नई दिल्ली, 12 जनवरी (हि.स.)। तेजी से बढ़ रही आबादी की खाद्य जरूरतों को पूरा करने के लिये मत्स्य खेती न केवल लाभकारी साबित हो रही है वरन वह एक टिकाऊ समाधान भी मुहैया करा सकती है। राज्यों के लिये यह बहुत ही उपयोगी और वरदान के रूप में देखा जा रहा है।
भारत के पर्वतीय क्षेत्रों में स्थित विभिन्न शीतजल स्त्रोतों में अनूठी किस्मों की मछलियां पायी जाती हैं, जिनमें 258 मत्स्य प्रजातियां हैं जो 76 वंश से संबंधित हैं। ये संपूर्ण हिमालयी व दक्षिणी पठारी क्षेत्रों में फैली हैं। मुख्यत: स्नो ट्राउट,महाशीर, माइनर कार्प, बैरीलियम, मिन्नउ, कैटफिश तथा लोचेस आदि देशी प्रजाति तथा ट्राउट व चाइनीज कार्प विदेशी प्रजाति के अंतर्गत आती हैं। उत्तर-पश्चिम से उत्तर-पूर्व तक फैले हुए विशाल हिमालयी क्षेत्रों में अन्य प्रकार के असंख्य प्राकृतिक मानव निर्मित जल संसाधनों का भंडार है।
ओडिशा का कोरापुट जिला एक आदिवासी बहुल क्षेत्र है और यहां जलीय कृषि प्रारंभिक अवस्था में है। मिशन फाॅर इंटीग्रेटेड डेवलपमेंट ऑफ हाॅर्टिकल्चर (एमजीएनआरइजीएस), राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आरकेवीवाई) जैसी कई योजनाओं के तहत कई छोटे मध्यम आकार के तालाब बनाए गए हैं। इसलिए जलीय कृषि पर्याप्त राजस्व उत्पन्न करने के लिए इन जल निकायों का उपयोग करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की विभिन्न रिपोर्ट्स और अनुसंधान इन्हीं योजनाओं की कामयाबी को दर्शाते हैं।
भूख और गरीबी से लड़ने का मुख्य हथियार बन सकती है जलीय कृषि-
यह कल्पना की गई कि जल संसाधन और मानव संसाधन पर्याप्त रूप से मौजूद हैं। इसलिए जलीय कृषि भूख
और गरीबी से लड़ने के लिए विकास का मार्ग प्रशस्त करने का मुख्य हथियार साबित हो सकता है। विभिन्न एक्वाकल्चर तकनीकों को स्वयं सहायता समूह प्रगति और जिला मत्स्य कार्यालय के सहयोग से भाकृअनुप-(केंद्रीय मीठा जलजीवपालन अनुसंधान संस्थान), कौशल्यागंगा, भुवनेश्वर ने ट्राइबल सब प्लान परियोजना के अंतर्गत कोरापुट जिला के चयनित ब्लाॅक- कोरापुट, बोरीगुमा और कोटपाटद्ध में प्रदर्शन, प्रशिक्षण और महत्वपूर्ण आदानों की समय पर आपूर्ति के माध्यम से पेश किया। चयनित क्षेत्राें के आदिवासी परिवारों को उनके जीविकोपार्जन के विकास के लिए एक विकल्प के रूप में अपनाने के लिए एक्वाकल्चर के विभिन्न पहलुओं पर प्रशिक्षित किया गया। इस योजना के तहत लगभग 20 हेक्टर जल क्षेत्राें को कवर करने वाले 136 तालाबों को वैज्ञानिक जलीय कृषि के अंतर्गत लाया गया। जिले में कुल 240
किसान लाभान्वित हुए।
नर्सरी प्रबंधन-
कार्प के सफल प्रजनन के बाद कोरापुट में प्रफाई और अंगुलिकाओं का उत्पादन करने के लिए नर्सरी प्रबंधन का
प्रदर्शन किसानों के लिए किया गया। किसानों के लिए तालाब की तैयारी से शुरू होने वाली पूरी प्रक्रिया दर्शाई
