एरीज के वैज्ञानिकों ने खोजा सूर्य से साढ़े तीन से सात गुना बड़ा दुर्लभ सुपरनोवा

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नैनीताल, 10 जुलाई (हि.स.)। एरीज नैनीताल के भारतीय शोधकर्ताओं ने सूर्य के मुकाबले साढ़े तीन से सात गुना अधिक द्रव्यमान वाले एक अत्यंत विशाल, उज्ज्वल और हाइड्रोजन की कमी के साथ तेजी से उभरने वाले सुपरनोवा का पता लगाया है। यह सुपरनोवा अति शक्तिशाली चुंबकीय क्षेत्र के साथ एक अनोखे न्यूट्रॉन तारे से ऊर्जा लेकर चमकता है। इसका पता लगने से आकाशीय पिंडों के गहन अध्ययन से प्रारंभिक ब्रह्मांड के रहस्यों की जांच करने में मदद मिल सकती है।

बताया गया है कि इस प्रकार के सुपरनोवा को सुपरल्यूमिनस सुपरनोवा (एसएलएसएनई) कहा जाता है। यह काफी दुर्लभ होते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि वे आमतौर पर बहुत बड़े तारों (न्यूनतम सूर्य के 25 गुना से अधिक द्रव्यमान वाले) तारों से उत्पन्न होते हैं और हमारी आकाशगंगा अथवा आसपास की आकाशगंगाओं में ऐसे विशाल तारों का वितरण काफी कम है। एसएलएसएनई-1 स्पेक्ट्रोस्कोपिक तौर पर अब तक पहचाने गए अपनी तरह के लगभग 150 आकाशीय पिंडों में शामिल है। ये प्राचीन पिंड सबसे कम समझे जाने वाले सुपरनोवा में शामिल हैं क्योंकि उनके अंतर्निहित स्रोतों के बारे में कोई स्पष्ट जानकारी नहीं है और उनकी अत्यधिक चमक को पारंपरिक एसएन पावर सोर्स मॉडल का उपयोग करके भी स्पष्ट नहीं किया जा सका है।

बताया गया है कि इस श्रेणी के एसएन 2020 एएनके नाम के सुपरनोवा की खोज सबसे पहले 19 जनवरी 2020 को ज्विकी ट्रांजिएंट फैसिलिटी ने की थी। फरवरी 2020 से और उसके बाद मार्च एवं अप्रैल में लॉकडाउन अवधि में इसका अध्ययन भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के अंतर्गत एरीज नैनीताल के वैज्ञानिकों द्वारा किया गया। यह सुपरनोवा उस क्षेत्र में मौजूद अन्य पिंडों के समान नीली वस्तु के रूप में स्पष्ट तौर पर दिख रहा था, जो उसकी अत्यंत चमक वाली प्रकृति को दर्शाता है।

उसका अध्ययन करने वाली टीम ने एरीज स्थित संपूर्णानंद टेलीस्कोप-1.04 मीटर और हिमालयन चंद्र टेलीस्कोप- 2.0 मीटर के साथ हाल ही में चालू किए गए भारत के देवस्थल में स्थापित की गई एशिया की दूसरी सबसे बड़ी 3.6 मीटर व्यास की ऑप्टिकल टेलीस्कोप-डॉट में विशेष व्यवस्थाओं का उपयोग करते हुए इसका अवलोकन किया। उन्होंने पाया कि प्याज जैसी संरचना वाले सुपरनोवा की बाहरी परतों को जैसे छील दिया गया हो और कोर किसी अन्य ऊर्जा स्रोत के साथ चमक रहा था। यह अध्ययन डॉ. एसबी पांडे के निर्देशन में काम करने वाले एक पीएचडी शोध छात्र अमित कुमार के नेतृत्व में किया गया और इसे रॉयल एस्ट्रोनॉमिकल सोसाइटी की मासिक पत्रिका में प्रकाशित किया गया है। इसमें कहा गया है कि ऊर्जा का स्रोत एक अति-शक्तिशाली चुंबकीय क्षेत्र (मैग्नेटार) वाला अनोखा न्यूट्रॉन तारा हो सकता है जिसका कुल उत्सर्जित द्रव्यमान सूर्य के द्रव्यमान के मुकाबले 3.6 से 7.2 गुना अधिक है। यह अध्ययन भविष्य में बहुत ही दुर्लभ एसएलएसएनई की खोज में देवस्थल में स्थापित डॉट-3.6. मीटर के उपयोगी हो सकने की भी पुष्टि करना है। साथ ही इसकी गहन जांच से इसमें अंतर्निहित भौतिक ढांचे, संभावित पूर्वजों, ऐसे दुर्लभ विस्फोटों की मेजबानी करने वाले वातावरण और गामा-रे बर्स्टएवं फास्ट रेडियो बर्स्ट जैसे अन्य ऊर्जावान विस्फोटों के साथ उनके संभावित जुड़ाव का पता लगाया जा सकता है।


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