अयोध्या विवाद : सुप्रीम कोर्ट ने 40 दिन तक लगातार की सुनवाई

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40 दिनों तक चलने वाली ये सुनवाई 16 अक्टूबर को खत्म हुई थी। इस संविधान बेंच में चीफ जस्टिस रंजन गोगोई के अलावा जस्टिस एसए बोब्डे, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस अब्दुल नजीर, और जस्टिस अशोक भूषण शामिल हैं।



नई दिल्ली, 09 नवम्बर (हि.स.) । अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने आज अपना फैसला सुना दिया। इससे अयोध्या में राममंदिर निर्माण का रास्ता साफ हो गया। मुसलमानों को भी अयोध्या में ही पांच एकड़ वैकल्पिक जमीन मिलेगी। इसके साथ ही लम्बे समय से जारी इस विवादास्पद मामले का पटाक्षेप हो गया।
अयोध्या मामले पर 6 अगस्त, 2019 से चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान बेंच ने सुनवाई शुरू की थी। 40 दिनों तक चलने वाली ये सुनवाई 16 अक्टूबर को खत्म हुई थी। इस संविधान बेंच में चीफ जस्टिस रंजन गोगोई के अलावा जस्टिस एसए बोब्डे, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस अब्दुल नजीर, और जस्टिस अशोक भूषण शामिल हैं।
27 सितम्बर, 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने बहुमत के फैसले से अयोध्या मसले पर फैसला सुनाते हुए कहा था कि इस्माइल फारुकी का मस्जिद संबंधी जजमेंट अधिग्रहण से जुड़ा हुआ था। इसलिए इस मसले को बड़ी बेंच को नहीं भेजा जाएगा। जस्टिस अशोक भूषण ने फैसला सुनाया था, जो उनके और तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा का फैसला था। जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर ने अपने फैसले में कहा कि इस इस्माईल फारुकी के फैसले पर पुनर्विचार के लिए बड़ी बेंच को भेजा जाए। 27 सितंबर 2018 के बाद इस मामले पर सुनवाई टलती रही। 25 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर सुनवाई करने के लिए चीफ जस्टिस के नेतृत्व में पांच सदस्यीय बेंच का गठन किया।
पिछले 8 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या मामले पर मध्यस्थता का आदेश दिया था। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस एस एम कलीफुल्ला की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय मध्यस्थों की नियुक्ति का आदेश दिया था। मध्यस्थता कमेटी के बाकी दो मध्यस्थ श्री श्री रविशंकर और वकील श्रीराम पांचू थे।
12 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या में गैरविवादित जगह पर पूजा की इजाजत की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया था। कोर्ट ने याचिकाकर्ता पंडित अमरनाथ मिश्रा से कहा था कि आप जैसे लोग देश को शांति से नहीं रहने देंगे। कोई न कोई इस मामले में कुछ न कुछ लेकर आ ही जाता है। सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता पर इलाहाबाद हाईकोर्ट से लगाये गए पांच लाख के जुर्माने को भी हटाने से इनकार कर दिया ।
10 मई को कोर्ट ने मध्यस्थता कमेटी की अर्जी पर मध्यस्थों को 15 अगस्त तक मध्यस्थता पूरी करने का निर्देश दिया था।
मध्यस्थता कमेटी ने 1 अगस्त को अपनी रिपोर्ट कोर्ट को सौंपते हुए कहा था कि मध्यस्थता प्रक्रिया असफल हो चुकी है। इस रिपोर्ट पर गौर करने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने 6 अगस्त से रोजाना सुनवाई करने का आदेश दिया।
