पटना, 06 मई (हि.स.)। अब तक कोरोना वायरस से सिर्फ संक्रमण, मौत, नुकसान, भय, दहशत की खबरें मिलती रही हैं, लेकिन कोविड-19 के संक्रमण से बचाव के लिए देशव्यापी लॉकडाउन में पर्यावरण को काफी फायदा पहुंचा है और इसका लाभ मानव सहित वन्य और जलीय जीवों को भी मिल रहा है। बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण परिषद (बीएसपीसीबी) के अध्यक्ष अशोक घोष कहते हैं कि सामंजस्य बनाकर जीना पड़ेगा, तभी पृथ्वी हमारा बोझ बर्दाश्त कर सकेगी। जनसंख्या नियंत्रित करना पड़ेगा। जीवनशैली बदलनी होगी। काम और ट्रांस्पोर्टेशन के साथ ही खाने-पीने का तरीका बदलना होगा नहीं तो पृथ्वी झटक देगी। उन्होंने कहा कि लॉकडाउन के दौरान पर्यावरण संबंधी मॉनिटरिंग लगातार की जा रही है। इन दिनों एक्यूआई (एयर क्वालिटी इंडेक्स) में जबरदस्त बदलाव आया है। यह पूरे बिहार में हाई हुआ करता है। इसका प्रमुख कारण धूलकण है, लेकिन इन दिनों का अनुभव कहता है कि फैक्ट्री, गाड़ियां सहित सभी सोर्स बंद होने के कारण प्रदूषण काफी नियंत्रित है। इससे साबित हो गया कि प्रदूषण का कारण जियोलॉजिकल नहीं है, बल्कि सिर्फ और सिर्फ मानव जनित है। व्यक्ति को अपनी जिम्मेदारी समझनी पड़ेगी नहीं तो हम अपने विनाश का कारण खुद बनेंगे।
ज्यादातर दिनों में पटना का एयर क्वालिटी इंडेक्स 40 से 50 के बीच
कोरोना संक्रमण की चेन तोड़ने के लिए पिछले 24 मार्च से जारी ल़ॉकडाउन में बहुत कुछ बदल गया है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण परिषद के वायु गुणवत्ता सूचकांक के मुताबिक बिहार के तीन प्रमुख शहर पटना, मुजफ्फरपुर और गया की हवा अब ग्रीन जोन में आ गई है। पिछले सवा महीने से ज्यादातर दिनों में सुबह में राजधानी की एयर क्वालिटी इंडेक्स 40 से 50 के बीच रह रहा है और यह आदर्श स्थिति है। इसी तरह गया और मुजफ्फरपुर में वायु प्रदूषण की स्थिति में अच्छा सुधार हुआ है। इसका पर्यावरण पर बड़ा असर पड़ना तय है। न केवल वायु प्रदूषण में कमी आएगी, बल्कि गर्मी के मौसम में तापमान भी कम होगा।
पटना का लगभग 500 हो जाता था वायु गुणवत्ता सूचकांक
बीएसपीसीबी के अध्यक्ष अशोक घोष कहते हैं, जब किसी शहर का एयर क्वालिटी इंडेक्स शून्य से 50 तक रहता है तो उसे प्रदूषण से पूरी तरह मुक्त माना जाता है। सूचकांक जितना अधिक होगा, वायु प्रदुषण उतना ही बढ़ा हुआ होता है। एक माह पहले की बात करें तो मार्च में पटना का औसत वायु गुणवत्ता सूचकांक 350 के ऊपर ही रहा करता था। इसी वर्ष जनवरी में एक्यूआई किसी-किसी दिन तो लगभग 500 हो जाया करता था। ल़ॉकडाउन से पहले पटना की हवा बहुत ही खराब की श्रेणी में हुआ करती थी। ऐसी ही स्थिति मुजफ्फरपुर और गया की भी थी, लेकिन मात्र सवा महीने में ही मानव जनित गतिविधियां न के बराबर होने से हवा की शुद्धता बढ़ गई है। लंबे अरसे बाद वायु प्रदूषण में कमी आई है।
सारे प्रदूषण मानव जनित, संयम से मिलेगी निजात
लॉकडाउन संयमित जिंदगी जीने की राह दिखा दी है। इस दौरान सभी लोग घरों में हैं। ईंट-भट्ठे सहित सभी बड़े-छोटे उद्योग बंद हैं। सड़कों से गाड़ियां और आसमान से हवाईजहाज गायब हैं। रेल की पटरियां खाली हैं। सिर्फ थोड़ी बहुत मालगाड़ियां चल रही हैं। नदियों में गंदगी नहीं गिर रही। नाव और पानी जहाज भी नहीं चल रहे। मछुआरों के जाल नहीं लग रहे। वनों से लकड़ियां कटनी भी बंद हैं। नतीजा हुआ कि इसका सकारात्मक और सुखद असर पर्यावरण पर पड़ा। हवा साफ हो गई। पानी स्वच्छ हो गये। जलस्तर बढ़ गये। गंगा में डॉल्फिन की अटखेलियों दिखने लगी। और तो और वन्य जीव भी निडर होकर कभी-कभी सड़कों पर निकल जा रहे हैं। यानी गंदगी के लॉक होते ही प्रदूषण डाउन और इस पर भारतीय एजेंसियों सहित नासा ने भी मुहर लगाई है। इससे प्रमाणित हो गया कि ये सारे प्रदूषण मानव जनित हैं। अगर हम सजग हो जायें तो थोड़े संयम से इससे निजात आसानी से मिल सकता है।