भारत की नई मांगों से असियान व्यापार समझौता पर लग सकता ग्रहण

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विदित हो कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शिखर सम्मेलन में अपने भाषण में आरसीईपी का जिक्र तक नहीं किया। उन्होंने सिर्फ आसियान और भारत के बीच पहले हुए व्यापार समझौता की समीक्षा करने को कहा।



बैंकाक, 03 नवम्बर (हि.स.)। अमेरिका और चीन के बीच चल रहे कारोबारी जंग से दक्षिणपूर्वी एशिया देशों के नेता चिंतित हैं, इसलिए वे क्षेत्रीय व्यापार समझौता करने के लिए आगे बढ़ रहे हैं। अगर यह समझौता हो गया तो यह दुनिया में सबसे बड़ा व्यापारिक समझौता होगा।
समाचार एजेंसी रॉयटर के मुताबिक, असियान देशों के अधिकारी इसके लिए प्रयासरत हैं, लेकिन भारत की नई मांगों से इसको लेकर संदेह उत्पन्न हो गया है।इतना ही नहीं क्षेत्रीय समग्र आर्थिक साझेदारी (आरसीईपी) का समर्थन चीन कर रहा है, इस वजह से बैंकाक में चल रहे आसियान शिखर सम्मेलन में इसको लेकर संशय और भी बढ़ गया है।
विदित हो कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शिखर सम्मेलन में अपने भाषण में आरसीईपी का जिक्र तक नहीं किया। उन्होंने सिर्फ आसियान और भारत के बीच पहले हुए व्यापार समझौता की समीक्षा करने को कहा।. प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, ‘’इससे न केवल आसियान के साथ हमारे संबंध मजबूत होंगे, बल्कि व्यापार और भी संतुलित हो जाएंगे।‘’ विदित हो कि आरसीईपी होने से इस व्यापारिक ब्लॉक में दुनिया का एक तिहाई घरेलू उत्पाद होगा और करीब दुनिया की आधी आबादी होगी।
दरअसल भारत की चिंता है कि इससे दक्षिणपूर्व एशियाई देशों में चीनी वस्तुओं की बाढ़ आ जाएगी। यही वजह है कि पिछले सप्ताह भारत ने ऐसी मांगें रखी जिसे मानना कठिन है। हालांकि कुछ आसियान नेता दक्षिण कोरिया, जापान, न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया को साथ लेकर भारत के बिना आरसीईपी को मूर्त रूप देना चाहते हैं, लेकिन थाईलैंड के वाणिज्य मंत्री जूरी लकसनाविस्ट ने कहा कि भारत पीछे नहीं हटा है और वार्ता सही दिशा में चल रही है।
उधर चीनी प्रधानमंत्री ली केकियांग ने कहा है किदक्षिण चीन सागर क्षेत्र के देशों में दीर्घकालीन शांति और स्थिरता के लिए आसियान देशों के साथ मिलकर काम करने को तैयार है। उन्होंने आसियान की आचार संहिता बनाए जाने की भी प्रशंसा की।

 


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