स्मृति शेषः मन्नू भंडारी
प्रभुनाथ शुक्ल
मन्नू भंडारी का खालीपन हिंदी साहित्य कभी भर नहीं पाएगा। मन्नू को हम जाने से रोक नहीं सकते थे, क्योंकि यही जीवन का सत्य है और नश्वरता ही जीवन का का सत्य है। लेकिन उस खालीपन को भरना भी हमारे लिए सहज नहीं है। यह भी एक जीवन की विडम्बना है। हिंदी साहित्य की मन्नू एक युग थीं और वह युग युगांतकारी था। मन्नू सिर्फ देह से हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन हिंदी साहित्य में मन्नू हमेशा मौजूद रहेंगी। कहानियों में वह विद्यमान रहेंगी। उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से हिंदी को ओढ़ा, दशया और बिछाया।
मन्नू भंडारी का जाना हिंदी साहित्य के लिए अपूरणीय क्षति है। हिंदी कहानी को पालने-पोसने में उन्होंने बड़ा योगदान दिया। नई कहानी के विकास में जब भी महिला साहित्यकारों की बात उठेगी तो मन्नू पहली कतार में हमें खड़ी मिलेंगी। कहानी, उपन्यास और नाटक पर उनका समान अधिकार था। कहानी को उन्होंने गढ़ा। अपने दौर के साहित्यकारों को उन्होंने खूब चुनौती दी और बेहतरीन कहानियां लिखी। उस दौर की सबसे चर्चित साहित्यिक पत्रिका ‘धर्मयुग’ में उनके उपन्यास ‘आपका बंटी’ की कड़ियां सिलसिलेवार प्रकाशित हुई। इस उपन्यास के जरिए ‘धर्मयुग’ ने उन्हें बुलंदियों पर पहुंचाया। मन्नू जी के पिता खुद एक चर्चित लेखक थे। वह प्रसिद्ध साहित्यकार एवं हंस के संपादक रहे राजेंद्र यादव की धर्मपत्नी थीं। राजेंद्र यादव के साथ मिलकर उन्होंने उपन्यास ‘एक इंच मुस्कान’ की रचना की।
मन्नू भण्डारी की अन्य कृतियों में आपका बंटी, आंखों देखा झूठ, महाभोज, एक प्लेट सैलाब, मैं हार गई, यही सच है, त्रिशंकु, आंखों देखा झूठ जैसी चर्चित कहानियां और उपन्यास रहे। उन्होंने महाभोज नामक उपन्यास लिखा जो बेहद चर्चित हुआ। यह उपन्यास नौकरशाही और राजनीति के गठजोड़ पर लिखा गया। जिसकी वजह से इसे खूब शोहरत मिली। उन्होंने ‘बिना दीवार का घर’ जैसा नाटक भी लिखा।
मन्नू भंडारी की रचनाधर्मिता किसी की मोहताज नहीं थी। उन्होंने रचनाओं के साथ पूरा इंसाफ किया है। सामाजिक कुरीतियों पर भी हमला बोला है। मन्नू की कहानियों में महिलाओं को विशेष रूप से स्थापित किया गया। उनकी कहानियों और उपन्यासों में स्त्री संघर्ष को अच्छे तरीके से चित्रित किया गया है। महिला किरदारों के संघर्ष को जिस तरह से उन्होंने उल्लेख किया है, वह कहीं अन्यत्र देखने को नहीं मिलता है। मनु नई कहानी आंदोलन का अहम हिस्सा थीं। नई कहानी की शुरुआत निर्मल वर्मा, भीष्म साहनी, राजेंद्र यादव और कमलेश्वर जैसे चर्चित साहित्यकारों ने की थी। इतने बड़े युगान्तकारी साहित्यकारों के साथ मन्नू ने जिस तरह साहित्य में अपनी उपस्थिति दर्ज करायी, वह महिला साहित्यकारों के लिए बड़ी चुनौती थी। ख़ासकर उस दौर में जब महिला साहित्यकारों का अस्तित्व ही क्या था। लेकिन उस दौर में अपने को स्थापित कर मन्नू ने खुद को साबित कर दिया।
