जोई बिडेन की जीत में अश्वेत और प्रवासी भारतीयों का जादू
वॉशिंगटन, 06 मार्च (हि.स.)। अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव में एक ओर रिपब्लिकन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प हैं तो दूसरी ओर डेमोक्रेटिक पार्टी की अधिकृत उम्मीदवार के लिए जोई बिडेन और बर्नी सैंडर्स आमने सामने रह गए हैं। पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के साथ आठ वर्षों तक उपराष्ट्रपति पद पर सुशोभित जोई बिडेन ने लगातार पिछड़ने के बाद नाटकीय दौर में वरमोंट से निर्दलीय सिनेटर बर्नी सैंडर्स को जिस तरह तीन मार्च, सुपर ट्यूज डे मतदान में पछाड़ा है, वह ठीक 2016 में अधिकृत उम्मीदवारी की शुरूआत भर है।
बर्नी समाजवादी है, और वह एक मिशन के तहत पूंजीवादी व्यवस्था से लोहा लेने में जुटे हैं। उन्हें यह कतई रास नहीं आ रहा है कि एक निर्धन अथवा मध्यम वर्ग का छात्र उच्च शिक्षा के लिए कॉलेज की फ़ीस क्यों दे अथवा उसे निशुल्क हेल्थ केयर क्यों नहीं मिले? इसी तरह के सवाल उनके जहन में कौंध रहे हैं। उनकी मदद भी ऐसे ही छात्र और युवा कर रहे हैं। इसके बावजूद समाजवादी बर्नी सैंडर्स की उलटी गिनती शुरू होना एक चर्चा का विषय है। बर्नी के ख़िलाफ़ सरमाएदार लामबंद होते जा रहे हैं और इसकोशिश में हैं कि उन्हें अधिकृत उम्मीदवारी की टिकट ना मिले। राष्ट्रपति चुनाव मंगलवार, ३ नवंबर को होने तय हैं।
बिडेन आगे, बर्नी पिछड़ी
क़रीब दो वर्षों तक चलने वाले चुनाव अभियान के प्रारंभिक चरण में बर्नी सैंडर्स सहज बढ़त बनाए हुए थे। पहले चार राज्यों-आयोवा, न्यू हैंप्शायर, नवेडा और साउथ कैरोलाइना में दाँव पर लगे 155 प्रतिनिधि मतों में बर्नी सैंडर्स ने प्रवासी मतों, मूलत: लेटिनों और छात्रों के बल पर आयोवा में कड़े संघर्ष के बाद न्यू हैंप्शायर व लेटिनो बहुल नवेडा जीत कर बढ़त और पक्की कर ली थी। उन्हें अश्वेत बहुल राज्य साउथ कैरोलाइना में ऐसी मार पड़ी कि वह इसके अगले महीने 3 मार्च को हुए सुपर ट्यूज़डे में उबर नहीं पाए। अश्वेत मतदाताओं में लोकप्रिय बराक ओबामा के चहेतों और डेमोक्रेटिक पार्टी से बंधे लेटिनो, एशियाई, जिनमें प्रवासी भारतीयों में एक बड़ी संख्या ने जोई बिडेन को दस राज्यों में जीत दिलाई और प्रतिनिधि मतों में बर्नी सैंडर्स से आगे कर दिया। इन 14 राज्यों में से बर्नी सैंडर्स के हाथ कैलिफ़ोर्निया, कोलोराडो और दो नन्हें से राज्यों गृह राज्य वरमोंट और ऊटा आए। कैलिफ़ोनिया में बिडेन को बर्नी सैंडर्स के हाथों पराजय क्यों मिली? यहाँ कांग्रेस में डेमोक्रेटिक पार्टी के प्रवासी भारतीय प्रतिनिधियों ने ही बिडेन का साथ नहीं दिया, जबकि उन्हें यह बाख़ूबी मालूम था कि बिडेन को ओबामा का वरदहस्त है। बहरहाल, बिडेन (604), बर्नी (524), एलिज़ाबेथ वारेन (56) और अरबपति माइकल ब्लूमबर्ग (46) बिडेन बाज़ी जीत गए। नियमानुसार अधिकृत उम्मीदवार उसे बनाया जाएगा जो कुल 3979 प्रतिनिधि मतों में से 1991 मत बटोर सकेगा।
