लखनऊ, 28 अगस्त (हि.स.)। बहुजन समाज पार्टी(बसपा) प्रमुख मायावती दलित वर्ग की राजनीति तो करती हैं लेकिन किसी दलित को आज तक ऊपर उठाने में सहयोग नहीं किया। यही नहीं किसी दलित के राजनीति में आने से पहले ही मायावती को अपना वर्चस्व खोने का डर सताने लगता है। यही कारण है कि भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर आजाद का हर समय विरोध किया। जब सोनभद्र में दलितों की हत्या हुई और प्रियंका वहां पहुंची तो उनके खिलाफ बयान दिया। अब नया पीड़ा कांग्रेस द्वारा जारी मेनफेस्टो ने मायावती को पीड़ा दे दिया है।
उन्होंने शुक्रवार को किसी दलित को ही अपना उत्तराधिकारी बनाने की घोषणा तो कर दीं, लेकिन किसी दलित को अपनी पार्टी में भी सेकेंड मैन के तौर पर आगे नहीं बढ़ाया। अब मायावती द्वारा दलित वर्ग के उत्तराधिकारी की घोषणा उनकी सोशल इंजीनियरिंग पर भी धक्का पहुंचा सकता है। 17 वर्ष पहले ब्राह्मणों दलितों के गठजोड़ का नारा देकर पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने वाली मायावती को इस वर्ष फिर ब्राह्मणों की याद आयी है लेकिन दलित वर्ग के उत्तराधिकारी बनाने की घोषणा ब्राह्मणों को नाराज भी कर सकता है।
इस संबंध में दलित विचारक प्रोफेसर बद्री नारायण का कहना है कि यदि दलित वर्ग की राजनीति करनी है तो यह घोषणा तो उनको विश्वास में लाने के लिए करना ही था। कोई भी नेता दूसरे किसी अपने वर्ग के लोगों को आगे इस कारण नहीं बढ़ाना चाहता कि उसे उससे आगे निकल जाने का डर रहता है। वहीं राजनीतिक विश्लेषक राजीव रंजन का कहना है कि राजनीतिक जमीन खो चुकी मायावती को इस बार कई तरह का डर सता रहा है। ब्राह्मण वर्ग उनके साथ आएगा या नहीं यह तो बाद की बात है। पिछली बार भी दलित वर्ग का एक बड़ा हिस्सा कट गया था और इस बार भी उसके कटने के ही आसार हैं। मायावती को यही डर सता रहा है। इस कारण उन्होंने इस तरह की घोषणा की है।
यह मायावती का अहम कहें या डर लेकिन वे अपनी पार्टी में भी किसी को आगे बढ़ते देखती हैं तो उसे सीधे बाहर का रास्ता ही दिखा देती है। जबसे उन्होंने सत्ता का स्वाद चखा, उसके बाद लोगों के दुख-दर्द में सहभागी होना बंद कर दिया। वे सत्ता से बाहर होते ही सिर्फ भीतर रहकर ही बयान देती रहती हैं। बसपा कभी बड़ा आंदोलन भी नहीं करती। इसका कारण दलित चिंतक राम मनोहर का कहना है कि दलित वर्ग सड़क पर उतरकर लाठी खाने का आदी कभी का नहीं रहा। इस कारण यदि किसी आंदोलन में लाठी चार्ज हो गया तो दलित वर्ग बिछड़ जाने का डर बना रहता है। इसी कारण सोची-समझी राजनीति के कारण मायावती कभी आंदोलन नहीं करती हैं।