अरुण जेटली भारतीय सियासत में हमेशा एक सितारे की तरह टिमटिमाते रहेंगे। बेशक वे आज हमारे बीच नहीं रहे लेकिन सियासत और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लिए उनका योगदान कभी भुलाया नहीं जा सकेगा। अपनी हाजिरजवाबी से विरोधियों को चित्त कर देने वाले और देशहित में नीतियां बनाने में माहिर जेटली का 66 वर्ष की आयु में निधन हो गया। डॉक्टरों के मुताबिक जेटली के फेफड़ों में पानी जमा हो गया था, जिसकी वजह से उन्हें सांस लेने में दिक्कत आ रही थी। इस कारण उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया था। डॉक्टरी सूत्रों का ये भी कहना था कि उन्हें सॉफ्ट टिशू सरकोमा हुआ था, जो एक प्रकार का कैंसर होता है और कहीं न कहीं इसी की वजह से उन्हें काफी परेशानियां पेश आ रही थीं। वो डायबिटीज के मरीज थे और उनका किडनी ट्रांसप्लांट भी हो चुका था। कुछ दिनों पहले उन्हें सॉफ्ट टिशू कैंसर की बीमारी होने का भी पता चला था।
जेटली के निजी जीवन पर एक नज़र –
मोदी सरकार के पिछले कार्यकाल में सफल वित्तमंत्री रह चुके अरुण जेटली का जन्म 28 दिसंबर,1952 को महाराज किशन जेटली और रतन प्रभा जेटली के घर हुआ। उनके पिता एक कामयाब वकील थे। 1957-69 के दौरान सेंट जेवियर्स स्कूल,नई दिल्ली से उनकी स्कूली शिक्षा हुई। 1973 में श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स,नई दिल्ली से उन्होंने कॉमर्स में स्नातक किया, जबकि 1977 में दिल्ली विश्वविद्यालय से लॉ की डिग्री हासिल की। छात्र जीवन के दौरान शिक्षा के अलावा अन्य गतिविधियों में उत्कृष्ट प्रदर्शन के दम पर उन्होंने कई उच्च सम्मान हासिल किए। 24 मई,1982 को संगीता जेटली के साथ वे परिणय सूत्र में बंधे और फिर उनके घर में पुत्र रोहन और पुत्री सोनाली की किलकारियां गूंजी।
जेटली का सियासी सफर-
राजनीति में शामिल होने से पहले जेटली सुप्रीम कोर्ट में लॉ प्रैक्टिस करते थे। उन्हें दिल्ली हाईकोर्ट की ओर से वरिष्ठ वकील के रूप में नामित किया गया था। 1975 में आपातकाल के दौरान उन्होंने इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ चलाए गए आंदोलन में सक्रिय रूप से हिस्सा लिया, जिसके चलते उन्हें गिरफ्तार कर पहले अंबाला और फिर तिहाड़ जेल में रखा गया। उस समय वे युवा मोर्चा के संयोजक थे।
1980 से भाजपा का हिस्सा रहे अरुण जेटली को 1991 में भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी का सदस्य बनने का अवसर प्राप्त हुआ। 1999 के आम चुनाव से पहले उन्हें पार्टी प्रवक्ता के रूप में नियुक्त किया गया। अपनी हाजिरजवाबी और विरोधियों के हर सवाल पर फौरन पलटवार करने की खूबी के चलते वो पार्टी का अभिन्न हिस्सा बन चुके थे। 1999 में वाजपेयी सरकार के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन(एनडीए) के सत्ता में आने के बाद, उन्हें 13 अक्टूबर,1999 को सूचना एवं प्रसारण राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) नियुक्त किया गया। साथ ही उन्हें विनिवेश राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) का भी पदभार सौंपा गया। 23 जुलाई,2000 को राम जेठमलानी के इस्तीफे के बाद उन्होंने कानून, न्याय एवं कंपनी मामलों के केंद्रीय कैबिनेट मंत्री के रूप में अतिरिक्त प्रभार संभाला। उनकी कार्य कुशलता को देखते हुए चार महीने बाद ही नवम्बर 2000 में उन्हें कैबिनेट मंत्री के रूप में पदोन्नत किया गया और एक साथ कानून, न्याय एवं कंपनी मामले और जहाजरानी मंत्री बनाया गया। लगातार बुलंदियों की तरफ निकल चुके जेटली के कैरियर की रफ्तार पर उस समय ब्रेक लगा, जब मई 2004 के आम चुनावों में एनडीए को हार का सामना करना पड़ा। इस हार के बाद वे महासचिव के रूप में पार्टी की सेवा करने के लिए वापस आए और अपनी वकालत को भी जारी रखा।
