नई दिल्ली, 21 सितम्बर (हि.स.)। हिमाचल प्रदेश में रोहतांग दर्रे के करीब लगभग 10 हजार फीट की ऊंचाई पर बनाई गई 9 किलोमीटर लंबी रणनीतिक अटल सुरंग का उद्घाटन 3 अक्टूबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करेंगे। ऊंचाई के लिहाज से यह दुनिया की पहली सुरंग है। यह सुरंग इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे पाकिस्तान-चीन बॉर्डर पर भारत की ताकत बढ़ जाएगी। इसके शुरू होने से लद्दाख का इलाका सालभर पूरी तरह से जुड़ा रहेगा। इसे पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी की याद में ‘अटल रोहतांग टनल’ नाम दिया गया है।
निर्माण शुरू होने पर इसकी डिजाइन 8.8 किलोमीटर लंबी सुरंग के रूप में बनाई गई थी लेकिन निर्माण पूरा होने पर जब जीपीएस रीडिंग ली गई तो सुरंग की लम्बाई 9 किमी. निकली। 10 मीटर चौ़ड़ी इस सुरंग को 10,171 फीट की ऊंचाई पर रोहतांग पास से जोड़कर बनाया गया है। इसके शुरू होने पर मनाली और लेह के बीच की दूरी 46 किलोमीटर कम हो जाएगी और अब यह दूरी मात्र 10 मिनट में पूरी हो सकेगी। अभी मनाली घाटी से लाहौल और स्पीति घाटी तक की यात्रा में आमतौर पर पांच घंटे से अधिक समय लगता है जो अब 10 मिनट से कम समय में पूरा हो जाएगा। यह रोहतांग दर्रा तक पहुंचने के लिए वैकल्पिक मार्ग भी होगा जो 13 हजार 50 फीट की ऊंचाई पर स्थित है।
अटल सुरंग की विशेषताएं
हिमालय की पीर पांज पर्वत श्रेणी में बनी इस सुरंग में एक आपातकालीन रास्ता भी है जिसे मुख्य सुरंग के नीचे बनाया गया है। यह किसी भी अप्रिय घटना होने पर एक आपातकालीन निकास प्रदान करेगा। सुरंग में हर 150 मीटर पर एक टेलीफोन, हर 60 मीटर पर अग्नि हाइड्रेंट, हर 500 मीटर पर आपातकालीन निकास, हर 2.2 किमी में गुफा, हर एक किमी. पर हवा की गुणवत्ता की निगरानी प्रणाली, हर 250 मीटर पर सीसीटीवी कैमरों के साथ प्रसारण प्रणाली और घटना का पता लगाने वाली स्वचालित प्रणाली लगाई गई है। सुरंग में 80 किमी. प्रति घंटे की अधिकतम गति से प्रतिदिन 5000 वाहन इससे गुजर सकेंगे। सीमा सड़क संगठन ने (बीआरओ) ने करीब 4 हजार करोड़ रुपये की लागत से यह सुरंग घोड़े की नाल के आकार में बनाई है।
लद्दाख में भारत की पकड़ और मजबूत होगी
दरअसल बर्फ़बारी के दिनों में यह इलाका अप्रैल से नवम्बर तक देश के बाकी हिस्सों से लगभग छह महीने के लिए कट जाता है। बर्फ़बारी के दिनों में भी इस सुरंग से पाकिस्तान और चीन सीमा तक आसानी से पहुंचा जा सकेगा, क्योंकि लेह-मनाली राजमार्ग दोनों देशों की सीमा से लगा हुआ है। ऐसे में रणनीतिक क्षेत्र लद्दाख में भारत की पकड़ और मजबूत होगी। इसलिए इस सुरंग के शुरू होने पर इसी के जरिये लद्दाख सीमा तक सैन्य वाहनों की सुरक्षित आवाजाही हो सकेगी और सैनिकों को रसद पहुंचाने में दिक्कत नहीं आएगी। इस सुरंग से भारतीय सीमा पर स्थित अग्रिम चौकियों की चौकसी, मुस्तैदी और ताकत काफी बढ़ जाएगी।
कोविड-19 महामारी की वजह से हुई देरी
इस सुरंग का निर्माण 28 जून, 2010 में शुरू हुआ था, जिसे 2019 तक पूरा करना था लेकिन कोविड-19 महामारी की वजह से श्रमिक और सामग्री उपलब्ध न हो पाने के कारण परियोजना को पूरी करने में थोड़ी देरी हुई है लेकिन अब यह उद्घाटन के लिए तैयार है। इसे बनाने में लगभग 3,000 संविदा कर्मचारियों और 650 नियमित कर्मचारियों ने 24 घंटे कई पारियों में काम किया। इस टनल को बनाने के दौरान 8 लाख क्यूबिक मीटर पत्थर और मिट्टी निकाली गई। गर्मियों में यहां पर पांच मीटर प्रति दिन खुदाई होती थी लेकिन सर्दियों में यह घटकर आधा मीटर हो जाती थी क्योंकि सर्दियों में यहां का तापमान माइनस 30 डिग्री तक चले जाने पर काम करना बेहद मुश्किल हो जाता था।