चीन सीमा पर तैनात भारतीय सैनिकों को मिलेंगे गैर पारंपरिक हथियार

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नई दिल्ली, 19 अक्टूबर (हि.स.)। चीन से मुकाबला करने को अब भारतीय सेना के जवानों को भी उसी तरह के गैर पारंपरिक हथियार दिए जाएंगे, जिस तरह चीनियों ने पिछले साल गलवान घाटी के खूनी संघर्ष में और 29/30 अगस्त की रात को कैलाश रेंज में घुसपैठ की कोशिश के दौरान इस्तेमाल किया था। इन हथियारों की आपूर्ति के लिए सेना ने नोएडा की एक कंपनी से अनुबंध किया है। इसके अलावा सेना ने अरुणाचल प्रदेश सेक्टर में भी दिन-रात की निगरानी को और तेज करने के लिए इजराइल निर्मित हेरॉन आर्म्ड ड्रोन तैनात किये हैं।

पिछले साल 29/30 अगस्त की रात को जब भारतीय सेना ने पैन्गोंग झील के दक्षिणी किनारे पर कैलाश पर्वत श्रृंखला को अपने कब्जे में लिया था तो इसी के बाद चीनी सेना बौखला गई थी। पिछले साल मई से दोनों देशों के बीच सैन्य कमांडर स्तर पर 13 दौर की बातचीत हो चुकी है। इसके बावजूद एलएसी के तीन अन्य विवादित क्षेत्रों- गोगरा पोस्ट, हॉट स्प्रिंग्स और डेप्सांग मैदानों से चीन के सैनिकों को वापस लेने से इनकार करने के बाद विस्थापन की प्रक्रिया रुकी पड़ी है। हालांकि लद्दाख सेक्टर में सर्विलांस के लिए तीनों सेनाएं पहले से ही हेरॉन अनमैन्ड एरियल व्हीकल (यूएवी) का इस्तेमाल कर रही हैं जो एक बार में दो दिन तक उड़ सकता है। अब भारतीय सेना ने हेरॉन ड्रोन के आर्म्ड वर्जन को भी अपने बेड़े में शामिल किया है।

इजराइल निर्मित हेरॉन ड्रोन 10 किमी. की ऊंचाई से दुश्मन की हरकत पर नजर रख सकता है। इन्हें इजराइल एयरोस्पेस इंडस्ट्रीज (आईएआई) ने सभी मौसमों के रणनीतिक मिशनों के लिए विकसित किया है। यह इजरायली ड्रोन पिछले संस्करणों की तुलना में अधिक उन्नत और काफी बेहतर एंटी-जैमिंग क्षमता वाले हैं। लंबी दूरी के रडार और सेंसर, एंटी-जैमिंग क्षमता और 35 हजार फीट की ऊंचाई तक पहुंचने की क्षमता के साथ रिमोट ऑपरेटेड हेरॉन ड्रोन एलएसी के पास सभी प्रकार की खुफिया जानकारी इकट्ठा करने में सक्षम होंगे। इसके अलावा आर्मी एविएशन ने भारत के सामरिक मिशनों को और अधिक मजबूती देने के लिए क्षेत्र में एडवांस्ड लाइट हेलीकॉप्टर (एएलएच) रुद्र के वीपन सिस्टम इंटीग्रेटेड वेरिएंट को भी तैनात किया है।

चीनी सेना के जवान गैर पारंपरिक हथियार लाठी-भाले, डंडा और रॉड के जरिए युद्ध करने में माहिर होते हैं। गलवान घाटी के खूनी संघर्ष और 29/30 अगस्त की रात को कैलाश रेंज में घुसपैठ के दौरान चीनी सैनिक इसका इस्तेमाल कर चुके हैं। अभी भी तिब्बत के पठार इलाके में चीनी सैनिकों को नुकीली चीज या लाठी, डंडों से लड़ने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। ऐसे भारतीय सेना भी अपने सैनिकों को इसी तरह के गैर पारंपरिक हथियारों से लैस करने की तैयारी कर रही है। इन हथियारों की आपूर्ति के लिए सेना ने नोएडा की कंपनी अपस्टेरॉन प्राइवेट लिमिटेड से अनुबंध किया है। यह कंपनी सेना को इलेक्ट्रानिक ढाल (भद्र), इलेक्ट्रानिक डंडा, बिजली वाला ग्लव्स (सैपर पंच), त्रिशूल, मेटल की लाठी (वज्र) जैसे गैर पारंपरिक हथियार मुहैया कराएगी।

कंपनी के मुताबिक भद्र एक ख़ास तरह की ढाल है, जो जवान को पत्थर के हमले से बचाती है। इसमें बहने वाला करंट दुश्मन को जोर का झटका भी देता है। इसी तरह इलेक्ट्रानिक डंडा 8 घंटे तक बिजली से चार्ज रह सकता है। बिजली वाले इस वाटरप्रूफ डंडे की मार के आगे हर तरह का दुश्मन भागता नजर आएगा। इसी तरह बिजली वाला ग्लव्स यानी सैपर पंच से दुश्मन पर वार किया जाता है जो क़रीब 8 घंटे तक बिजली से चार्ज रह सकता है। यह वाटरप्रूफ़ ग्लव्स शून्य से 30 के तापमान में काम कर सकता है। भगवान शिव के हथियार त्रिशूल को वैसे ही बेहद खतरनाक हथियार माना जाता है लेकिन अगर इसमें करंट बहने लगे तो ये और भी घातक हो जाता है। मेटल की लाठी यानी वज्र भी भारतीय सेना को मिलेगी।


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