बिहार में जदयू-भाजपा के तल्ख रिश्तों के बीच भाजपा ने अपने नए प्रदेश अध्यक्ष का चयन सामाजिक और राजनीतिक हितों को साधते हुए किया है। राजनीतिक हालात ऐसे हैं कि बिहार का नेतृत्व पिछड़े वर्ग का कोई नेता ही कर सकता है। ऐसा लालू प्रसाद यादव के कार्यकाल के दौरान जातीय राजनीति को हवा देने के कारण हो रहा है। लालू ने बिहार में जातीयता का जमकर जहर घोला था। इससे विकास, सामाजिक समरसता और अन्य मुद्दे गौण हो गए। जातीयता का बोलबाला बढ़ गया। अगड़े और पिछड़ों की लड़ाई में पिछड़ों का पलड़ा हमेशा से भारी रहा है। बिहार में विधानसभा के अगले चुनाव के लिए जदयू नीतीश कुमार को अपना नेता पहले ही घोषित कर चुकी है। लेकिन उसके सहयोगी भाजपा में अंदरखाने नीतीश कुमार को नेता मानने को लेकर मतभेद है। नीतीश कुमार कैबिनेट के उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी एक ट्वीट कर अपनी पार्टी में ही आलोचना के शिकार हो रहे हैं। उन्होंने कहा था कि ‘नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही एनडीए अगला विधानसभा चुनाव लड़ेगा’। हालांकि जब पार्टी में विरोध बढ़ा तो सुशील मोदी ने चुपके से अपना ट्वीट हटा लिया। इससे पहले विधान परिषद के सदस्य और भाजपा के वरिष्ठ नेता संजय पासवान नीतीश कुमार को केंद्र की राजनीति में जाने की नेक सलाह दे चुके थे। संजय पासवान की सलाह का जदयू नेताओं ने कड़ा विरोध किया था। राज्यसभा के पूर्व सदस्य पवन वर्मा ने तो भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व से स्थिति स्पष्ट करने की मांग कर डाली थी। इस बीच, भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने सुशील कुमार मोदी को साधते हुए उन्हीं की जाति के डॉ. संजय जायसवाल को सूबे की कमान सौंप दी है।
सुशील मोदी के ट्वीट से उपजे सवाल
भाजपा-जदयू में बढ़ते खटास को भांपते हुए सुशील कुमार मोदी ने ट्वीटर पर लिखा था ‘नीतीश कुमार बिहार में एनडीए के कैप्टन हैं और 2020 में होने वाले विधानसभा चुनाव में भी वही कैप्टन बने रहेंगे।’ लेकिन भाजपा में ही ट्वीट को लेकर बवाल मच गया। अब नये प्रदेश अध्यक्ष के नाम की घोषणा के साथ ही राजनीतिक पंडितों का मानना है कि सुशील मोदी को आंख दिखाने के लिए उसी वर्ग से प्रदेश अध्यक्ष डॉ. संजय जायसवाल को बना दिया गया। बहरहाल, जदयू इसे कोई बड़ी बात नहीं मान रही है।
भाजपा में सांगठनिक बदलाव का दौर
लोकसभा चुनाव के बाद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में सांगठनिक स्तर पर बदलाव का दौर जारी है। बिहार भाजपा में अध्यक्ष को लेकर कयासों का दौर जारी था। सांसद डॉ. संजय जायसवाल को बिहार का नया अध्यक्ष बनाए जाने के साथ ही नामों को लेकर लग रही कयासबाजी का दौर थम गया। बता दें कि केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय के मोदी कैबिनेट में शामिल होने के बाद से ही कई नामों की चर्चा थी। लेकिन, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने डॉ. संजय जायसवाल पर भरोसा जताते हुए इन्हें ये अहम जिम्मेदारी सौंपी है।
जातीय समीकरण एक चाल
बिहार की राजनीति में सबकुछ ठीक चल रहा था। लेकिन भाजपा विधान पार्षद संजय पासवान का बयान कि ‘नीतीश कुमार को मुख्य़मंत्री बनाने का मौका अब भाजपा को दे देना चाहिए’ ने एक नया बखेड़ा खड़ा कर दिया है। जदयू नेताओं का साफ कहना है कि अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में भी एनडीए की तरफ से नीतीश कुमार ही पार्टी का चेहरा होंगे। पासवान के इस बयान के बाद जदयू नेताओं ने यहां तक कह दिया कि इसका निर्णायक भाजपा नहीं है। इसी बीच दिल्ली जाकर गिरिराज सिंह से संजय पासवान का मिलना और आनन-फानन में डॉ. संजय जायसवाल के नाम की घोषणा ने बिहार में राजनीतिक तापमान बढ़ा दिया है।
भाजपा की सबसे कमजोर पकड़
पिछड़े वर्गों में सबसे बड़ी आबादी यादवों की है। भाजपा की सबसे कमजोर पकड़ इसी वर्ग में है। भाजपा को पिछड़े वर्ग से तेजतर्रार नेताओं को नेतृत्व के लिए आगे लाना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि डॉ. संजय जायसवाल किसी गुटबाजी में नहीं रहते हैं। लेकिन प्रो. नवल किशोर यादव जैसे कद्दावर नेता को भाजपा क्यों नहीं आगे ला रही है? नवल किशोर की जमीनी पकड़ यादवों सहित अन्य जाति वर्गों में बराबर की मानी जाती है। लालू प्रसाद के राजनीतिक वनवास में होने का फायदा ऐसे नेताओं को आगे कर भाजपा को उठाना चाहिए। यादवों के सिरमौर लालू परिवार खुद अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है।
जनता का मिजाज किसके साथ
पिछले 15 वर्षों से नीतीश सरकार के अच्छे काम करने के बावजूद बिहार की जनता में इस सरकार की लोकप्रियता में कमी आयी है। लेकिन जदयू की सांगठनिक क्षमता बढ़ी है। राजद अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है। उसके विधायक महेश्वर यादव ने बगावत का बिगुल बुलंद कर दिया है। उनका दावा है कि राजद के करीब 60 विधायक अलग गुट बनाने पर विचार कर रहे हैं। वे तेजस्वी के नीतीश विरोध को बचकाना बताते हैं। जाहिर है, यदि ऐसा होता है तो राजद छोड़नेवाले नेता नीतीश के मददगार हो सकते हैं। कांग्रेस खुद अपने पैरों पर कुल्हाड़ी चला चुकी है। भाजपा को यह लगता है कि बिहार में एनडीए के तहत चुनाव लड़कर ज्यादा से ज्यादा सीट प्राप्त कर राज्य का मुख्ममंत्री पद अपने कब्जे में करें। अगर त्रिकोणीय मुकाबला होता है तो विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा फायदे में रहेगी। भाजपा इस बात को लेकर पूरी तरह से सतर्क है कि वर्ष 2015 के विधानसभा चुनाव की तरह किसी भी तरह 2020 के चुनाव में जदयू और राजद एक साथ न हों। अभी भाजपा में नए प्रदेश अध्यक्ष का चयन हो गया है लेकिन देखना दिलचस्प होगा कि नीतीश कुमार के साथ उसकी राजनीतिक जुगलबंदी कितना फीट बैठती है। इसी जुगलबंदी के आधार पर ही नीतीश कुमार एवं सुशील कुमार मोदी के अस्तित्व को परखा जा सकेगा।