मिलिए असम के छोटे से गांव से ऑस्कर तक का सफर तय करने वाली रीमा दास से

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उनकी पहली ही फ़िल्म ‘मैन विथ द बाईनोकुलर (अंतर्दृष्टि)’ का तालिन ब्लैक नाईट फ़िल्म फेस्टिवल में प्रीमियर किया गया तो दूसरी फिल्म द विलेज रॉकस्टार का प्रीमियर टोरंटो फ़िल्म फेस्टिवल में हुआ।



असम के एक छोटे से गांव में स्कूल शिक्षक के घर जन्मी रीमा दास ऐसी महिला फिल्ममेकर हैं… जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाई है। उनकी पहली ही फ़िल्म ‘मैन विथ द बाईनोकुलर (अंतर्दृष्टि)’ का तालिन ब्लैक नाईट फ़िल्म फेस्टिवल में प्रीमियर किया गया तो दूसरी फिल्म द विलेज रॉकस्टार का प्रीमियर टोरंटो फ़िल्म फेस्टिवल में हुआ। तीसरी फिल्म ‘बुलबुल कैन सिंग’ जो करीब 40 फ़िल्म फेस्टिवल्स में दिखाई जा चुकी है, और ऑस्कर में भारत की आधिकारिक नॉमिनी हो चुकी है। ‘बुलबुल कैन सिंग’  की रिलीज के मौके पर अखिलेश कुमार की  रीमा दास से हुई बातचीत के मुख्य अंश प्रस्तुत हैं :
प्रश्न : रीमा जी, हमारी बातचीत की शुरुआत आपकी फिल्मों से नहीं, बल्कि आपकी निजी जिंदगी से करते हैं। छोटे से गांव में बीता आपका बचपन, वहीं पर शिक्षा-दीक्षा और फिर फिल्मों में आना। ये सब किस तरह से संभव हो पाया?
उत्तर: मेरा जन्म असम के छायगांव में हुआ। जो कोलोही नदी के तट पर बसा है। मेरे पिताजी भारत चंद्र दास छायगांव चम्पक नगर गर्ल्स हाईस्कूल के संस्थापक और प्रधान शिक्षक थे। मेरी मां अपने इलाके की पहली महिला उद्यमी थीं, जो प्रिंटिंग प्रेस और बुक स्टोर चलाती थीं। घर में पूरा अकेडमिक वातावरण था। गुवाहाटी से ग्रेजुएशन करने के बाद मैंने पुणे से समाजशास्त्र में स्नातकोत्तर की शिक्षा प्राप्त की।
प्रश्न : आम तौर पर लोगों का झुकाव अभिनय की ओर होता है। आपकी फिल्ममेकर की यात्रा कैसे प्रारम्भ हुई?
उत्तर : मेरी भी रुचि अभिनय में ही थी मैंने अपनी पहली फ़िल्म ‘अंतर्दृष्टि- मैन विथ द बाईनोकुलर’ में अभिनय भी किया था। लेकिन हम जैसा चाहते थे वैसा नहीं हो पाया। लेखन, निर्देशन और प्रोडक्शन के काम के बीच में अभिनय में कुछ कमी रह जाती है। इसलिए बाद की फिल्मों में अभिनय नहीं किया।
प्रश्न : आपने फ़िल्म मेकिंग की कहीं से शिक्षा प्राप्त की?
उत्तर : इसके लिए मैंने इसकी कोई औपचारिक कोर्स नहीं किया है। स्वाध्याय की बदौलत इसकी बारीकियों को समझा। मैं अपने को सेल्फ टॉट मेकर मानती हूं।
प्रश्न : ‘बुलबुल कैन सिंग’ के ऑस्कर तक के सफर को कैसे देखती हैं?
 उत्तर :सफर शानदार रहा है, मैंने अपनी फिल्मी यात्रा की शुरुवात शॉर्ट फिल्म्स से की। इसे आप एक तरह से मेरे फिल्मी सफर की प्रारम्भिक शिक्षा कह सकते हैं। उसके बाद फ़ीचर फ़िल्म बनाई। पहली फ़िल्म मनोनुकूल नहीं बन पाई, पर यह दीगर बात है कि वह फ़िल्म भी समालोचकों को पसंद आई। लेकिन मुझे संतुष्टि मिली अपनी दूसरी फिल्म विलेज रॉकस्टार से। बुलबुल कैन सिंग भी बहुत अच्छी फिल्म बनी है।
प्रश्न : बुलबुल को शाहरुख खान ने ऑस्कर में प्रोमोट किया था। वह लम्हा आपके लिए कितना महत्वपूर्ण था?
