पुणे के छात्रों ने तैयार किया देश का पहला ड्राइवरलेस ऑटोनॉमस इलेक्ट्रिक वाहन

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नई दिल्ली, 13 अगस्त (हि.स.)। पुणे के छात्रों ने देश का पहला ड्राइवरलेस ऑटोनॉमस इलेक्ट्रिक फोर-वीलर विकसित किया है। इसका इस्तेमाल मेट्रो स्टेशनों को आसपास के क्षेत्रों से जोड़ने, हवाई अड्डों, गोल्फ क्लबों और विश्वविद्यालयों आदि में किया जा सकता है।

एमआईटी वर्ल्ड पीस यूनिवर्सिटी, पुणे के मैकेनिकल इंजीनियरिंग (मैकेनिकल) और (ईएंडटी) के अंतिम वर्ष के छात्र यश केसकर, सुधांशु मनेरिकर, सौरभ दमकले, शुभांग कुलकर्णी, प्रतीक पांडे और प्रेरणा कोलीपाका ने बोल्ट-ऑन ऑटोनॉमस वीकल को तैयार किया है।

माइर्स एमआईटी के संस्थापक ट्रस्टी प्रो. प्रकाश जोशी और माइर्स एमआईटी के स्कूल ऑफ मैकेनिकल इंजीनियरिंग के प्रमुख और प्रोजेक्ट गाइड प्रो. डॉ. गणेश काकंडीकर ने छात्रों का मार्गदर्शन किया। एमआईटी-डब्ल्यूपीयू के प्रोफेसर प्रकाश जोशी ने कहा, “चालक रहित वाहन एक बार चार्ज करने पर 40 किमी तक की यात्रा कर सकता है। उन्होंने कहा कि पुणे स्मार्ट सिटी और मेट्रो प्रबंधन अधिकारी वाहन का निरीक्षण करेंगे और इसका उपयोग पुणे के लोगों की सेवा के लिए करेंगे। उन्होंने कहा कि ऐसे इलेक्ट्रिक वाहनों का उपयोग मेट्रो स्टेशनों के आसपास के क्षेत्र से जोड़ने, परिवहन के लिए, हवाई अड्डों, गोल्फ क्लबों, विश्वविद्यालयों आदि में किया जा सकता है। इस परियोजना के प्रबंधन के लिए प्रो. श्रीकांत यादव एवं प्रो ओंकार कुलकर्णी ने विद्यार्थियों को मार्गदर्शन किया।

पिछले दशक में मोटर वाहन उद्योग में तेजी से वृद्धि हुई है। वैश्वीकरण के कारण अर्थव्यवस्था में सुधार हुआ है और बैंकों की नीतियों से ऋण की आसान पहुंच संभव हो गई है। इससे चौपहिया वाहन मध्यम वर्ग के लिए एक सपना सच हो गया है। वाहन का उद्देश्य केवल परिवहन के साधनों तक ही सीमित नहीं था बल्कि इसे और अधिक आरामदायक बनाना भी था। पेट्रोल-डीजल की किल्लत से पिछले दो साल में इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री बढ़ी है। टेस्ला और गूगल जिन स्वायत्त, चालक रहित वाहनों पर काम कर रहे हैं। उनके साथ इंजीनियर वाहनों को और अधिक अप-टू-डेट बनाने के लिए काम कर रहे हैं। मानव त्रुटि के कारण होने वाली दुर्घटनाओं और मृत्यु को कम करने में मदद करने के लिए अत्याधुनिक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस सिस्टम का उपयोग करता है। कार लेवल थ्री स्वायत्तता पर आधारित है और बीएलडीसी मोटर्स का उपयोग करती है।

छात्र यश केसकर ने बताया कि वाहन को चलाने के लिए लिथियम आयरन बैटरी का इस्तेमाल किया गया है। वाहन को तीन सबसिस्टम द्वारा नियंत्रित किया जाता है जो थ्रॉटल, ब्रेक और स्टीयरिंग हैं। ऐसे वाहनों को कृषि, खनन और परिवहन आदि में इस्तेमाल किया जा सकता है।

छात्र सुधांशु मानेरीकर ने बताया कि स्टीयरिंग, थ्रॉटल और ब्रेक को कई एआई और एमएल एल्गोरिदम का उपयोग करके नियंत्रित किया जाता है। इसमें लीडर कैमरा, माइक्रोप्रोसेसर, स्वचालित एक्शन कंट्रोल सिस्टम और विभिन्न सेंसर शामिल हैं। इन वाहनों में तीन किलोवाट की शक्ति होती है और चार्ज होने में चार घंटे लगते हैं। पूरी तरह से चार्ज होने पर इससे 40 किलोमीटर की दूरी तय कर सकते हैं।


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