निर्मोही अखाड़े की ओर से वकील सुशील जैन ने कहा था कि वह ओनरशिप और क़ब्ज़े की मांग कर रहे हैं, ओनरशिप का मतलब मालिकाना हक नहीं बल्कि क़ब्ज़े से है। उन्हें रामजन्मभूमि पर क़ब्ज़ा दिया जाए। उसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने निर्मोही अखाड़े से जमीन पर कब्‍जे के कागजी सबूत मांगे। सुप्रीम कोर्ट ने अखाड़े से पूछा कि क्‍या आपके पास अटैचमेंट से पहले रामजन्‍मभूमि पर मालिकाना हक का कोई कागजी सबूत या रेवेन्‍यू रिकॉर्ड हैं, तब निर्मोही अखाड़े ने जवाब दिया कि 1982 में हुई डकैती में सारे रिकार्ड गायब हो गए।
रामलला विराजमान की तरफ से 92 वर्षीय वरिष्ठ वकील के परासरन ने कहा था कि लाखों लोगों की आस्था है कि जहां भगवान राम का जन्म हुआ, वहां पर मंदिर था, यह खुद में एक सबूत है। परासरन ने कहा था कि धर्म का मतलब रिलीजन कतई नहीं है। गीता में धृतराष्ट्र ने पूछा कि धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे, वहां धर्मक्षेत्र का मतलब रिलीजन से कतई नहीं है । परासरन ने कहा था कि ब्रिटिश राज्य में भी जब ईस्ट इंडिया कंपनी ने बंटवारा किया तो उस जगह को मस्जिद की जगह राम जन्मस्थान का मंदिर माना था, अंग्रेजों के ज़माने के फैसले में भी वहां बाबर की बनाई मस्जिद और राम जन्मस्थान का जिक्र किया था ।
रामलला की तरफ से ही वकील सीएस वैद्यनाथन ने कहा था कि पूरा जन्मस्थान पूज्य है। इस जगह पर विवादित ढांचा बनने से पहले हिंदू मंदिर के पर्याप्त सबूत हैं। ढांचा बन जाने के बाद भी स्थान को लेकर हिंदू आस्था अटूट रही है । कोर्ट इसमें न्याय करे। वैद्यनाथन ने कोर्ट में बताया था कि कैसे जन्मस्थान को भी देवता की तरह न्यायिक व्यक्ति का दर्जा है। वैद्यनाथन ने कहा था कि कैलाश पर्वत और कई नदियों की लोग पूजा करते हैं। वहां कोई मूर्ति नहीं है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि चित्रकूट में राम-सीता के प्रवास की मान्यता है। लोग पर्वत को ही पवित्र मानकर परिक्रमा करते हैं। वैद्यनाथन ने कहा था कि जन्मस्थान अपने आप में देवता है। निर्मोही अखाड़ा ज़मीन पर मालिकाना हक नहीं मांग सकता।
गोपाल सिंह विशारद की ओर से वकील रंजीत कुमार ने कहा था कि भगवान राम का उपासक होने के नाते मेरा वहां पर पूजा करने का अधिकार है, यह मेरा सिविल अधिकार है, जिसे छीना नहीं जा सकता है। यही वो जगह है जहां भगवान राम का जन्म हुआ था, मैं यहां पर पूजा करने का अधिकार मांग रहा हूं। रंजीत कुमार ने 80 साल के अब्दुल गनी की गवाही का हवाला देते हुए कहा था कि बाबरी मस्जिद जन्मस्थान पर बनी है। ब्रिटिश राज में मस्जिद में सिर्फ जुमे की नमाज़ होती थी हिन्दू भी वहां पर पूजा करने आते थे। रंजीत कुमार ने कहा था कि मस्जिद गिरने के बाद मुस्लिम ने नमाज़ पढ़ना बंद कर दिए लेकिन हिंदुओं ने जन्मस्थान पर पूजा जारी रखी।
रामजन्मभूमि पुनरुद्धार समिति के वकील पीएन मिश्रा ने कहा था कि विवादित इमारत बनवाने वाला कौन था, इस पर संदेह है। मीर बाकी नाम का बाबर का कोई सेनापति था ही नहीं। तीन गुंबद वाली वो इमारत मस्ज़िद नहीं थी। मस्ज़िद में जिस तरह की चीज़ें ज़रूरी होती हैं, वो उसमें नहीं थी। मिश्रा ने कहा था कि मंदिर बाबर ने नहीं, औरंगजेब ने तोड़ा था। जस्टिस बोब्डे ने पूछा कि आपसे इसका क्या लेना-देना है ? जन्मस्थान पर आपका हक कैसे है? यह स्पष्ट करें । तब मिश्रा ने कहा था कि मेरा दावा है कि औरंगजेब ने मंदिर तोड़कर मस्जिद बनायी थी। अगर अदालत इस दावे को स्वीकार करती है तो सुन्नी वक्फ बोर्ड का दावा पूरी तरह से गलत साबित होता है। तब सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यात्रा के दौरान ऐसे सबूत नहीं मिले हैं, जो सिद्ध करते हैं कि बाबर ने मस्जिद का निर्माण नहीं किया था।
