बेगूसराय, 11 सितम्बर (हि.स.)। बिहार विधानसभा चुनाव की तारीखों का एलान कभी भी हो सकता है लेकिन बेगूसराय की सातों विधानसभा सीटों को लेकर चुनाव सरगर्मी तेज हो गई है। टिकट के दावेदार सभी दलों के संभावित प्रत्याशी आलाकमान के पास बायोडाटा जमा करने लगे हैं, अपने सामाजिक और राजनीतिक कार्यों को गिना रहे हैं। जमा बायोडाटा के आधार पर प्रत्याशियों के चयन के लिए विभिन्न स्तर पर जांच-पड़ताल कराई जा रही है। ऐसे में एससी-एसटी के लिए जिले की एकमात्र सुरक्षित विधानसभा सीट बखरी इस बार हॉट सीट बन चुकी है। जिले भर के कई नेता यहां से चुनाव लड़ना चाहते हैं।
बेगूसराय में कम्युनिस्टों का गढ़ मानी जाने वाली बखरी सीट से अब तक 15 विधायक चुने गए हैं, जिनमें से दस बार सीपीआई ने यहां कब्जा जमाया है। पहले विधानसभा चुनाव 1951 में शिवव्रत नारायण सिंह और 1962 में मेदनी पासवान को छोड़कर कांग्रेस यहां कभी नहीं जीत सकी। 2000 एवं 2015 में राजद को तथा एक बार 2010 में भाजपा को यहां से परचम लहराने का मौका मिला था।
फिलहाल, इस बार के चुनाव के लिए अब तक यहां दो दल के प्रत्याशी करीब-करीब घोषित हो चुके हैं। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) अपने पूर्व प्रत्याशी सूर्यकांत पासवान को मैदान में उतारेगी। वहीं पप्पू यादव की जनाधिकार पार्टी (जाप) से बखरी के प्रखंड प्रमुख तुलसी तांती उम्मीदवार हो सकते हैं। महागठबंधन के कोटे में यह राजद की सिटिंग सीट है लेकिन गठबंधन में इस बार शामिल हुई सीपीआई पूरे दमखम से तैयारी में है तथा कार्यकर्ता एवं नेतृत्व हर हाल में यहां से चुनाव लड़ना चाहते हैं।
विधायक उपेंद्र पासवान करीब-करीब सभी पंचायतों में काम करने तथा युवाओं को पार्टी के प्रति आकर्षित करने की बात को लेकर फिर से अपनी दावेदारी बता रहे हैं। वहीं, उनका टिकट काटने के लिए राजद के ही कई नेता लगे हुए हैं। इस संबंध में आलाकमान तक बात पहुंचाई गई है। दो दिन पूर्व कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सह जिला प्रभारी अनिल शर्मा यहां बैठक कर कार्यकर्ताओं का मूड भांप चुके हैं। बात करें भाजपा की तो इस सुरक्षित सीट से टिकट लेने के लिए भाजपा के जिला भर के दलित चेहरे बेगूसराय से पटना की दौड़ लगा रहे हैं। दिल्ली तक भी अलग-अलग तरीके से मैसेज पहुंचाया जा रहा है।
यह वही सीट है जहां 1995 तक भाजपा का नाम सही से लोग नहीं जान रहे थे। 1995 में पार्टी ने राम मंदिर निर्माण का पहला ईंट लगाने वाले कामेश्वर चौपाल को मैदान में उतारा था। हालांकि उन्हें जीत नहीं मिली, लेकिन 25.34 प्रतिशत वोट लाकर उन्होंने हर घर तक भाजपा का मूल मंत्र पहुंचा दिया। बाद के दिनों में 2010 में राजद छोड़कर आए तत्कालीन विधायक रामानंद राम ने यहां भाजपा का कमल खिला दिया। लेकिन 2015 के चुनाव में राजद के उपेंद्र पासवान ने 72632 (49.26 प्रतिशत) वोट हासिल कर सीट पर कब्जा कर लिया और भाजपा के रामानंद राम दूूूसरे स्थान पर रहे।
इस बार यह सीट भाजपा के कोटे में जाने की पूरी-पूरी संभावना है तथा यहां पहली बार भाजपा का कमल खिलाने वाले रामानंद राम टिकट की दावेदारी में पहले स्थान पर हैं। लेकिन उनके बदले सुमन कुमारी राम, मीनू कुमारी या राम शंकर पासवान को टिकट मिल जाए तो कोई अचंभे की बात नहीं होगी।
बखरी सीट से चुनाव तो लोजपा भी लड़ना चाहती है, अगर लोजपा के हिस्से में यह सीट गई तो पूर्व विधायक राम विनोद पासवान बड़े दावेदार हैं। जदयू से कोई स्थानीय प्रत्याशी उभर कर सामने नहीं आया है लेकिन जिले के दो नेता मन ही मन तैयार हैं और उन्होंने क्षेत्र की परिक्रमा भी की है।
फिलहाल, देखना है कि महागठबंधन और एनडीए में यह सीट किसके हिस्से में जाती है और पार्टी किस पर अपना विश्वास जताती है। दोनों गठबंधन में टिकट चाहे जिसे भी मिले, भितरघात का सामना तो करना ही पड़ेगा।