यहां इस बात का उल्लेख करना ज़रूरी होगा कि साउथ कैरोलाइना में जोई बिडेन की नाटकीय विजय के बाद आयोवा में श्वेत मतों के विजेता गे उम्मीदवार पेटे बूटिगेग, मिनिसोटा से सिनेटर एमी क्लोबूचर, टेक्सास से बेटो ओ रोर्के ने सुपर ट्यूज डे मतदान से चंद घंटों पूर्व बिडेन का समर्थन लिया। इसका मतदान पर सीधा यह असर गया कि जोई बिडेन को टेनेसी और ओकलहामा में प्रचार के बिना जीत हासिल हुई तो मैसाचुट्स से सिनेटर एलिज़ाबेथ वारेन को उनके गृह राज्य में तीसरे नंबर पर पछाड़ने में सफलता मिली। टेक्सास में प्रवासी भारतीयों और लेटिनों के साथ साथ अश्वेत मतदाताओं ने बिडेन की झोली भर दी।
बिडेन को भारतीय अमेरिकी मतदाताओं का समर्थन
इस चुनाव में एक ख़ास बात देखने में यह आई कि न्यूयॉर्क वाल स्ट्रीट में स्टाक मार्केट चार फीसदी चढ़ गई। इसका सीधा संदेश यह गया कि अमेरिकी पूँजीवादी एक समाजवादी को झेलने को तैयार नहीं हैं। बिडेन को बराक ओबामा का वरदहस्त प्राप्त है। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के प्रति सम्पूर्ण प्रेम के बावजूद प्रवासी भारतीय चिकित्सकों का डेमोक्रेटिक पार्टी के प्रति झुकाव कम नहीं हुआ है। प्रवासी भारतीय चिकित्सकों की सबसे बड़ी संस्था ‘आपी’ ने बिडेन का समर्थन किया है।
बर्नी के लिए आगे का रास्ता और कठिन
बर्नी के लिए क़रीब ढाई दर्जन राज्यों में अधिकृत उम्मीदवारी का रास्ता तय करना और भी लंबा एवं कठिन है। उन्हें चंदे की मोटी रक़म के साथ फ़्री वाले वालंटियर भी चाहिए। आने वाले मंगलवार से सुपर ट्यूज़डे में मिशिगन सहित सात राज्यों में बर्नी बनाम बिडेन मुक़ाबला होगा। श्रम बहुल इस राज्य में डेमोक्रेट गवर्नर ग्रेचेन विट्मर पहले से बिडेन को समर्थन दे चुकी हैं और पोल एक्ज़िट भी बिडेन को सात अंकों की बढ़त दे रहा है। ये सुपर ट्यूज़डे मुक़ाबले अप्रैल-जून तक चलेंगे। जुलाई में मिड वेस्ट के विसकोनसिन राज्य में डेमोक्रेटिक सम्मेलन होगा। इसमें अधिकृत दावेदारी के लिए कुल प्लेजड मतों में से अधिकतम 1991 मतों से दावेदारी सिद्ध करनी होगी। इस दौड़ के लिए बिडेन को पूँजीपतियों से चंदे की मोटी रक़म मिलनी शुरू हो गई है तो बर्नी सैंडर्स एक बार फिर नि:शुल्क उच्च शिक्षा और मेडिकेयर के नाम पर छात्रों और युवाओं को तैयार करने में जूझ रहे हैं। 75 करोड़ डालर व्यय करने वाले अरबपति माइकेल ब्लूमबर्ग ने राष्ट्रपति पद के लिए दावेदारी छोड़कर बिडेन के समर्थन में आ गए हैं, तो एलिज़ाबेथ वारेन भी एक वर्ष जूझने के पश्चात बेरंग लौट आई है। हालाँकि एलिज़ाबेथ प्रगतिशील होने के नाते बर्नी के ज़्यादा समीप हैं, लेकिन उन्होंने अभी तक समर्थन नहीं दिया है। आज बर्नी के ख़िलाफ़ वे सब भारतीय लामबंद हो गए हैं, जो उनके दिल्ली हिंसा में दिए गए वक्तव्य से नाराज़ हैं। बर्नी ने ट्रम्प के भारत दौरे को निरर्थक और दिल्ली हिंसा में हिंदु समुदाय को टार्गेट किया था। अब बर्नी समर्थित एक विशेष समुदाय के लोग बिडेन से जुड़े हिंदू समुदाय को तोड़ने में जुट गए हैं।