हिन्दू महासभा की ओर से हरिशंकर जैन ने कहा था कि 1528 से लेकर 1855 तक वहाँ मस्जिद की मौजूदगी को लेकर कोई मौखिक या दस्तावेजी सबूत नहीं है। अंग्रेजों के आने के बाद से विवाद की शुरूआत हुई। हिंदुओं से पूजा का अधिकार छीन गया और मुसलमानों को विवादित ज़मीन पर शह मिली। उन्होंने कहा कि बाबर एक विदेशी हमलावर था। उसने देश पर हमला किया। क्या एक विदेशी आक्रमणकारी के हक को अब हम तरजीह देंगे ! हम दासता के उन काले दिनों को बहुत पीछे छोड़ आये है। आज हम एक सभ्य समाज में रह रहे हैं।
शिया वक्फ बोर्ड के वकील एम सी ढींगरा ने कहा था कि अब तक हिंदू पक्ष ने जो कहा, हम उसका विरोध नहीं करते हैं। वहां जो मस्ज़िद थी, वो असल में शियाओं की थी। हाईकोर्ट ने एक तिहाई जगह मुसलमानों को दी थी। हम वो जगह हिंदुओं को देना चाहते हैं। ढींगरा ने कहा था कि बाबर के सेनापति मीरबाक़ी ने मस्जिद बनवाई थी, मीरबाक़ी भी शिया ही था। 1949 में जब ताला बंद हुआ था तब तक मुत्तवली शिया ही था। 1944 में मस्जिद के अधिकार का रजिस्ट्रेशन सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड के हक़ में रजिस्टर्ड हो गया था। 1946 में बोर्ड के अधिकार को लेकर सुन्नी सेंट्रल वक़्फ़ बोर्ड से हम केस हार गए थे जिसकी अपील हमने दायर किया हुआ है ।
मुस्लिम पक्ष की ओर धवन ने कहा था कि 1858 से पहले के गजेटियर का हवाला गलत है । अंग्रेजों ने लोगों से जो सुना, लिख लिया। मकसद ब्रिटिश लोगों को जानकारी देना भर था । धवन ने कहा था कि मोर, कमल जैसे चिह्न का मिलना ये साबित नहीं करता कि वहां मंदिर था । कहा जा रहा है कि विदेशी यात्रियों ने मस्ज़िद का ज़िक्र तक नहीं किया। लेकिन मार्को पोलो ने भी तो चीन की महान दीवार के बारे में नहीं लिखा था। धवन ने कहा था कि 1939 में एक मस्जिद तोड़ी गई। 1949 में एक मूर्ति को रखा गया। 1992 में मस्जिद को ध्वस्त किया गया । धवन ने वरिष्ठ वकील रामजेठमलानी की उक्ति का जिक्र करते हुए कहा कि ऐसी स्थिति के लिए वे कहा करते थे कि आप अपने माता-पिता को मार डालो और बाद में कोर्ट में उपस्थि होकर कहो कि हम अनाथ हैं। उन्होंने कहा था कि किस कानून के तहत निर्मोही अखाड़ा के अधिकारों को संरक्षित किया जा सकता है। धवन ने कहा कि देश के आजाद होने की तारीख और संविधान की स्थापना के बाद किसी धार्मिक स्थल का परिवर्तन नहीं किया जा सकता। धवन ने कहा था कि महज़ स्वयंभू होने के आधार पर यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता कि अमुक स्थान किसी का है। धवन ने दलील दी थी कि बाबरी मस्जिद में भगवान रामलला की मूर्ति स्थापित करना छल से हमला करना है। धवन ने हिन्दू पक्ष की दलील का हवाला देते हुए कहा था कि मुस्लिम पक्ष के पास विवादित जमीन के कब्जे के अधिकार नहीं है। जिसके पीछे वजह 1934 में निर्मोही अखाड़ा ने गलत तरीके से अवैध कब्जा किया, इसके बाद हमें नमाज नहीं अदा करने दिया गया।
