बंगाल : तृणमूल और भाजपा को माकपा दे रही टक्कर,हावड़ा की बाली विधानसभा सीट पर
हावड़ा, 08 अप्रैल (हि. स.)। हावड़ा जिले की बाली विधानसभा सीट कुछ मायनों में बेहद खास है। राजधानी कोलकाता के बेहद करीब होने की वजह से इसकी अपनी एक भौगोलिक अहमियत है। कभी कांग्रेस की परंपरागत सीट रही बाली लंबे समय तक माकपा का गढ़ बनी रही। हालांकि विगत दो चुनावों से यहां तृणमूल का कब्जा है।
बाली विधानसभा सीट पर पिछले चुनाव में तृणमूल के टिकट पर जीत दर्ज कर चुकीं पूर्व क्रिकेट प्रशासक दिवंगत जगमोहन डालमिया की सुपुत्री वैशाली डालमिया अब खेमा बदलकर भाजपा से उम्मीदवार हैं। तृणमूल कांग्रेस ने डॉ. राणा चटर्जी को टिकट दिया है जो राजनीति खिलाड़ी के रूप में अपेक्षाकृत नए हैं। यहां संयुक्त मोर्चा की ओर से माकपा ने युवा चेहरे दीप्सिता धर को मैदान में उतारा है। एक राजनीतिक पृष्ठभूमि वाले परिवार से ताल्लुक रखने वाली दिप्सिता को उम्मीद है कि इस बार बाली की जनता उन पर भरोसा जरूर करेगी। 28 वर्षीय दिप्सिता के दादा हावड़ा जिले के डोमजूड सीट से तीन बार विधायक रह चुके हैं।
गुरुवार को हिन्दुस्थान समाचार से वार्ता करते हुए दिप्सिता ने बताया कि उनका जन्म बाली में ही हुआ, इस लिहाज से वह भूमि पुत्र हैं। उनके पिता सीटू के सक्रिय सदस्य रह चुके हैं, जबकि मां दीपिका ठाकुर दो बार बाली के निश्चिंता ग्राम पंचायत की सदस्य रह चुकी हैं और अभी भी वामपंथी राजनीति से जुड़ीं हैैं। दिप्सिता की स्कूल की पढ़ाई बाली में ही हुई। राजनीतिक परिवेश में परवरिश होने के बावजूद उन्होंने कभी सोचा नहीं था कि राजनीति ही उनका भविष्य बनेगा।
दिप्सिता ने पापुलेशन ज्योग्राफी स्पेशलाइजिंग इन माइग्रेशन विषय पर शोध भी किया है। अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत के बारे में पूछने पर दिप्सिता ने हिन्दुस्थान समाचार को बताया कि मेरे राजनीतिक जीवन की शुरुआत आशुतोष कॉलेज से हुई। उसी वक्त से मैं तृणमूल के अत्याचार देख रही हूं। उन्होंने बताया कि 2012 में भारी हिंसा के बीच हुए छात्र संगठन चुनाव में उन्हें पराजय झेलना पड़ी थी। 2013 में उन्होंने दिल्ली के जवाहर लाल यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया तो वहां भाजपा का एक नया रूप देखने को मिला। जेएनयू में प्रथम वर्ष के दौरान में काउंसलर पद के चुनाव में भी उन्हें हार का सामना करना पड़ा। 2014 में स्कूल ऑफ सोशल साइंस के काउंसिल पद पर चुनाव पर उन्हें जीत मिली थी। लेकिन 2015 में जेएनयूएसयू के चुनाव में सभापति पद पर उन्हें हार का सामना करना पड़ा।
दिप्सिता ने बताया कि भाजपा कितनी नुकसानदेह हो सकती है, पश्चिम बंगाल के लोग अभी नहीं समझ पा रहे हैं। दूसरी तरफ बाहर के लोगों को नहीं पता कि तृणमूल किस हद तक गिर सकती है।मैंने घर और बाहर दोनों शत्रुओं को देख और जाना है और यही मैं लोगों को समझाने की कोशिश करती हूं। माकपा के चुनाव में बड़ी संख्या में युवा चेहरों को टिकट देने के सवाल पर दिप्सिता कहती हैं कि यह एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है। इससे पहले भी कई युवा चेहरों को चुनाव में उतारा जाता रहा है। युवा होने की वजह से हम युवाओं की बातों को आगे रख सकते हैं।
बाली विधानसभा सीट के राजनीतिक इतिहास की बात करें तो यहां 1951 से 1967 के बीच और फिर 1972 और 87 में कुल छह बार कांग्रेस चुनाव जीत चुकी है। 1967, 71 एवं 77 से 2006 तक कुल 8 बार इस सीट पर माकपा का कब्जा रहा लेकिन 2011 में तृणमूल कांग्रेस ने माकपा से यह सीट छीन ली। तृणमूल से सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी सुल्तान सिंह ने 50.42 प्रतिशत वोट हासिल कर चुनाव जीता था। 2016 के चुनाव में तृणमूल की वैशाली डालमिया को 46.97 प्रतिशत मतों के साथ विजयी रही थीं, जबकि माकपा को सिर्फ 33.25 प्रतिशत वोट हासिल हुए।
अब जबकि वैशाली डालमिया भाजपा में आ चुकी हैं, ऐसे में इस सीट का चुनावी गणित काफी हद तक बदल चुका है। अब यहां भी भाजपा मुकाबले में है। ऐसे में इस सीट पर माकपा की जीत की संभावनाओं पर दिप्सिता ने बताया कि बाली में सभी मुझे पहचानते हैं। मेरे परिवार का यहां एक राजनीतिक इतिहास है। मेरे दादाजी दो बार वाम विधायक रहे हैं। हमारी पार्टी का संगठन जो तृणमूल के अत्याचार की वजह से बिखर गया था एक बार फिर संगठित हो चुका है उसे यही हमारी ताकत है।
उल्लेखनीय है कि बाली विधानसभा क्षेत्र में चौंथे चरण के तहत आगामी 10 अप्रैल को मतदान होना है।