तीन जून,2009 को राज्यसभा में जेटली को नेता विपक्ष चुना गया, जहां उन्होंने महिला आरक्षण विधेयक पर बहस के दौरान बेहद अहम भूमिका निभाई और जन लोकपाल विधेयक के लिए अन्ना हजारे का समर्थन भी किया। 1980 से लगातार पार्टी में होने के बावजूद उन्होंने 2014 तक कभी कोई सीधा चुनाव नहीं लड़ा। 2014 के आम चुनाव में उन्हें नवजोत सिंह सिद्धू की जगह अमृतसर लोकसभा सीट से बतौर भाजपा उम्मीदवार उतारा गया लेकिन कांग्रेस उम्मीदवार कैप्टन अमरिंदर सिंह से उन्हें इस सीट पर हार का सामना करना पड़ा। उनकी इस हार से उनके सियासी कद पर कोई फर्क नहीं पड़ा और मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में उन्हें वित्तमंत्री का अहम पद दिया गया। साथ ही गुजरात और फिर 2018 में उन्हें उत्तर प्रदेश से राज्यसभा के लिए चुना गया।
बेहद सुलझे हुए नेता थे जेटली-
अरुण जेटली को भाजपा का एक सुलझा हुआ और कद्दावर नेता माना जाता रहा है। भारत के वित्तमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने कई कड़े और बड़े फैसले लिए। नौ नवंबर, 2016 से भ्रष्टाचार, काले धन, नकली करंसी और आतंकवाद पर अंकुश लगाने के इरादे से महात्मा गांधी श्रृंखला के 500 और 1000 के नोटों का विमुद्रीकरण किया। सरकार के इस फैसले से हालांकि जनता को कुछ दिन तक काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। इस बीच विरोधियों ने इस मुद्दे पर जमकर सियासत भी की लेकिन इस कठिन समय में जेटली ने अपनी सूझ-बूझ का परिचय देते हुए लोगों को इसके दूरगामी फायदे समझाए और साथ ही ऐसा व्यवस्था भी करवाई कि बैंकों में किसी को भी करंसी बदलवाते समय ज्यादा दिक्कतों का सामना न करना पड़े।
देश को दिए जीएसटी जैसे रिफॉर्म-
वित्तमंत्री के रूप में उन्होंने जीएसटी जैसे रिफॉर्म देश को दिए। हालांकि, इसे लेकर उन्हें कारोबारियों और विरोधी दलों के विरोध का भारी सामना भी करना पड़ा लेकिन उन्होंने ज़मीनी स्तर पर जाकर छोटे से लेकर बड़े व्यापारियों तक पहुंच बनाई और जीएसटी के फायदे समझाए। इसके आधार पर 20 जून,2017 को उन्होंने ऐलान किया कि जीएसटी रोलआउट अच्छी तरह से और सही मायने में ट्रैक पर आ गया है।
इसी साल मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में जेटली ने खराब सेहत का हवाला देते हुए कोई भी पद लेने से इनकार कर दिया। किडनी ट्रांसप्लांट के बाद से ही उनके स्वास्थ्य में लगातार गिरावट देखने को मिल रही थी। साथ ही वे डायबीटिज़ के भी मरीज़ थे। बताया यह भी जाता था कि मोटापे से छुटकारा पाने के लिए उन्होंने बैरिएट्रिक सर्जरी कराई थी, जिसका उनके स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर पड़ रहा था। बेशक जेटली अब इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन अपने सफल सियासी जीवन के दम पर वे हमेशा भारतीय सियासत के आसमान में एक सितारे की तरह टिमटिमाते रहेंगे। हिन्दुस्थान समाचार की तरफ से अरुण जेटली को भावभीनी श्रद्धाजंलि।