भोपाल, 11 जुलाई (हि.स.)। मध्यप्रदेश विधानसभा के पंचदश तृतीय सत्र में सदस्यों के पूछे गए प्रश्नों के उत्तर में यह आंकड़ा सामने आया है कि पिछले सात माह में नई सरकार के गठन के बाद अब तक प्रदेश में 71 किसान आत्महत्या कर चुके हैं यानि
हर माह 10 किसान कर्ज एवं अन्य समस्याओं के चलते अत्महत्या करने को मजबूर हैं। जबकि दूसरी ओर कांग्रेस सरकार अपने को किसानों का पूर्ववर्ती भाजपा सरकार से तुलना करते हुए मसीहा बताती रही है।
यहां 08 जुलाई से 26 जुलाई तक चलने वाले विधानसभा सत्र में अलग-अलग सदस्यों ने अपने लगाए सवालों के जरिए सरकार से पूछा था कि किसानों की आत्महत्या किए जाने के कितने मामले नई सरकार बनने के बाद सामने आए हैं। इसमें कि सरकार की ओर से जो लिखित जवाब विभिन्न उत्तरों में प्रस्तुत किया गया है, उसके अनुसार अब तक 01 दिसंबर 2018 से 12 जून 2019 तक 71 किसानों ने सूबे में मौत को गले लगाया है।
इस तत्थ्यात्मक आए उत्तर से यह भी ज्ञात होता है कि इन मरने वाले किसानों में प्रदेश के बघेलखण्ड क्षेत्र के किसानों की संख्या सबसे अधिक है, उसके बाद बुंदेलखण्ड के किसानों ने अधिकतम संख्या में मौत को गले लगाया है। आंकड़ों को देखा जाए तो सबसे ज्यादा 14 किसानों ने सीधी में खुदकुशी की, जबकि सागर में 13 किसानों ने कर्ज एवं अन्य समस्याओं के चलते अत्महत्या की हैं। इनके अलावा अन्य जिलों में आत्महत्या करने वाले किसानों की संख्या है। देखा जाए तो सूबे में किसानों की जो हालत दिखाई दे रही है, उसमें अब तक कई किसान डिफॉल्टर घोषित हो गये हैं। खाद और बीज के लिए बैंक उन्हें कर्जा नहीं दे रहा है। बैंक कह रहे हैं कि पहले पैसा जमा करो, इसके बाद आपको खाद-बीज के लिए कर्जा दिया जाएगा।
मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का इस मामले को लेकर कहना है कि कमलनाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस नीत प्रदेश सरकार के वादे के अनुसार किसानों की कर्जमाफी नहीं होने, उन्हें खाद-बीज के लिए कर्ज नहीं मिलने, उनकी फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं मिलने तथा किसानों को उनकी फसलों पर बोनस नहीं दिये जाने से संबंधित विभिन्न परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। उनका कहना है कि कमलनाथ की सरकार किसानों को तबाह कर रही है। चुनाव के समय कांग्रेस ने किसानों को वचन दिया था कि किसानों का दो लाख रुपये तक का कर्जा 10 दिन के अंदर माफ कर दिया जाएगा और ऐसा नहीं करने पर मुख्यमंत्री बदल दिया जाएगा। लेकिन अब सरकार को आए सात महीने हो चुके हैं, लेकिन आज तक किसानों के कर्जे माफ नहीं हुए हैं।
शिवराज सिंह चौहान कहते हैं कि प्रदेश सरकार ने समर्थन मूल्य पर बोनस देने की बात की थी। लेकिन एक नये पैसे की राशि नहीं दी गई। धान के किसान भी भटक रहे हैं। मूंग की खरीदी इस सरकार ने नहीं की। औने-पौने दाम पर किसानों ने 3,000-4,000 रुपये प्रति क्विंटल मूंग बेची। न्यूनतम समर्थन मूल्य पर मूंग की खरीदी नहीं हुई। सोयाबीन एवं मक्के का बोनस नहीं दिया। चना तो खरीदा ही नहीं गया। इससे चारों तरफ किसानों में तबाही मची है।
उन्होंने कहा, साहूकारों से ऊंचे ब्याज पर किसान कर्जा लेकर अपनी फसल की बुआई करने को विवश हैं। इस हताशा एवं निराशा में कई किसान आत्महत्याएं कर रहे हैं। इसलिए कमलनाथ सरकार सबसे पहले किसानों के सारे कर्जे माफ करे, सचमुच में उन्हें ऋणमुक्त करे। गेहूं एवं मक्का का बोनस उनके खाते में डाला जाये। मूंग, उड़द की खरीदी न्यूनतम समर्थन मूल्य पर तत्काल प्रारंभ की जाये ताकि किसानों को बचाया जा सके। सरकार ने अगर ये कदम नहीं उठाये तो वो जन आंदोलन का सामना करने के लिए तैयार रहे। हम सड़कों पर सरकार से निपटेंगे।
उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों किसानों की कर्ज माफी सहित उनकी विभिन्न समस्याओं को लेकर मध्यप्रदेश विधानसभा में लगाई गई स्थगन सूचना पर चर्चा की मांग कांग्रेस सरकार द्वारा ठुकराई जा चुकी है, जिसके बाद नाराज मुख्य विपक्षी दल भाजपा के विधायकों द्वारा सदन से बहिर्गमन तक किया जा चुका था।
घोषणा पत्र में कांग्रेस ने ये किया था किसानों से वादा
कांग्रेस ने अपने चुनावी घोषणा-पत्र में किसानों से वादा किया था कि यदि वह सरकार में आई तो सबसे पहले किसानों के दो लाख रुपये तक के सारे कर्ज माफ करेगी। लेकिन जब कांगेस की सरकार बनी तो जो सबसे पहला आदेश निकाला उसके अनुसार किसानों के अल्पकालीन ऋण माफ किये जाएंगे का आदेश था। कई किसान इसी कारण से कर्जमाफी से वंचित रह गए। मध्यप्रदेश में जो अल्पकालीन फसली ऋण हैं वह 48,000 करोड़ रुपये का है। उसके बदले केवल 5,000 करोड़ रुपये की राशि का प्रावधान किया गया और खातों में केवल 1400 करोड़ रुपये का मुआवजा ही अब तक पहुंच सका है।