गयी, जिसमें ब्लीचिंग पाउडर, चूना और उर्वरक का अनुप्रयोग, स्पाॅन स्टाॅकिंग, पानी और चारा प्रबंधन शामिल हैं।
ओडिशा के कोरापुट जिले के कोटपाड और बोरिगम्मा ब्लाॅक में स्पाॅन के संग्रहण के लिए 18 से अधिक
नर्सरी के तालाब तैयार किए गए।
समग्र मछली संवर्धन-
सभी ब्लाॅकों में लाभार्थियों के चयनित तालाबों में वैज्ञानिक समग्र मछली संस्कृति का प्रदर्शन किया गया। साथ ही मछली संवर्धन का लाभ समझाया गया। सभी जिलों में आईएमसी, ग्रास कार्प और माइनर कार्प फिगरिंग का
स्टाॅक किया गया। कुछ तालाबों से हार्वेस्टिंग भी की गई। इसके अलावाइनपुट वितरण के तहत कोरापुट जिले के
चयनित ब्लाॅक के आदिवासी लाभार्थियों को विभिन्न जलीय कृषि आधारित कृषि आदानों जैसे-मत्स्य आहार, कास्ट नेट, ड्रैग नेट, ब्लीचिंग पाउडर, हापास और एल्युमीनियम हांडी का वितरण किया गया।
2050 में दुनिया की आबादी 9 अरब से अधिक हो जाएगी-
विभिन्न जनरल्स और मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार वर्ष 2050 तक दुनिया की जनसंख्या 9 अरब 70 करोड़ हो जाएगी। ऐसे में इतनी बड़ी आबादी की खाद्य जरूरतों को पूरा करने के लिये खाद्य उत्पादन भी उसी रफ्तार से बढ़ाना होगा। विशेषज्ञों का मानना है कि बढ़ती जनसंख्या की खाद्य जरूरतों को पूरा करने के लिये मत्स्य खेती एक कारगर समाधान मुहैया करा सकती है। विश्व में मानव के भोजन में मछलियों की खपत इस वर्ष रिकार्ड स्तर पर पहुंच गई है। इसके मद्देनजर भारत सरकार का कृषि मंत्रालय और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद इसके प्रचार-प्रचार तथा योजनाओं के क्रिन्यावयन में लगी हुई हैं।
जनसंख्या और जलजीवपालन की अहम भूमिका है-
जनसंख्या और जलजीवपालन की महत्वपूर्ण भूमिका है। एक अनुमान के मुताबिक हमारे देश में समुद्र तटवर्ती सीमा 7500 किमी से अधिक क्षेत्र में विस्तारित है। वर्ष 2017 में किए गए एक अध्ययन के अनुसार इस सेक्टर द्वारा लगभग एक करोड़ 60 लाख रोजगार के अवसर प्रदान किए जाते हैं। इस क्षेत्र की महत्ता को देखते हुए केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय मात्स्यिकी नीति-2020 जारी की, जिसमें मछुआरों के जीवन स्तर को ऊपर उठाने, इस क्षेत्र को बढ़ावा देने, बुनियादी ढांचा विकास, आवश्यक निवेश सहित इस सेक्टर की तमाम अन्य चुनौतियों का संकल्प निहित है।
कोविड-19 का मत्स्य क्षेत्र पर प्रभाव-
सोफिया रिपोर्ट में वैसे तो जो आंकड़े दिए गए हैं, वो कोविड-19 महामारी शुरू होने से पहले के हैं, लेकिन खाद्य व कृषि संगठन इन आंकड़ों का इस्तेमाल एक ऐसे सेक्टर को समर्थन व सहायता देने के लिये कर रहा है जो कोविड-19 महामारी से सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले क्षेत्रों में शामिल है।