देहरादून, 29 दिसम्बर (हि.स.)। वर्ष 2019 उत्तराखंड में भाजपा के क्षत्रपों को और मजबूती दे गया। भाजपा हाईकमान के सामने इन क्षत्रपों का कद बढ़ा और पार्टी के भीतर उनके विरोधियों को मायूस होना पड़ा। लोकसभा का चुनाव पार्टी के क्षत्रपों की मजबूती का आधार बना। उत्तराखंड की पांचों लोकसभा सीटें भाजपा की झोली में आईं, तो जीत का सेहरा सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत के माथे पर सज गया। पूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक को प्रधानमंत्री मोदी के दूसरे कार्यकाल में इतना बड़ा तोहफा मिल गया, जिसकी कल्पना शायद ही किसी ने की थी। मोदी सरकार का हिस्सा बनते हुए मानव संसाधन विकास मंत्रालय की जिम्मेदारी निशंक के राजनीतिक जीवन की स्वर्णिम उपलब्धि बन गई। वहीं, पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी उत्तराखंड से सीधे महाराष्ट्र राजभवन की शान बन गए।
साल 2019 भाजपा के क्षत्रपों के लिए बड़े फलक पर और बेबाकी से काम करने के अवसर वाला साल माना जा सकता है। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को लोकसभा चुनाव में उस तरह की स्थिति का सामना नहीं करना पड़ा, जैसा साल 2009 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के तत्कालीन मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूडी को पेश आई थी। तब भाजपा पांचों सीटों पर चुनाव हार गई थी और पार्टी के खराब प्रदर्शन को खंडूडी सरकार के कामकाज से जोड़कर देखा गया था। इससे उलट पांचों सीटों पर इस बार मिली जीत से त्रिवेंद्र विरोधियों के मुंह पर चपत लगी और त्रिवेंद्र कहीं ज्यादा बढ़े आत्मविश्वास से सरकार चलाते नजर आए।
पूर्व सीएम रमेश पोखरियाल को मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के दौरान कैबिनेट में जगह नहीं मिल पाई थी तब भी वह हरिद्वार लोकसभा सीट से जीतकर दिल्ली पहुंचे थे। कहा गया कि मोदी-शाह की जोड़ी निशंक को पसंद नहीं करती लेकिन मानव संसाधन जैसे बेहद अहम मंत्रालय के लिए जब निशंक का नाम सामने आया, तो सारी बातें गलत साबित हुई। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री और विभिन्न मंत्रालयों के मंत्री बतौर काम करते हुए निशंक ने जो अनुभव बटोरा था, वह अब केंद्रीय फलक पर कसौटी पर है। इस बीच निशंक के बढ़े कद को इस गुजरते साल में उत्तराखंड समेत पूरे देश ने महसूस किया।
संघ की पृष्ठभूमि वाले पूर्व सीएम भगत सिंह कोश्यारी ने इस बार लोकसभा चुनाव नहीं लड़ा। उनकी जगह पार्टी ने प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट को नैनीताल सीट से टिकट दिया। उस वक्त माना गया कि भगतदा का सियासी सफर अब ढलान की तरफ अग्रसर है लेकिन उन्हें हाईकमान ने उस महाराष्ट्र राज्य का गवर्नर बना दिया, जो वाणिज्यिक गतिविधियों के कारण अहम राज्यों में शुमार है। विधानसभा चुनाव के बाद चली सियासी पैंतरेबाजी में भगतदा सुर्खियों में रहे। इस तरह की चर्चाओं की खबरें भी उड़ी थी कि महाराष्ट्र के मामले को ढंग से नहीं संभाल पाने के कारण भगदा की वहां से विदाई हो सकती है लेकिन अनुभवी कोश्यारी पर विश्वास बरकरार रहा और वह वहां पर सफलतापूर्वक कार्य कर रहे हैं।