स्वतंत्रता के बाद अपनी कहानियों में महिलाओं के संघर्ष को उन्होंने अच्छे तरीके से दर्शाया है। कहानियों के माध्यम से मन्नू जी ने नारी स्वतंत्रता अधिकार को प्राथमिकता दी। स्त्री संघर्ष को दर्शाते हुए सामाजिक रुढ़िवादिता और कुरीतियों पर हमला करते हुए पात्रों को स्थापित किया। मन्नू जी के पति और चर्चित साहित्यकार राजेंद्र यादव के साथ साठ के दशक में लिखा गया उनका उपन्यास ‘एक इंच मुस्कान’ काफी लोकप्रिय हुआ। मन्नू जी के साहित्य में सामाजिक और पारिवारिक समस्याओं और कुरीतियों को चित्रित किया गया है।
मन्नू भंडारी के उपन्यास ‘आपका बंटी’ में ऐसे बच्चे को केंद्र में रखा है जिसके माता-पिता का तलाक हो गया है। ऐसी स्थिति में बच्चों पर क्या प्रभाव पड़ता है इस बात का उल्लेख कर उन्होंने सामाजिक त्रासदी से बचने के लिए संदेश दिया। मन्नू के उपन्यास पर ही चर्चित फिल्म ‘रजनीगंधा’ का निर्माण हुआ था। फिल्म को फिल्म फेयर अवार्ड भी मिला। आधुनिक हिंदी साहित्य में मन्नू भंडारी, अमृता प्रीतम, महादेवी वर्मा, कृष्णा शोबती, चित्र मुदगल, मृदुला गर्ग जैसी लेखिकाएँ और उनकी अमर कृतियाँ क्यों नहीं मिल पा रहीं। साहित्य में ऐसा नहीं है कि कुछ लिखा नहीं जा रहा है। लिखा तो बहुत जा रहा है, लेकिन वह कृतियां अमर नहीं हो पा रहीं हैं। हिंदी साहित्य और साहित्यकारों के साथ ही पाठकों को भी इसका हल खोजना पड़ेगा।
मन्नू भंडारी का जन्म मध्य प्रदेश के मंदसौर में हुआ था। उनके बचपन का नाम महेंद्र कुमारी था। मन्नू नाम उन्होंने स्वयं लेखन के लिए चुना। उन्हें अनगिनत पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए जिसका उल्लेख यहां करना उनके कद को छोटा करना होगा। 15 नवम्बर को उन्होंने जीवन एवं साहित्य जगत को अलविदा कह दिया। मन्नू भंडारी आधुनिक साहित्यकार जगत की वह सितारा थीं जिसकी भरपाई फिलहाल संभव नहीं है।
मन्नू भंडारी की ‘एक इंच मुस्कान’ अब हमें देखने को नहीं मिलेगी लेकिन उनकी रचनाएं कभी खामोश नहीं होंगी। वह हमारे बीच हमारे किरदारों में हमेशा बोलती-बतियाती और मुस्कुराती रहेंगी। हिंदी कहानी और उपन्यास को उन्होंने बहुत कुछ दिया। उनके जाने से बाद उस खालीपन को भरना मुश्किल है। नए साहित्यकारों को मन्नू की रचना धर्मिता का अनुसरण करना चाहिए। मन्नू जी को हमारी तरफ से एक विनम्र और अश्रुपूरित श्रद्धांजलि। हम उम्मीद करते हैं कि हिंदी साहित्य में मन्नू जैसी लेखिका हमें फिर मिलेगा। उनके लिए हिंदी साहित्य जगत की सच्चे मायने में यही श्रद्धांजलि होगी।