अफगानिस्तान के खजाने से कोसों दूर तालिबान, नकदी संकट में फंसा मुल्क
नई दिल्ली, 21 अगस्त (हि.स.)। अफगानिस्तान पर तालिबान ने कब्जा कर लिया है। मुल्क में नई सरकार चलाने के लिए तालिबानी नेता विचार विमर्श में लगे हुए हैं, लेकिन सत्ता परिवर्तन के साथ ही देश के सामने नकदी का संकट खड़ा हो गया है। तालिबान ने मुल्क पर कब्जा तो कर लिया, लेकिन अफगानिस्तान का खजाना तालिबान के कब्जे से काफी दूर अमेरिकी फेडरल रिजर्व में सुरक्षित पड़ा हुआ है। ये खजाना अफगानिस्तान को तभी मिल सकेगा, जब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तालिबान की अगुवाई में गठित होने वाली नई सरकार को मान्यता मिल जाएगी। और तो और सत्ता पर तालिबान पर के कब्जे के बाद अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने अफगानिस्तान को हस्तांतरित किये जाने वाले फंड पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी है।
अमेरिकी सेना की वापसी शुरू होने के बाद जब तालिबान ने अफगानिस्तान के अलग-अलग प्रांतों पर कब्जा करना शुरू किया, तभी से अमेरिका समेत तमाम देशों ने अफगानिस्तान को दी जाने वाली आर्थिक मदद पर अघोषित तौर पर रोक लगा दी थी। इसकी वजह से अफगानिस्तान का खजाना फिलहाल पूरी तरह से खाली हो चुका है। अफगानिस्तान के विदेशी मुद्रा भंडार में कहने के लिए तो अरबों डॉलर पड़े हैं, लेकिन ये पूरी राशि अंतरराष्ट्रीय मानकों और परंपराओं के तहत फेडरल रिजर्व बैंक ऑफ न्यूयॉर्क में कैश बॉन्ड या सोने के रूप में सुरक्षित रखी हुई है।
अफगानिस्तान के केंद्रीय बैंक द अफगानिस्तान बैंक (डीएबी) के कार्यवाहक गवर्नर अजमल अहमदी ने 18 अगस्त को सिलसिलेवार तरीके से कई ट्वीट करके अफगानिस्तान के मौद्रिक भंडार की पूरी जानकारी दी थी। अहमदी ने अपने ट्वीट में बताया था कि अफगानिस्तान के केंद्रीय बैंक में पिछले सप्ताह तक (14 अगस्त तक) कुल 9 अरब डॉलर की मुद्रा पड़ी हुई थी। लेकिन ये मुद्रा बैंक के वाल्ट में नहीं थी, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मानकों के मुताबिक सुरक्षित कोषागार और सोने के तौर पर रखी गई थी। सुरक्षित कोषागार का मतलब फेडरल रिजर्व बैंक ऑफ न्यूयॉर्क से है।
इसके अलावा अहमदी ने अपने ट्वीट में ये भी बताया था कि द अफगानिस्तान बैंक ने फेडरल रिजर्व की होल्डिंग्स में 7 अरब डॉलर, अमेरिकी बांड और बिल में 3.1 अरब डॉलर, डब्ल्यूबी रैंप एसेट्स में 2.4 अरब डॉलर, स्वर्ण भंडार के रूप में 1.2 अरब डॉलर, अंतरराष्ट्रीय खातों में 1.3 अरब डॉलर तथा बैंक फॉर इंटरनेशनल सेटेलमेंट्स में 0.7 अरब डॉलर का निवेश किया है। इसके अतिरिक्त कैश अकाउंट में 0.3 अरब डॉलर पड़े हैं, लेकिन द अफगानिस्तान बैंक की ये सारी राशि अफगानिस्तान से बाहर हैं। इस वजह से मुल्क के नए शासक तालिबान के लिए इस खजाने पर कब्जा कर पाना संभव नहीं है।
