लखनऊ, 09 नवम्बर (हि.स.)। राम मंदिर आंदोलन में अपने जीवन को समर्पित कर देने वाले विश्व हिन्दू परिषद के अध्यक्ष रहे अशोक सिंघल जी की आत्मा को आज शांति मिली होगी, जिन्होंने इस लोक से विदा होने से कुछ समय पहले 2014 के लोकसभा चुनाव के पहले कहा था, नरेन्द्र मोदी में भगवान राम की आत्मा प्रवेश कर गयी है। उन्होंने विश्वास जताया था कि उनके पीएम बनने के साथ ही राम मंदिर निर्माण का भी मार्ग प्रशस्त हो जाएगा।
शनिवार को जब सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया तो लोगों का यही कहना था कि आज सबसे ज्यादा किसी आत्मा को सुकुन मिला होगा तो राम मंदिर आंदोलन के मुखिया अशोक सिंघल जी की आत्मा है। राम मंदिर के लिए उन्होंने ऐसा कोई कदम नहीं था, जो नहीं उठाया। मंदिर निर्माण के मार्ग प्रशस्त करने के लिए वे 1992 को बाल ठाकरे से मिले। बाल ठाकरे ने चार दिसंबर 1992 को शिवसैनिकों को अयोध्या जाने का आदेश दिया। अशोक सिंघल ने ये भी कहा था कि 6 दिसंबर की कारसेवा में मुगल कमांडर मीर बाकी का शिलालेख हटा दिया जाएगा। 17 नवंबर 2015 को अशोक सिंघल जी के निधन पर भी मोदी ने श्रद्धांजलि देते हुए उनके निधन को ‘निजी नुकसान’ बताया।
विहिप के अगुवा रहे अशोक सिंघल ने यहां आंदोलन के विस्तार के लिए बेस कैंप की बागडोर संभाली थी। 10 एकड़ जमीन में कारसेवकपुरम् बना। साढ़े 8 एकड़ भूमि में रामसेवकपुरम् और करीब साढे 3 एकड़ भूमि में कार्यशाला की नींव रखी गई। अशोक सिंघल जी का मानना था कि राममंदिर आंदोलन की भूमिका, प्रशिक्षण और साजोसामान के लिए बगैर भूमि खरीदे बेस कैंप नहीं बन सकता, तब मोरोपंख पिगंले संघ की ओर से विहिप के संरक्षक हुआ करते थे। कारसेवकपुरम् नाम उन्हीं का दिया हुआ है। उद्देश्य था कि आंदोलन के साथ विहिप के अनुषांगिक संगठनों को समर्थवान बनाने का प्रशिक्षण वर्ग चलाया जाए।