नई दिल्ली, 20 जून (हि.स.)। गलवान घाटी में चीनी सैनिकों के साथ 15-16 जून की रात को हुई खूनी झड़प के बाद भारतीय सेना ने 72 घंटे के भीतर पूर्वी लद्दाख क्षेत्र में श्योक नदी पर एक पुल का निर्माण पूरा कर लिया है, जो श्योक-गलवान नदियों के मिलन बिंदु के बहुत करीब है। यह पुल पेट्रोलिंग पॉइंट 14 के ट्रैक पर नहीं है लेकिन उस जगह से बहुत दूर भी नहीं है जहां पर झड़प हुई थी। आर्मी के इसी ढांचे को लेकर गलवान घाटी में दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ा है।
गलवान घाटी की घटना में 20 भारतीय सैनिकों के शहीद होने के बाद मंगलवार (16 जून) की सुबह जब चीन के साथ तनाव जारी था, उसी बीच आर्मी की कारू बेस्ड डिविजन ने सेना की इंजीनियर डिविजन को श्योक नदी पर 60 मीटर लम्बे ‘बेली ब्रिज’ का निर्माण कार्य तेज करने के निर्देश दिए। यह एक तरह से पोर्टेबल पुल होता है जिसे सेना अपनी जरूरत के लिहाज से उस जगह बनाती है जहां आने-जाने के लिए उचित मार्ग नहीं होते हैं। मिशन पूरा होने के बाद सेना यह अस्थाई पुल उखाड़ देती है।
दरअसल सोमवार की रात गलवान घाटी में भारतीय सैनिकों की चीनियों के साथ हिंसक झड़प के बाद सेना का मानना था कि अगर आगे भी इस तरह की हिंसक घटनाएं हुई तो श्योक नदी के ऊपर से आने-जाने के लिए ऐसा साधन होना चाहिए ताकि सेना के लड़ाकू वाहनों सहित सभी प्रकार के सैन्य वाहन तेजी से आ-जा सकें। इसलिए मंगलवार को जहां एक तरफ चीन के सैन्य अधिकारियों से वार्ता चल रही थी तो दूसरी तरफ इस पुल का निर्माण जल्द से जल्द पूरा करने के निर्देश सेना के इंजीनियरों को दिए गए।
चीन का विरोध दरकिनार करके सेना के इंजीनियरों ने पुल का निर्माण खत्म करने के लिए दिन-रात मेहनत की। सेना के इंजीनियरों ने खून जमा देने वाली सर्दी में मंगलवार और बुधवार की रात में भी काम जारी रखा और 72 घंटे के भीतर गुरुवार को ‘बेली ब्रिज’ बना डाला। इतना ही नहीं सेना ने 2 घंटे तक इस पुल से वाहनों को गुजारकर परीक्षण भी किया। यह पुल तैयार हो जाने से भारतीय सेना की वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर पहुंच काफी आसान हो गई है।
चीन के साथ चल रहे तनाव को देखते हुए पुल के निर्माण कार्य में जुटे इंजीनियरों को सुरक्षा कवर देने के लिए सेना की इंफैन्ट्री यूनिट को निर्देश दिए गए थे। कुल मिलाकर भारत के दो बुनियादी ढांचे में से एक यह पुल अब बनकर पूरी तरह तैयार है। गलवान घाटी में यह पुल सेना की पहुंच आसान बनाने और चीन पर निगरानी रखने में मददगार साबित होगा। भारत का दूसरा मिशन श्योक नदी के पूर्वी तट पर डीएसडीबीओ मार्ग है जो भारत को केवल गलवान घाटी तक ही नहीं बल्कि उत्तरी क्षेत्रों में भी पहुंच को आसान बनाएगा।