प्रेरक पर्वतारोही बनाया जिद और जुनून ने भावना डेहरिया को

0

मेहनत-लगन से तामिया से हिमालय और किलिमंजारो तक का सफर तय कर म.प्र का नाम किया रोशन



छिन्दवाड़ा, 08 मार्च (हि.स.)। कहते हैं, ‘अगर पूरी शिद्दत से प्रयास किया जाए तो सपने बेशक सच होते हैं, फिर चाहे हालात जैसे भी हो।’ छिंदवाड़ा जिले के प्रसिद्ध स्थल पातालकोट से महज़ 17 किलोमीटर दूर स्थित ग्राम तामिया की बेटी भावना डेहरिया का पर्वतारोही बनने का सपना भी कुछ ऐसे हालातों के बाद साकार हो सका है। भावना विश्व की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट फतह करने वाली मध्यप्रदेश की बेटियों में शामिल हो गई हैं और उसने अफ्रीका की सबसे ऊंची चोटी किलिमंजारो पर पिछली दीपावली पर तिरंगा लहराकर प्रदेश और देश को गौरवान्वित किया है। भावना की जिद और जुनून ने उसके हौसलों को साहस और हिम्मत दी है जिससे वह आज नन्हे पर्वतारोहियों के लिये एक प्रेरक पर्वतारोही भी बन गई है।

गांव की बेटी भावना के लिए पातालकोट की पहाड़ियों से हिमालय तक का सफर इतना आसान नहीं था। ग्राम तामिया में 12 नवंबर 1991 को जन्मी भावना डेहरिया ग्रामीण परिवेश में रहने वाली चार बहन और एक भाई के बीच तीसरे नंबर की बहन है । पिता मुन्ना लाल डेहरिया शिक्षक और माता उमा देवी डेहरिया गृहणी है। बचपन से ही प्रकृति से प्रेम रखने वाली भावना खेलकूद में हमेशा अव्वल रही। पढाई और खेल-कूद के साथ ही घर में पशुपालन में भी सहयोग करती थीं। स्कूल से घर आकर पहाड़ों से पालतू पशुओं को लौटा कर घर लाना भावना का काम था। इस दायित्व को निभाने के दौरान उपजे पहाड़ों के प्रति प्रेम से ही शायद उन्हें पर्वतारोही बनने की प्रेरणा मिली और उन्होंने यह मुकाम पाया है।

भावना ने बातचीत में बताया कि वर्ष 2009 में तत्कालीन कलेक्टर निकुंज कुमार श्रीवास्तव द्वारा पातालकोट में एडवेंचर्स प्रोग्राम का आयोजन उनके जीवन का टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ। उसके पहले तक भावना को यह नहीं पता था कि पर्वतारोहण भी कोई गतिविधि है और इसके लिए किसी कोर्स की जरूरत पड़ती है। भावना ने स्कूल के दौरान बास्केट बॉल और साइकल पोलो में नेशनल खेला है। खेलकूद में अव्वल रहने के कारण भावना को तामिया के शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय से एक हफ्ते के लिए इस एडवेंचरस प्रोग्राम में शामिल होने का मौका मिला, जहां उसने सभी गतिविधियों में अच्छा प्रदर्शन किया, लेकिन उसका असली हुनर तब सामने आया जब उसने बड़ी ही आसानी से रॉक क्लाइंबिंग की । इसे देखकर कार्यक्रम के आयोजक भी भावना से बहुत प्रभावित हुए और उनसे ही भावना को पर्वतारोहण गतिविधि और उसके लिए किए जाने वाले कोर्सेज की जानकारी मिली।

कैंप खत्म हो गया था, लेकिन अब भावना के मन में पर्वतारोही बनने का सपना घर कर गया था। शासकीय उत्कृष्ट विद्यालय तामिया से 12वीं की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद भावना को उच्च शिक्षा के लिए उनकी बडी बहिन भोपाल ले गई। उच्च शिक्षा के दौरान भोपाल में भी भावना को कई एडवेंचरस गतिविधियों में शामिल होने का अवसर मिला, लेकिन पर्वतारोहण संस्थानों की जानकारी नहीं मिल पा रही थी। गूगल से सर्च करने पर उसे उत्तरकाशी स्थित एशिया के बेस्ट संस्थान नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ माउंटेनियरिंग की जानकारी मिली। तत्काल उसने अपना आवेदन दे दिया, लेकिन आवेदन देने के दो साल बाद उसका नंबर आया। तभी उसे पता चला कि कोर्स की फीस 7 हजार 500 रुपये है। सामान्य आर्थिक परिवार की भावना के लिए उच्च शिक्षा के खर्चे के साथ-साथ यह अतिरिक्त राशि कम राशि नहीं थी। इस दौरान वे भोपाल में अपने छोटे भाई-बहन की पढाई का पूरा जिम्मा भी एक पेरेन्ट की तरह उठा रही थीं ।

इन सब जिम्मेदारियों के बाद भी उसने माता-पिता से फीस के लिये नहीं कहा, बल्कि एडवेंचर्स गतिविधियों से प्राप्त प्रोत्साहन राशि को ही इसमें लगा दिया। बेसिक माउंटेनियरिंग कोर्स को ए-ग्रेड से क्वालीफाई करने के बाद ही एडवांस कोर्स की ट्रेनिंग मिलती है। भावना की लगन और मेहनत से उसने ए-ग्रेड के साथ बेसिक माउंटेनियरिंग कोर्स क्वालीफाई किया। उसके बाद एडवांस कोर्स और एम.ओ.आई. कोर्स किया। कोर्स के साथ पहली बार उसने गढ़वाल हिमालय की डीकेडी चोटी चढ़ी, जिसके बाद भावना में अब आत्मविश्वास आ चुका था, माउंटेनियरिंग से जुडे सारे कंसेप्ट क्लियर हो चुके थे।

इंडियन माउंटेनियरिंग फाउंडेशन दिल्ली की तरफ से मध्यप्रदेश से भावना को चुना गया और उसने 6 हजार मीटर की चोटी मनीरंग पार की। अब माउंट एवरेस्ट चढ़ने का सपना पूरा करने की बारी थी। उत्साह से भरी भावना 2 अप्रैल को भोपाल से काठमांडू के लिए निकली और 6 अप्रैल से उसकी यादगार यात्रा की शुरुआत हुई और अंततः भावना ने 22 मई 2019 को विश्व की सबसे उंची चोटी पर पहुंचकर देश का तिरंगा लहराया। इसके बाद आत्मविश्वास से लबरेज भावना ने अफ्रीका के किलिमंजारो में दीवाली के दिन 27 अक्टूबर 2019 को भारत का तिरंगा लहराकर प्रदेश को गौरवान्वित किया। उन्होंने यह साबित कर दिया है कि बेटियां किसी भी क्षेत्र में पीछे नहीं हैं।


प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *