अमेरिका-ईरान के बीच आखिर कैसे हुई दुश्मनी की शुरुआत…?

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इन चार दशकों के टकराव का नतीजा ये निकला कि न तो ईरान ने अमेरिका के सामने घुटने टेके और न ही इलाके में शांति स्थापित हुई।



नई दिल्ली, 04 जनवरी (हि.स.)। इराक की राजधानी बगदाद में शुक्रवार को अमेरिकी मिसाइल हमले में ईरान के प्रमुख कमांडर जनरल कासिम सुलेमानी समेत आठ लोग मारे गए । इस हमले में ईरान समर्थित इराकी सैन्य कर्मियों के एक ग्रुप के मुखिया अबु महदी अल-मुहांदिस भी मारा गया है। यह इराक में ईरान समर्थित पापुलर मोबिलाइजेशन फोर्सज का डिप्टी कमांडर था। इस हमले के बाद अब अमेरिका और ईरान में तनाव और भी ज्यादा बढ़ने के आसार बन गए हैं। 

उधर अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने ट्विटर पर एक वीडियो शेयर किया है, जिसमें उन्होंने दावा किया कि सुलेमानी की मौत के बाद इराक की सड़कों पर जश्न का माहौल है। इराकी आजादी की खुशी में नाच रहे हैं, वे शुक्रगुजार हैं कि जनरल सुलेमानी मारा गया है। उल्लेखनीय है कि सुलेमानी अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप का विरोधी माना जाता था। सुलेमानी पर सीरिया में अपनी जड़ें जमाने और इजरायल में रॉकेट अटैक कराने का आरोप था। अमेरिका को लंबे समय से सुलेमानी की तलाश थी।

अमेरिका और ईरान के बीच इस तनातनी की शुरुआत आखिर कैसे हुई।  कैसे दो परमाणु शक्तियों से लैस देश आज एक-दूसरे को तबाह करने पर उतारु हैं, ये जानना भी यहां बेहद जरुरी हो जाता है। 

ये टकराव करीब चार दशक पहले 1970 में उस समय शुरु हुआ, जब 1971 में यूगोस्लाविया के तत्कालीन राष्ट्रपति जोसिप ब्रोज टीटो, मोनाको के प्रिंस रेनीअर और राजकुमारी ग्रेस, अमेरिका के उपराष्ट्रपति सिप्रो अग्नेयू और सोवियत संघ के स्टेट्समैन निकोलई पोगर्नी ईरानी शहर पर्सेपोलिस में इकट्ठा हुए थे। इस कार्यक्रम का आयोजन ईरानी शाह रजा पहलवी ने किया था। इस आयोजन के आठ साल बाद ईरान में नए नेता अयातुल्ला रुहोल्लाह खुमैनी का पर्दापन हुआ, जिन्होंने इस आयोजन को शैतानों का जश्न  कहा था।

1979 में ईरान में इस्लामिक क्रांति से पहले खुमैनी तुर्की, इराक और पेरिस में निर्वासित जीवन जी रहे थे। खुमैनी, शाह पहलवी के नेतृत्व में ईरान के पश्चिमीकरण और अमेरिका पर बढ़ती उनकी निर्भरता के लिए हमेशा उनपर जुबानी हमले करते रहते थे। 1953 में अमेरिका और ब्रिटेन ने ईरान में लोकतांत्रिक तरीके से चुने गए प्रधानमंत्री मोहम्मद मोसादेग को अपदस्थ कर पहलवी को सत्ता सौंप दी थी। मोहम्मद मोसादेग ने ही ईरान के तेल उद्योग का राष्ट्रीयकरण किया था। इन्हीं सब बातों से नाराज खुमैनी चाहते थे कि शाह रजा पहलवी की शक्ति कम हो।  अमेरिका ने ईरान में 1953 में जिस तरह से तख्तापलट कर पहलवी को सत्ता सौंपी, उसी का नतीजा 1979 की ईरानी क्रांति थी। इन 40 सालों में ईरान और पश्चिमी देशों के बीच कड़वाहट खत्म लगातार बढ़ती चली गई।

इन चार दशकों के टकराव का नतीजा ये निकला कि न तो ईरान ने अमेरिका के सामने घुटने टेके और न ही इलाके में शांति स्थापित हुई। यहां तक कि ट्रंप के अमेरिकी राष्ट्रपति बनने के बाद तो ये दुश्मनी और भी ज्यादा बढ़ गई। 

सत्ता में आने के बाद खुमैनी ने खुद के खिलाफ उठने वाली आवाजों को कुचलना शुरु कर दिया। इसके बाद तो अमेरिका और ईरान के राजनयिक संबंध मानो जैसे खत्म ही हो गए। तेहरान में ईरानी छात्रों ने अमेरिकी दूतावास को अपने कब्जे में लेकर 52 अमेरिकी नागरिकों और दूतावास कर्मचारियों को एक साल से भी ज्यादा समय तक बंधक बनाकर रखा । माना जाता है कि इस घटना को खुमैनी का मौन समर्थन हासिल था।

इसी बीच 1980 में सद्दाम हुसैन ने ईरान पर हमला बोल दिया। करीब आठ सालों तक  चले इस युद्ध में लगभग पांच लाख ईरानी और इराकी सैनिक मारे गए थे। इस युद्ध में अमेरिका तो सद्दाम हुसैन के साथ था ही, साथ ही सोवियत यूनियन ने भी सद्दाम की भरपूर मदद की थी। इसके बाद तो दोनों देशों के बीच तनाव और भी ज्यादा बढ़ गया। हालांकि बराक ओबामा जब अमेरिका के राष्ट्रपति थे तो उन्होंने इस कड़वाहट को कम करने के लिए कुछ कदम उठाए थे, लेकिन ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद ओबामा की इन कोशिशों पर पानी फिर गया । ट्रंप ने सत्ता में आते ही ईरान पर कई नए प्रतंबंध लगा दिए। 

इन्हीं सब का नतीजा है जो आज हम सबके सामने है। अमेरिका ने आज ईरान के प्रमुख कमांडर जनरल कासिम सुलेमानी को मार गिराया है। अमेरिका के इस कदम से तिलमिलाया ईरान अब खुलेआम ऐलान कर रहा है कि वो सुलेमानी की हत्या का बदला लेकर रहेगा। मतलब ये कि ये दुश्मनी अभी लंबी चलेगी और दोनों देशों के बीच बढ़ी ये दुरियां और भी ज्यादा बढ़ेंगी।


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