अफगानिस्तान में अमेरिकी सैनिकों के दो दशक
नई दिल्ली, 31 अगस्त (हि.स.)। अफगानिस्तान में करीब 20 साल की जंग के बाद निर्धारित समयसीमा 31 अगस्त से एकदिन पहले ही अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी हो गयी। इसके साथ ही अफगानिस्तान में एक अध्याय का अंत हुआ है। इसपर अलग-अलग राय हो सकती है कि अमेरिका ने अफगानिस्तान में इन दो दशकों में क्या खोया और क्या हासिल किया लेकिन पूरी तरह तालिबान राज में अफगानिस्तान की चुनौतियों का नया सिलसिला शुरू होने पर किसी को संदेह नहीं है। आइए जानते हैं 20 वर्षों में अफगानिस्तान में अमेरिकी सैनिकों का सफर।
9/11 का जख्म:
11 सितंबर 2001 में आतंकी संगठन अलकायदा ने अमेरिका पर सबसे बड़े हमले को अंजाम दिया। अमेरिका सहित पूरी दुनिया इस हमले से सन्न रह गयी। उस समय अमेरिका के राष्ट्रपति थे जॉर्ज डब्लू बुश थे। अलकायदा के 19 आतंकियों ने चार विमानों को अगवा कर दो विमानों को वर्ल्ड ट्रेड सेंटर की इमारत से टकरा दिया। तीसरे विमान से पेंéगन पर हमला किया गया। इस हमले में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पूरी तरह तबाह हो गया और तीन हजार लोगों की मौत हो गयी।हमले में छह हजार लोग घायल भी हुए।
बदले का अभियान: 07 अक्टूबर 2001 को अमेरिकी राष्ट्रपति बुश ने आतंकवाद के खिलाफ युद्ध का नाम देते हुए अफगानिस्तान में हवाई हमले किये जिसमें तीन हजार लोगों की मौत हो गयी। अमेरिका ने ऐसा इसलिए किया क्योंकि अमेरिका पर हमले के मास्टर माइंड ओसामा बिन लादेन को अफगानिस्तान की तालिबान सरकार ने पनाह दे रखी थी।
तालिबान की हार: 1996 से अफगानिस्तान की सत्ता पर काबिज होकर जुल्मों की नयी दास्तां लिखने वाली तालिबान सरकार अमेरिकी हमलों के सामने ज्यादा दिनों तक टिक न सकी। 6 दिसंबर 2001 में तालिबान राजधानी काबुल छोड़कर भाग गए।
नई सरकार का गठन:
तालिबान के काबुल से भागने के बाद अमेरिका ने हामिद करजई को अंतरिम सरकार का नेतृत्वकर्ता नियुक्त किया और नाटो की तरफ से अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा बलों की तैनाती की गयी। 9 अक्टूबर 2004 को अफगानिस्तान में पहला चुनाव हुआ और करजई को 55 फीसदी वोट मिले।
संगठित होते विद्रोही गुट:
करजई के शासन के साथ ही तालिबान देश के दक्षिण और पूर्वी हिस्सों में एकजुट होकर विद्रोह शुरू कर दिया। यह चुनौती जैसे-जैसे बढ़ी 2009 आते-आते अफगानिस्तान में अमेरिकी सैनिकों की संख्या एक लाख तक पहुंच गयी।उस समय अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा थे।
ओसामा का अंत:
02 मई 2011 को ओसामा बिन लादेन को अमेरिकी विशेष बलों ने खास ऑपरेशन में पाकिस्तान के एबटाबाद में मार गिराया।इसके साथ ही अमेरिका ने सेना की वापसी का कवायद शुरू की।
तालिबान के साथ अमेरिकी समझौता:
29 अफरवरी 2020 को अमेरिका और तालिबान के बीच दोहा में ऐतिहासिक समझौता हुआ जिसके तहत विदेशी सेना के मई 2021 तक अफगानिस्तान छोड़ देने की बात कही गयी।
विदेशी सैनिकों की वापसी:
01 मई 2021 को अमेरिका और नाटो ने अपने सैनिकों को वापस बुलाने का सिलसिला शुरू किया। कंधार एयरबेस से अमेरिकी सैनिक हट गए।
02 जुलाई 2021 अफगानिस्तान का सबसे अहम केंद्र बगराम एयरबेस से अमेरिकी सैनिक गुपचुप तरीके से निकल गए।
तालिबान के बुलंद होते हौसले:
अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी जिस रफ्तार से जोर पकड़ रही थी, उससे कहीं तेजी से देश के विभिन्न हिस्सों पर तालिबान का कब्जा होता जा रहा था। अफगान फौज कहीं भी तालिबान के सामने प्रतिरोध की स्थिति में नहीं दिखी। तालिबान ने 6 अगस्त को प्रांतीय राजधानी जरांज पर कब्जा किया। उसके बाद कंधार और हेरात जैसे प्रमुख शहरों पर तालिबान का कब्जा हुआ। 13 अगस्त तक उत्तर, पश्चिम और दक्षिण में तालिबान का कब्जा हो गया।
काबुल का समर्पण:
15 अगस्त को विद्रोहियों ने पहले राजधानी काबुल को चारों तरफ से घेर लिया। राष्ट्रपति अशरफ गनी देश छोड़कर भाग गए। इस खबर के साथ ही तालिबान ने बिना किसी विरोध के काबुल पर कब्जा कर लिया। राष्ट्रपति महल के भीतर तालिबानियों की मौजूदगी की तस्वीरें दुनिया भर को हैरान करने वाली थीं।
अफरातफरी:
इस अप्रत्याशित घटनाक्रम के बाद विभिन्न देशों के बीच अपने नागरिकों और अमेरिका को अपने सैनिकों की वापसी को लेकर चिंताएं शुरू हो गयीं।अफगानिस्तान में विभिन्न देशों के दूतावासों को बंद किये जाने और वहां से अपने कर्मचारियों की सुरक्षित वापसी का सिलसिला शुरू हो गया। इस दौरान लोगों ने देखा कि तालिबानी राज के भय से किस तरह अपना देश छोड़कर भाग रहे लोग विमान के पंखों और पहियों के पास बैठकर निकलने की कोशिशों में जान गंवाते रहे।
वापसी की तयसीमा:
अमेरिका ने समझौते के मुताबिक 31 अगस्त तक अपने सभी सैनिकों की वापसी की बात कही थी लेकिन वहां मची अफरातफरी के बीच अमेरिका ने यह समयसीमा बढ़ाने की बात की। जिसके बाद तालिबान ने चेतावनी देते हुए कहा था कि अमेरिका को तय सीमा 31 अगस्त तक अपने सैनिकों की वापसी करनी होगी।
काबुल एयरपोर्ट पर धमाकाः
26 अगस्त को काबुल एयरपोर्ट पर एक के बाद एक कई जबर्दस्त धमाके। इन धमाकों में 170 लोगों की मौत जिनमें 13 अमेरिकी सैनिक भी शामिल थे। हमले की जिम्मेदारी इस्लामिक स्टेट खोरासन ने ली। जिसके जवाब में अमेरिका ने भी एयरस्ट्राइक की। इसबीच 30 अगस्त को दोपहर बाद अमेरिकी सैनिकों का आखिरी जत्था अफगानिस्तान छोड़कर अपने देश को रवाना हुआ।