खत्म हुआ सशस्त्र संगठन एनडीएफबी का 34 वर्षों से चल रहा संग्राम

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एनडीएफबी के तीनों गुट ने एक साथ अपने झंडे उतारकर संगठन को किया भंग – असम के बीटीसी इलाके में अब स्थायी तौर पर शांति स्थापित होगी



उदालगुड़ी, 09 मार्च (हि.स.)। अंततः औपचारिक रूप से सशस्त्र संगठन नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ़ बोडोलैंड (एनडीएफबी) के सभी धड़ों का 34 वर्षों से चल रहा संग्राम समाप्त हो गया। सोमवार को उदालगुड़ी के सोनाइगांव स्थित एनडीएफबी के रंजन दैमारी गुट के डेजिगनेटेड कैंप में एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। जिसमें एनडीएफबी के आर, एस और डी गुट ने एक साथ अपने झंडे को उतार कर संगठन को भंग कर दिया।

इस मौके पर डी गुट के अध्यक्ष धीरेन बोड़ो, एस गुट के अध्यक्ष सराइगोडा और आर गुट के महासचिव बी अनजालू मौजूद थे। इस मौके पर सराइगोडा काफी भावुक हो गए। मीडिया से बातचीत करते हुए एनडीएफबी के नेताओं ने कहा कि केंद्र सरकार के साथ बोडोलैंड टेरिटोरियल रिजन (बीटीआर) के समझौते के मद्देनजर बीटीसी की राजनीति में शामिल होने का उन्होंने संकेत दिया। माना जा रहा है कि असम के बीटीसी इलाके में अब स्थायी तौर पर शांति स्थापित होगी जिसके चलते इस क्षेत्र का तेज गति से विकास होगा। राज्य का बोड़ोलैंड इलाका लंबे समय से हिंसा की आग में जल रहा था।

क्या हुआ था समझौता 

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की उपस्थिति में 50 वर्षों से चले आ रहे बोडो मुद्दे के समाधान के लिये 27 जनवरी को समझौता किया गया था। इस दौरान असम के मुख्य मंत्री सर्वानंद सोनोवाल, नार्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायन्स (नेडा) के अध्यक्ष हिमन्त विश्व शर्मा, बीटीसी बोडोलैंड प्रादेशिक परिषद के मुख्य कार्यकारी सदस्य हग्रामा मोहिलारी, एनडीएफबी के गोविन्दा बासूमतारी, धीरेन्द्र बोरा, रंजन दाइमारी तथा सरायगारा घटकों के प्रतिनिधि सहित केंद्र सरकार तथा असम सरकार के वरिष्ठ अधिकारी शामिल रहे। समझौते में यह भी तय किया गया था कि 1500 करोड़ रुपये के भारत सरकार और राज्य सरकार के विशेष विकास पैकेज से असम में बोडो क्षेत्रों के विकास के लिए विशिष्ट परियोजनाएं शुरू की जायेंगी। इसके अलावा बोडो आंदोलन में मारे गए लोगों के प्रत्येक परिवार को 5 लाख का मुआवजा दिया जाएगा। इस समझौते के बाद 1500 से अधिक हथियारधारी सदस्य हिंसा का रास्ता छोड़कर मुख्यधारा में शामिल हो जायेंगे।

बोडो आंदोलन समाप्त करने को मोदी सरकार ने की पहल 

पूर्व में वर्ष 1993 और 2003 के समझौतों से संतुष्ट न होने के कारण बोडो द्वारा और अधिक शक्तियों की मांग लगातार की जाती रही और असम राज्य की क्षेत्रीय अखंडता को बरकरार रखते हुए बोडो संगठनों के साथ उनकी मांगों के लिए एक व्यापक और अंतिम समाधान के लिए बातचीत की गई। मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद अगस्त 2019 से एबीएसयू, एनडीएफबी गुटों और अन्य बोडो संगठनों के साथ दशकों पुराने बोडो आंदोलन को समाप्त करने के लिए व्यापक समाधान तक पहुंचने के लिए गहन विचार-विमर्श भी किया गया।

इस समझौता ज्ञापन का उद्देश्य बीटीसी के क्षेत्र और शक्तियों को बढ़ाने और इसके कामकाज को कारगर बनाना है। इसके साथ बीटीएडी के बाहर रहने वाले बोडो से संबंधित मुद्दों का समाधान तथा बोडो की सामाजिक, सांस्कृतिक, भाषाई और जातीय पहचान को बढ़ावा देना और उनकी रक्षा करना भी है। समझौते के अन्य बिंदुओं में आदिवासियों के भूमि अधिकारों के लिए विधायी सुरक्षा प्रदान करना और जनजातीय क्षेत्रों का त्वरित विकास सुनिश्चित करने के साथ साथ एनडीएफबी गुटों के सदस्यों का पुनर्वास करना भी शामिल है। समझौते से संविधान में छठी अनुसूची के अनुच्छेद 14 के तहत एक आयोग का गठन करने का प्रस्ताव है जो बहुसंख्यक गैर-आदिवासी आबादी कि बीटीएडी से सटे गांवों को शामिल करने और बहुसंख्यक आदिवासी आबादी की जांच करने का काम करेगा।

 


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