राजीव धवन ने कहा था कि निर्मोही अखाड़ा सदियों से देवता का सेवक होने का दावा करता है। हम 1855 से मानते हैं । धवन ने कहा था कि 1855 से बाहरी हिस्से के राम चबूतरा पर पूजा के सबूत हैं । चबूतरा को जन्मस्थान माना जाता था , मुख्य इमारत मस्ज़िद थी । धवन ने कहा था कि ट्रस्टी और सेवादार होने में अंतर होता है। धवन ने कहा था कि राम चबूतरे पर पूजा और पूजा का अधिकार कभी मना नहीं किया गया। विवाद पूरे जमीन के स्वामित्व को लेकर है। तब जस्टिस अब्दुल नजीर ने धवन से पूछा था कि आप तो यह मान रहे हैं कि आप और निर्मोही अखाड़ा उस जगह पर साथ-साथ थे? तब राजीव धवन ने कहा था कि हमने कभी नहीं कहा कि निर्मोही अखाड़े का मालिकाना हक़ था। मालिकाना हक़ हमेशा से सुन्नी वक्फ़ बोर्ड के पास था और है। धवन ने कहा था कि राम चबूतरा पर निर्मोही अखाड़ा पूजा करता रहा है और हम इसे मानते हैं कि उनका उस जगह पर पूजा का अधिकार है।
मुस्लिम पक्ष की ओर से वकील जफरयाब जिलानी ने कहा कि कल हमने यह नहीं कहा कि राम चबूतरा जन्मस्थान है। हमने कहा था कि 1885 में फैजाबाद कोर्ट के जज ने कहा था कि राम चबूतरा भगवान राम का जन्मस्थान है हमने उस फैसले को कभी चुनौती नहीं दी। जिलानी ने कहा की हमने कभी अपनी ओर से नहीं कहा कि राम चबूतरा जन्मस्थान है, जीलानी ने कुछ दस्तावेज़ों का हवाला देते हुए कहा कि उस समय में किसी की भी यह आस्था नही थी कि गर्भ गृह राम का जन्मस्थान है, लोग बस राम चबूतरे की पूजा करने जाते थे । जिलानी ने कहा कि 1858 के दस्तावेज हैं जिसमें स्पष्ट है कि इनर कोर्टयार्ड यानी मस्जिद के भीतर के भाग पर हिन्दुओं ने कोई दावा नहीं किया, गजेटियर रिपोर्ट लोगों के विश्वास का समर्थन नहीं करती, जिसके तहत हिन्दू मानते है कि विवादित स्थल पर मंदिर था ।
मुस्लिम पक्ष की तरफ से मीनाक्षी अरोड़ा ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण(एएसआई) की रिपोर्ट पर कहा कि पुरातत्व विज्ञान, भौतिकी और रसायन की तरह विज्ञान नहीं है। यह एक सामाजिक विज्ञान है। और इस पर भरोसा नहीं किया जा सकता है। अरोड़ा ने कहा कि पुरातत्व की रिपोर्ट में यह सामने नहीं आया है कि मंदिर को गिराकर मस्जिद बनायी गई, जो हिन्दू पक्षकारों का दावा है। इसी दावे के आधार पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला दिया।
मुस्लिम पक्षकार फ़ारुख अहमद की ओर से वरिष्ठ वकील शेखर नफड़े ‘रेस ज्युडिकाटा’ पर दलील दी। रेस ज्युडिकेटा का मतलब है कि दो पक्षकारों के बीच किसी विवाद का निपटारा हो जाने के बाद उन्हीं पक्षकारों के बीच उसी मामले में उसी विवाद के लिए दोबारा सूट दाखिल नहीं किया जा सकता। नफड़े ने कहा कि निर्मोही अखाड़ा के महंत रघुवरदास ने 1885 में फैजाबाद कोर्ट में मंदिर निर्माण के लिए सूट दाखिल किया था। अखाड़े के इस मांग को फैजाबाद कोर्ट ने खारिज कर दिया था। 1961 में निर्मोही अखाड़ा ने दोबारा सूट दाखिल किया। इसलिए ‘रेस ज्युडिकेटा’ लागू होता है।
सुनवाई के अंतिम दिन 16 अक्टूबर को हिदू महासभा की ओर से वकील विकास सिंह ने पूर्व आईपीएस अफसर किशोर कुणाल की ‘अयोध्या रिविजिटेड’ नामक एक किताब का हवाला देना चाहा। राजीव धवन ने रिकॉर्ड का हिस्सा नहीं बताते हुए इसका विरोध किया। विकास सिंह ने एक नक्शा रखा। धवन ने इसका भी विरोध करते हुए अपने पास मौजूद नक्शे की कॉपी फाड़ डाली।

 


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