कंगाली की हालत में पहुंच गए इस मुल्क के नए शासक तालिबान की परेशानी सिर्फ इतनी ही नहीं है। एक बड़ी परेशानी अफगानिस्तान को अमेरिका समेत अन्य देशों से मिलने वाली आर्थिक सहायता पर मौजूदा घटनाक्रम में लगाई गई रोक भी है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने भी अफगानिस्तान की मौजूदा स्थिति को देखते हुए 4,400 लाख डॉलर के फंड ट्रांसफर पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दिया है। दावा किया जा रहा है कि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने ये कदम अमेरिका की दबाव में आकर उठाया है।
अजमल अहमदी ने अपने ट्वीट के जरिए ये भी बताया था कि आईएमएफ ने हाल में ही अफगानिस्तान को 650 मिलियन डॉलर के विशेष आहरण अधिकार (एसडीआर) को मंजूरी दी थी, जिसमें से 23 अगस्त को ही 340 मिलियन डॉलर की राशि अफगानिस्तान को मिलने वाली थी, लेकिन मौजूदा परिस्थितियों में इस राशि को लेकर भी अनिश्चितता की स्थिति बन गई है, क्योंकि आईएमएफ पहले ही 440 मिलियन डॉलर के फंड ट्रांसफर पर रोक लगा चुका है।
जानकारों का कहना है कि अफगानिस्तान की सत्ता पर भले ही तालिबान ने कब्जा कर लिया है, लेकिन तालिबान का नाम अभी भी यूनाइटेड नेशन के अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध सूची में शामिल है। जब तक इस सूची में तालिबान का नाम शामिल रहेगा, तब तक उसे विश्व बैंक या अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से कोई भी आर्थिक सहायता नहीं मिल पाएगी। इसीलिए तमाम जानकार इस बात की आशंका जता रहे हैं आने वाले दिनों में अफगानिस्तान को घनघोर आर्थिक संकट का सामना करना पड़ सकता है।
अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार डॉ. विनीत चंद्रहास का कहना है कि अफगानिस्तान के केंद्रीय बैंक का लगभग पूरा पैसा फेडरल रिजर्व बैंक ऑफ न्यूयॉर्क और अन्य अंतरराष्ट्रीय बैंकों में होने की वजह से तालिबान की अगुवाई वाली सरकार के लिए इस पैसे का इस्तेमाल कर पाना संभव नहीं हो पाएगा। उनके मुताबिक तालिबान ने बंदूक की नोक पर अफगानिस्तान की सत्ता तो हासिल कर ली है, लेकिन उसके सामने सबसे बड़ी चुनौती अफगानिस्तान पर व्यवस्थित तरीके से शासन करने की है। और ऐसा कभी हो सकता है जबकि उसके पास खर्च चलाने लायक पैसा हो।
द अफगानिस्तान बैंक के कार्यवाहक गवर्नर अजमल अहमदी अपने ट्वीट में यह भी स्पष्ट कर चुके हैं कि अफगानिस्तान के सेंट्रल बैंक और स्थानीय बैंकों के पास अफगानिस्तान के कुल खजाना का 2 फीसदी हिस्सा ही पड़ा है, जबकि शेष करीब 98 फीसदी हिस्सा विदेशी बैंकों में होने की वजह से फ्रीज किया जा चुका है। ऐसे में जब तक तालिबान की सरकार को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता नहीं मिलती, तब तक ये राशि फ्रीज ही पड़ी रहेगी। अमेरिका के जो बाइडेन प्रशासन ने भी साफ कर दिया है कि तालिबान की अगुवाई वाली सरकार के लिए फेडरल रिजर्व में सुरक्षित पैसे को रिलीज नहीं किया जाएगा।
जानकारों का कहना है कि ये स्थिति अगर कुछ और समय तक जारी रही तो अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था को गंभीर नुकसान पहुंच सकता है। इसकी वजह से अफगानिस्तान की मुद्रा अफगानी का तेजी से अवमूल्यन होगा और मुल्क में महंगाई सर्वोच्च स्तर पर पहुंच जाएगी, जिसका खामियाजा देश की 90 फीसदी गरीब आबादी को भुगतना पड़ेगा।