बांग्लादेश के हालात पर विशेषज्ञों की राय : इस्लामी कट्टरपंथ के सितम से घटती रही हिंदू आबादी

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कोलकाता, 21 अक्टूबर (हि.स.)। इस बार बंगाली समुदाय के वैश्विक त्यौहार दुर्गा पूजा के दौरान बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदुओं के खिलाफ हुई हिंसक घटनाओं ने पूरी दुनिया का ध्यान आकृष्ट किया। तोड़फोड़, मारकाट, पंडालों में आगजनी और एक इस्कॉन कार्यकर्ता की हत्या जैसी घटनाओं ने इस देश में रह रहे हिंदू आबादी की सुरक्षा को लेकर गंभीर सवाल खडे हो गये। वैसे बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर इस्लामी कट्टरपंथियों के सितम का पुराना इतिहास रहा है। यही वजह है कि बांग्लादेश से हिंदुओं का लगातार पलायन होता रहा।

लगातार कम हुई है बांग्लादेश में हिंदू आबादी

मौजूदा आंकड़ों पर गौर करें तो 1901 में जब पृथक बांग्लादेश का गठन हुआ था तब देश की कुल आबादी में 33 फ़ीसदी हिंदू थे। 10 सालों बाद 1911 में उनकी संख्या घट कर 31.50 फ़ीसदी पर जा पहुंचा। उसके बाद हर 10 साल पर होने वाली जनगणना में हिंदू आबादी तेजी से घटती रही। सन 1921 में 30.60, 1931 में 29.40, 1941 में 28 फीसदी, 1951 में 22.05 फ़ीसदी, 1961 में 18.50 फ़ीसदी, 1974 में 13.5 फीसदी, 1981 में 12.13 फ़ीसदी, 1991 में 10.51 फीसदी, 2001 में 9.60 फीसदी और अंतिम जनगणना 2011 के मुताबिक बांग्लादेश में हिंदुओं की आबादी महज 8.54 फ़ीसदी रह गई है। बांग्लादेश के वर्तमान हालात और हिंदुओं की स्थिति को लेकर “हिन्दुस्थान समाचार” ने बांग्लादेश के हालात पर करीब से नजर रखने वाले कुछ विशेषज्ञों से बात कर उनकी राय जानने की कोशिश की है। प्रस्तुत है उनसे बातचीत के खास अंश

*प्रदीप भट्टाचार्य**(कांग्रेस नेता, राज्यसभा सदस्य)।* –

1901 के बाद से पूर्वी बंगाल से हिंदुओं के पलायन का मुख्य कारण कोलकाता में मुख्य रूप से अच्छी गुणवत्ता वाली शिक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्था की उपलब्धता रही है। लॉर्ड कर्जन के बंगाल विभाजन के आह्वान ने भी कई हिंदुओं के पलायन को बढ़ावा दिया था। मैंने रवींद्रनाथ और शरत चंद्र के लेखन और आत्मकथाओं में देखा है कि पूर्वी बंगाल में हिंदुओं का नियंत्रण था। विभाजन के दौरान धार्मिक कारणों से पलायन का मामला सामने आया है। यह अभी भी चल रहा है।

डॉ. पंकज कुमार रॉय (प्रिंसिपल, योगेश चंद्र चौधरी कॉलेज) –

सन 1901 में, बांग्लादेश की हिंदू आबादी 33 फीसदी थी। आधी सदी बाद, 1947 की खंडित स्वतंत्रता के बाद, हिंदू आबादी घटकर 22.5 फीसदी रह गई। 1952 के भाषा आंदोलन या 1971 के स्वतंत्रता संग्राम के बाद भी हिंदू आबादी के पतन को रोकना संभव नहीं हुआ। आज बांग्लादेश में हिन्दुओं की आबादी घटकर महज 8.5 फीसदी रह गई है। हालांकि दुर्गा पूजा को दुर्गोत्सव में तब्दील कर दिया गया था, लेकिन प्रशासन के ‘सबकी पूजा” के वादे के बावजूद, दुर्गा मंडप, मंदिर या हिंदुओं के घरों में धोखे से हमले किये गये। धार्मिक कट्टरता, काफिर महिलाओं के प्रति मोह, धन की लालसा और धार्मिक संघर्ष बांग्लादेश के सामाजिक जीवन में गहरे उतर गए हैं। एक दौर में हिंदू बहुल रहे अफगानिस्तान पर आज तालिबान का कब्जा है। ऐसा लगता है जैसे सिंधु घाटी सभ्यता के स्रोत पर हिंदू विलुप्त होने के कगार पर हैं।

