झांसी : सड़कों पर दर-दर की ठोंकरें खाने को मजबूर हैं मजदूर

0

झांसी, 28 अप्रैल (हि.स.)। मजदूरों की कई गाड़ियां प्रतिदिन मध्यप्रदेश का शिवपुरी जिला पार करके यूपी के झांसी बॉर्डर पर पहुंच रही हैं। मजदूर भूसे की तरह भरे हुए हैं। इनकी पीड़ा की भी थाह नहीं। यह हर हाल में अपने घर पहुंचना चाहते हैं। इनको पता नहीं था कि इनको झांसी में 14 दिन के लिए एकांत में कर दिया जाएगा। किसी को ललितपुर के रास्ते निकलना है तो कोई कानपुर के रास्ते उप्र के विभिन्न जनपदों में जाना चाहता है।

पिछले कुछ दिनों से मजदूर सड़कों पर दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर हैं। जबकि शासन की मंशा सभी को अपने गांवों तक सुरक्षित पहुंचाने की है। आखिरकार इसे शासन व प्रशासन चूक कहा जाए या फिर मजदूरों की अनदेखी। हालांकि इस मामले में प्रशासन भी अपने आपको नियमों से बंधा हुआ बता रहा है।

पूरे देश में विश्वव्यापी कोरोना वाॅयरस का संकट मंडरा रहा है। इस खतरे से निपटने के लिए भारत ने जिस तरह से कदम उठाए हैं उनकी पूरे विश्व में प्रशंसा हो रही है। प्रदेश के मुख्यमंत्री द्वारा भी जिस तरह से लाॅकडाउन के दौरान अन्य प्रान्तों में फंसे प्रदेश के छात्रों व अन्य लोगों को निकालने की मुहिम छेड़ी गई है। उसकी सराहना चहुंओर हो रही है।

आलम यह है कि मुख्यमंत्री योगी के इस कार्य को अन्य प्रदेश माॅडल की तरह उपयोग में लाते हुए अपने प्रांतों के लोगों को वापस बुलाने के प्रयास करने में जुटे हुए हैं। ऐसे में उप्र-मप्र के बाॅर्डर पर सैकड़ों मजदूर पिछले दो दिनों से हाईवे जाम करते हुए अपने गांव पहुंचने की मांग पर अड़े हैं। झांसी प्रशासन उनकी परेशानियों को देखते हुए उन्हें वाहनों में भरकर उनका नाम पता नोट करते हुए उन्हें क्वारेंटाइन करने का प्रबंध कर रहा है। बाबजूद इसके इस कार्य में पूरी तरह से सफलता अभी तक नहीं मिल पा रही है।

मजदूरों की भी मजबूरी

मजदूरों का कहना है कि वे जिस राज्य में मजदूरी कर रहे थे वहां पर एक माह तक बैठकर खाने के बाद उनकी मजबूरी हो गई थी कि अब वे अपने घर जाएं। वहीं उनके परिवार भी रोजगार न होने के चलते भुखमरी के कगार पर आ गए थे। और यही वह वजह थी कि उन्हें वहां से पैदल ही सही निकलने के अलावा कोई दूसरा रास्ता ही नहीं था। हालांकि इसमें उन्होंने देश के लाॅकडाउन को ताक पर रखने का भी काम किया है।

राज्य भी निभा सके अपनी जिम्मेदारियां

उप्र की सीमा पर एकत्र होने वाली मजदूरों की इस भीड़ की जिम्मेदार राज्य सरकारें भी हैं। यहां आने वाले अधिकांश मजदूर कोटा या महाराष्ट्र से हैं। जो यह दर्शाते हैं कि वहां के शासन और प्रशासन ने उन्हें लाॅकडाउन तोड़ने में भी एक तरह से सहयोग ही किया है। ऐसे में राज्य सरकारें अपने दायित्वों को निभाने में असफल नजर आई हैं। जो उन मजदूरों को अपने राज्य में भोजन भी उपलब्ध नहीं करा सकी। इसमें राजस्थान,महाराष्ट्र जैसे तमाम राज्य हैं।

क्या यही थी महाराष्ट्र सरकार द्वारा मजदूरों को भेजने की पहल

महाराष्ट्र की उद्धव सरकार ने यूपी के मजदूरों को भेजने के लिए ऐसे कदम उठाए हंै। यहां ट्रकों में भूसे की तरह भरकर मजदूर पहुंच गए हैं। अब यह वहां से भेजे गए हैं या यह खुद चलकर आए यह तो जांच का विषय है। लेकिन उद्धव ठाकरे बसों की व्यवस्था कब करेंगे यह समझ से परे है।

मंगलवार को फिर पहुंचे दर्जनों ट्रक

थाना रकसा के पास यूपी, एमपी बॉर्डर है। दोनों जिलों की पुलिस मजदूरों को नियमों का पाठ पढ़ा रही है। मंगलवार को मजदूरों को एक बार फिर से दर्जनों ट्रक भरकर यहां पर पहुंच गए। ज्यादातर महाराष्ट्र से आए थे। जिला झांसी के पास बॉर्डर पर यूपी के झांसी पुलिस ने रोक दिया। अब इन्हें झांसी में ही 14 दिन के लिए एकांत में रखने की तैयारी हो रही है। हालांकि बीते रोज भी भारी संख्या में ट्रकों द्वारा मजदूरों को लाया गया था। इनमें किसी के भी पास कोई अनुमति नहीं थी।

भारत के स्वतंत्र नागरिकों की तरह हो व्यवहार

इस मामले में समाजसेवी और वल्र्ड वाॅटर कांउंसिल के मेम्बर संजय सिंह ने कहा कि बाॅर्डर पर जो मजदूर एकत्र हो रहे हैं। वह भारत के ही नागरिक हैं। उनके साथ मानवीय संवेदनाओं को ध्यान में रखते हुए व्यवहार किया जाना चाहिए। क्या उनकी यही गलती है कि वे मजदूर हैं?

बोले मंडलायुक्त,सबके लिए नियम बराबर

इस संबंध में जब मंडलायुक्त सुभाष चन्द्र शर्मा से पूछा गया तो उन्होंने नपे तुले शब्दों में जबाब दिया। उन्होंने कहा कि पूरे देश में लाॅकडाउन के नियम समान हैं। सभी राज्यों की सीमाएं सील हैं। किसी को भी निकलने की अनुमति नहीं है। इसके बाबजूद भी मजदूर बिना किसी अनुमति के मंडल के बाॅर्डर पर एकत्र हो रहे हैं। उनको सूचीबद्ध करते हुए सभी का परीक्षण कराकर उन्हें क्वारेंटाइन किए जाने की व्यवस्था की जा रही है।

उन्होंने यह भी बताया कि यूपी मप्र से चारों ओर से घिरा हुआ है। बाॅर्डर 200 किमी के क्षेत्र में फैला हुआ है। भौगोलिक स्थिति भी ऐसी नहीं है कि सभी पर नजर रखी जा सके। यह भी मजदूरों की एकत्रीकरण का एक कारण है। हालांकि यथासंभव प्रशासन पूरी तरह से सजग है। और अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर रहा है।

 


प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *