छत्तीसगढ़ : अडानी के कोल ब्लॉक पर लग सकता है ग्रहण, मुख्यमंत्री भूपेश ने दिया बयान

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हसदेव अरण्य क्षेत्र के प्रभावित ग्रामीण पिछले कई दिनों से अपने क्षेत्र में खनन न किये जाने को लेकर आंदोलनरत हैं। उन्होंने दीवाली भी धरनास्थल पर ही मनाया।



रायपुर, 03 अक्टूबर (हि.स.)। छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य क्षेत्र में अडानी कोल कंपनी के खिलाफ काफी लंबे समय से चल रहे जनआंदोलन को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का भी साथ मिल गया है। जिसकी वजह से हसदेव अरणय क्षेत्र में अडानी कंपनी का विवादित कोल माइनिंग प्रोजेक्ट एक बार फिर से लटकता नजर आ रहा है।
रविवार को एक बयान में सरकार के मुखिया भूपेश बघेल ने छत्तीसगढ़ के खनन प्रभावितों द्वारा किए जा रहे आंदोलन को अपना समर्थन दिया और कहा कि हम स्थानीय ग्रामीणों के साथ हैं। हसदेव अरण्य क्षेत्र के प्रभावित ग्रामीण पिछले कई दिनों से अपने क्षेत्र में खनन न किये जाने को लेकर आंदोलनरत हैं। उन्होंने दीवाली भी धरनास्थल पर ही मनाया। छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले में भी अडानी के कोल ब्लॉक को लेकर पिछले दिनों काफी हंगामा हुआ था और ग्रामीणों ने विरोधस्वरूप जनसुनवाई में हिस्सा ही नहीं लिया था। हसदेव अरण्य क्षेत्र के प्रस्तावित कोल ब्लॉक में 20 गांव पर विस्थापन का खतरा मंडरा रहा है। वहीं रायगढ़ के तमनार विकासखंड के गारे पेलमा में 03 ब्लॉक प्रस्तावित हैं, जिनमें से एक कि तथाकथित  जनसुनवाई तक हो गई है। इस तीन कोल ब्लॉक के कारण विकासखंड के 56 ग्रामों का अस्तित्व खतरे में है। इसी के विरोध में यहां मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने भी कई दिनों से ग्रामीणों के साथ मिलकर धरना दे रहे हैं। हसदेव अरण्य क्षेत्र में कोल माइनिंग के खिलाफ आदिवासियों और किसानों के जारी विरोध आंदोलनों का समर्थन करते हुए माकपा ने इस क्षेत्र में परसा कोल ब्लॉक सहित सभी खनन परियोजनाओं को निरस्त करने की मांग की है।
रविवार को माकपा राज्य सचिवमंडल ने जारी एक बयान में कहा है कि कोल ब्लॉकों के लिए इन खनन परियोजनाओं के कारण न केवल 20 गांव उजड़ जाएंगे, बल्कि बल्कि हसदेव नदी का अस्तित्व भी संकट में पड़ जायेगा, जो बांगो कैचमेंट के साथ मिलकर लगभग 04 लाख हेक्टेयर क्षेत्र की सिंचाई करती है और पेयजल आपूर्ति कर रही है।
माकपा राज्य सचिव संजय पराते ने भूपेश सरकार पर हमला बोलते हुए कहा कि छत्तीसगढ़ में वर्तमान कांग्रेस सरकार कॉर्पोरेट परस्त नीतियों पर ही चल रही है। यही कारण है कि अडानी के साथ भाजपा राज में हुए एमडीओ को अब कांग्रेस सरकार भी सार्वजनिक नहीं करना चाहती है। उन्होंने कहा कि हालांकि कोल ब्लॉक आबंटित करने का अधिकार केंद्र सरकार के पास है, लेकिन पर्यावरण स्वीकृति, भूमि अधिग्रहण, 5वीं अनुसूची, पेसा व वनाधिकार कानून के प्रावधानों के तहत खनन प्रक्रिया को रोकने और आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा करने का पूरा अधिकार भी राज्य सरकार के पास है। माकपा ने आरोप लगाया है कि कांग्रेस सरकार भाजपा राज में ग्राम सभाओं के किये गए फर्जीकरण पर अपना ठप्पा लगा रही है और आदिवासियों के शांतिपूर्ण विरोध आंदोलन को कुचलने पर तुली हुई है। कोल खनन के लिए अधिग्रहण की प्रक्रिया से पूर्व उसने इस क्षेत्र में वनाधिकारों की स्थापना भी नहीं की है, जिसके बिना भूमि अधिग्रहण की पूरी प्रक्रिया ही अवैध है।
बैलाडीला के मामले में भी कांग्रेस सरकार का यही आदिवासीविरोधी रवैया है। माकपा के सरगुजा, कोरबा और सूरजपुर के जिला सचिवों बाल सिंह, ललन सोनी और प्रशांत झा के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल ने कल आंदोलनरत आदिवासियों के धरनास्थल पर जाकर अपना समर्थन व्यक्त किया।

 


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