डॉ मोहित रॉय (भाजपा प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य एवं शरणार्थी मामलों की समिति के संयोजक)- लोग अकाल, गृहयुद्ध, प्राकृतिक आपदाओं और आजीविका की तलाश में अपनी मातृभूमि छोड़ देते हैं लेकिन बांग्लादेश के हिंदुओं के पलायन के पीछे उपरोक्त में से कोई कारण नहीं रहा है बल्कि इस्लामी कट्टरपंथियों द्वारा किये गये उत्पीड़न, संपत्ति पर कब्जा, मंदिरों में तोड़फोड़ और अपवित्रता, महिलाओं के साथ बलात्कार और अभद्रता, धर्मांतरण की धमकी जैसे कारणों के चलते हिंदू अपनी मातृभूमि छोड़ रहे हैं। यह इस्लामी समाज में राष्ट्र पर कब्जा करने का एक सतत कार्यक्रम है।

डॉ. रथिन चक्रवर्ती (प्रसिद्ध चिकित्सक) –

बांग्लादेश में हिंदू समुदाय पर हमले को लेकर एक बात बहुत स्पष्ट रूप से ध्यान देने योग्य है। हमारे बुद्धिजीवियों ने कश्मीर, लद्दाख सीमा और अब बांग्लादेश में पीड़ित लोगों के लिए एक भी मोमबत्ती जुलूस नहीं निकाला है। चटगांव में इतनी बड़ी संख्या में भीड़ आश्रय के लिए निकली है। यह उनके अस्तित्व के लिए है। वे बदकिस्मत लोग हैं। कम से कम उनके लिए दुआ तो करो।

देवसदय दत्त (चार्टर्ड एकाउंटेंट) –

मुझे बांग्लादेश में हिंदुओं पर होने वाले अत्याचार के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। नोआखली में मेरी मां के परिवार का बहुत बुरा हाल है। एक शरणार्थी मामा मेरी दादी से मिलने आते थे और लगातार रोते थे। मुझे बाद में पता चला कि उनकी पत्नी और सबसे बड़ी बेटी का अपहरण कर लिया गया है। बचपन से ही यह बात मुझे काफी दुखी करती रही है।

शुभेंदु मजूमदार (लेखक-शोधकर्ता, पूर्व प्रोफेसर) –

हिंदू बंगालियों को अपनी जान की कीमत पर मातृभूमि छोड़ने के लिए मजबूर किया जा रहा है। हिंदू अल्पसंख्यक जिहादियों के डर से अब अपनी जान बचा कर भाग रहे हैं। प्रतिबंधित इस्लामी चरमपंथी दुनिया भर में पैन-इस्लामिक शासन लागू करने की मुहिम चला रहे हैं। इन जिहादियों के खिलाफ वैश्विक स्तर पर एक बड़ा लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष मोर्चा बनाना अनिवार्य है।

निरंजन रॉय (पूर्व प्रधानाध्यापक जगबंधु हाई स्कूल-सुबह शाखा)-

1975 में शेख मुजीबुर रहमान की हत्या के बाद बंगाली राष्ट्रवाद और धर्मनिरपेक्षता की भावना को नष्ट कर दिया गया था। राष्ट्रपति इरशाद के शासन के दौरान, इस्लाम को संविधान में राज्य धर्म के रूप में स्वीकार किया गया था। परिणामस्वरूप, हिंदुओं की धार्मिक स्वतंत्रता बहुत कम हो गई। जमात-ए-इस्लाम और हेफ़ाज़त-ए-इस्लाम जैसे चरमपंथी समूहों की ताकत में इजाफा होता रहा। नतीजतन, हिंदू डर के मारे देश छोड़कर पलायन करते चले गए।

सोमा बनर्जी (मीडिया सलाहकार, चित्तरंजन राष्ट्रीय कैंसर संस्थान)- सुरक्षा के अभाव में बांग्लादेश में रहने वाले हिंदुओं को अपनी मातृभूमि छोड़कर अन्यत्र जाने को मजबूर होना पड़ रहा है।

कट्टरपंथियों के डर से हिंदू जीवित रहने की उम्मीद में अपनी मातृभूमि छोड़कर दूसरे देशों में जा रहे हैं। बांग्लादेश के कट्टरपंथियों ने यह साबित कर दिया है कि इस्लामी देशों में दूसरे धर्म के लोगों को न्यूनतम दर्जा भी नहीं दिया जाता है।


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