उत्तर : जब किसी बड़े आयोजन में कोई बड़ा फिल्मस्टार आपकी फ़िल्म को प्रोमोट करता है तो उस फिल्म की महत्ता खुद-ब-खुद बढ़ ही जाती है। शाहरुख खान को बॉलीवुड का बादशाह कहा जाता है। अगर वे मेरी फिल्म को दुनिया के सामने पेश करते हैं तो ये मेरे लिए बेहद गर्व की बात है।
प्रश्न : ‘बुलबुल कैन सिंग’  से आप क्या संदेश देना चाहती हैं। यह किस तरह की फ़िल्म है?
उत्तर : अमूमन फिल्में बच्चों या बालिगों की समस्याओं को लेकर बनती हैं। लेकिन वे किशोर जो अब न बच्चे रह गए हैं और ना ही वयस्क हो पाए हैं उनपर फिल्में नहीं बनतीं। बुलबुल वैसे ही तीन किशोरवय बच्चों की कहानी है। उनकी यौन जिज्ञासा को पर्दे पर उतारती है मेरी यह फिल्म। दुनिया भर के करीब 40 फ़िल्म फेस्टिवल में सराही जा चुकी है।
प्रश्न : ‘बुलबुल कैन सिंग’ ऑस्कर के लिये भारत से नोमिनेट हुई लेकिन वहां आपको सफलता नहीं मिल पाई। आपके लिये यह कितना कष्टप्रद था।
उत्तर : बुरा तो लगा लेकिन ऑस्कर में जूरी नहीं होती, वहां वोटर्स होते हैं। आपको वोटर्स के बीच अपनी फिल्म को प्रोमोट करना होता है। उसके लिए समय चाहिए होता है और आपका पक्ष आर्थिक दृष्टि से भी मजबूत होना जरूरी होता है। वहां जो विदेशी फिल्में जाती हैं उनके बारे में लोगों को बहुत पहले से पता होता है कि अमुक फ़िल्म ऑस्कर में जा रही है। भारतीय फिल्मों के सेलेक्शन के बारे में बहुत बाद में पता चलता है। उन्हें अपना प्रोमोशन करने और अधिक से अधिक वोटर्स तक फ़िल्म को पहुंचना कठिन हो जाता है। इसलिए भारतीय फिल्म अच्छी होने के बावजूद वोट इकट्ठा नहीं कर पातीं।
प्रश्न : क्या इसे आर्ट फ़िल्म कहना उचित होगा? या इसमें कमर्शियल एलिमेंट भी है?
उत्तर : वैसे तो हर फिल्म कलात्मक होती है। बुलबुल भी कला और मनोरंजन के बीच सामंजस्य बैठा लेती है। अभी पिछले दिनों यह असम में रिलीज हुई है थियेटर में लोग देखने आ रहे हैं। आम लोगों के बीच भी लोकप्रिय हो रही है तो आप इसे कमर्शियल फ़िल्म भी कह सकते हैं।
प्रश्न : आप किस तरह की फिल्में बनाना पसंद करती हैं? भविष्य की क्या योजनाएं हैं? कोई बायोपिक बनाएंगी?
उत्तर : मैं मानव संबंधों पर फ़िल्म बनाना पसंद करती हूं। रिलेशनशिप, सेपरेशन, तनाव, उनके मनोविज्ञान पर फिल्में बनाऊंगी। अभी बायोपिक बनाने का कोई विचार नहीं है।
प्रश्न : मेनस्ट्रीम सिनेमा और फेस्टिवल सिनेमा को आप किस तरह देखती हैं?
उत्तर : अब यह बैरियर टूट रहा है। ओटीटी प्लेटफॉर्म के आ जाने से नया दर्शक वर्ग तैयार हुआ है। लोग अलग-अलग कंटेंट की फिल्मों को पसंद करने लगे हैं। बदलाव आया है। नेटफ्लिक्स, हॉटस्टार, अमेज़न आदि ने कंटेंट का विशाल भंडार खोल दिया है। ये सभी सफलता पूर्वक चल रहे हैं।
 प्रश्न : क्या आप टेलीविजन के लिए भी कुछ करने का मन बना रहीं है? 
उत्तर : मेरी पहली पसंद सिनेमा है। टेलीविजन के लिए सीरियल बनाने में कोई रुचि नहीं है। हां, वेब सीरीज बना सकती हूं लेकिन फिलहाल इस बारे में कुछ सोचा नहीं है।

 


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