नए साल में उत्तराखण्ड सरकार दूर करेगी गैरसैंण का गुस्सा

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चार धाम यात्रा की शुरूआत से पहले वहां सत्र कराने पर विचारवर्ष 2019 में गैरसैंण में नहीं हो पाया एक भी सत्र का आयोजन



देहरादून, 28 दिसम्बर। (हि.स.)। पर्वतीय जनभावनाओं की राजधानी गैरसैंण में वर्ष 2019 में विधानसभा का एक भी सत्र आहूत न करने से उपजी नाराजगी को सरकार नए साल में दूर करने पर विचार कर रही है। सरकार में उच्च स्तर पर चल रहे मंथन पर बात आगे बढ़ी तो चार धाम यात्रा के श्रीगणेश से पहले गैरसैंण में सत्र आहूत किया जा सकता है। इस तरह का विचार किया जा रहा है कि बजट सत्र देहरादून में ही किया जाए और स्थगित सत्र का समापन गैरसैंण में कराया जाए।
पिछले चार वर्षों में यह पहला मौका रहा, जब गैरसैंण में साल भर में कोई सत्र आयोजित नहीं किया जा सका। सरकार साल भर तमाम अन्य कार्यों में उलझी रही और साल का आखिरी सत्र आयोजित करने की जब बारी आई, तो उसे याद आया कि कड़ाके की ठंड में अब गैरसैंण की राह आसान नहीं रह गई है। शीतकालीन सत्र देहरादून में हुआ और गैरसैंण की उपेक्षा का सवाल कई बार उछला। अब नए साल की शुरूआत में ही सरकार इसकी क्षतिपूर्ति के लिए माथापच्ची में जुट गई है। सूत्रों के मुताबिक भले ही त्रिवेंद्र सरकार ने 2018 का बजट सत्र गैरसैंण में आयोजित किया था लेकिन वह 2020 का बजट सत्र भी देहरादून में ही आयोजित करना चाहती है। हालांकि इसके एक हिस्से को वह गैरसैंण ले जाने का रास्ता तलाश रही है। यानी बजट सत्र तो पूरा का पूरा देहरादून में हो जाए, लेकिन सत्रावसान न करते हुए इसे स्थगित रखा जाए। कुछ कामकाज गैरसैंण के लिए बचाकर रखा जाए और फिर सत्रावसान वहीं किया जाए। हालांकि यह विचार अभी प्रारंभिक स्तर पर है, लेकिन इस पर गंभीरता से विचार जरूर किया जा रहा है। शासकीय प्रवक्ता मदन कौशिक के अनुसार नए साल में सरकार गैरसैंण में हर हाल में सत्र आयोजित करने के पक्ष में है।
दरअसल, 2016 में हरीश रावत सरकार ने गैरसैंण में सत्र आयोजित कर यह संकल्प पारित किया था कि बजट सत्र गैरसैंण में ही किया जाएगा। 2017 में सत्ता में आई भाजपा सरकार ने हालांकि वहां पर बजट सत्र तो आयोजित नहीं किया लेकिन दो दिनों तक सत्र के लिए पूरी सरकार गैरसैंण जरूर पहुंची थी। गैरसैंण में भव्य विधानसभा भवन काफी पहले से बनकर तैयार है, हालांकि वहां पर सत्र आयोजन के लिए आधारभूत सुविधाओं को अब भी अपूर्ण माना जा रहा है। गैरसैंण में सत्र आयोजित करने के समर्थकों का कहना है कि जब वहां पर बार बार सत्र होंगे, तब ही आधारभूत ढांचा खड़ा हो पाएगा। गैरसैंण में सत्र नहीं होंगे, तो वह क्षेत्र पिछड़ा ही रह जाएगा।

 


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