। बिहार राज्य में कोविड-19 से मौत का औसत भी राष्ट्रीय औसत से काफी काम 0.58 प्रतिशत है।

वित्त वर्ष 2020-21 में राज्य का राजस्व घाटा और राजकोषीय घाटा

वित्त वर्ष 2020-21 में राज्य को 5,186.57 करोड़ रुपये का राजस्व घाटा हुआ और राजकोषीय घाटा भी दुगने से ऊपर रहा। 2020-21 के लिए बिहार सरकार का बजट 2,11,761.49 करोड़ रुपये का था, लेकिन खर्च 2,25,458.05 करोड़ रुपये किया गया। सरकार ने जिस राजकोषीय घाटा का अनुमान 20,374 करोड़ रुपये लगाया था, वह बढ़कर 43,736.66 करोड़ का हो गया। प्रावधान है कि राजकोषीय घाटा तीन प्रतिशत के अंदर रखा जाता है। लेकिन कोरोना की वजह से यह करीब दोगुना छह प्रतिशत से भी ऊपर चला गया।

 


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