देहरादून, 12 फरवरी (हि.स)। दिल्ली चुनाव में आप की प्रचंड जीत के बाद उत्तराखंड में पार्टी की जोर आजमाइश को लेकर अटकलें तेज हो गई हैं। कहने वालों की कमी नहीं है कि 2022 के विधानसभा चुनाव में आप मैदान में उतरकर खम ठोकेगी और जनता के सामने तीसरा विकल्प रखेगी। हालांकि इसी तरह की मिलती जुलती स्थितियों में 2014 में लोकसभा चुनाव की पांचों सीटों पर चुनाव लड़ने का बुरा अनुभव आप के जेहन में अब भी ताजा है। पांच में से तीन सीटों पर चर्चित और जानेे पहचाने चेहरे उतारने के बावजूद पार्टी का बुरा हश्र हुआ था।
2013 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में 28 सीटें जीतकर आप ने पूरे देश को चौंका दिया था। कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनी तो फिर पार्टी के रणनीतिकारों ने आस पास के राज्यों में पांव पसारने शुरू कर दिए। पंजाब में कामयाबी मिली लेकिन उत्तराखंड में पार्टी पिट गई। लोकसभा चुनाव 2014 में उत्तराखंड की पांचों सीटों पर चुनाव लड़ने वाली आप के लिए किसी सीट पर जीतना तो दूर की बात, वह कहीं भी दूसरे नंबर पर भी न आ सकी। हरिद्वार सीट पर पार्टी ने देश की पहली महिला डीजीपी रही कंचन चौधरी भट्टाचार्य को उम्मीदवार बनाया था। वह भाजपा उम्मीदवार और मौजूदा केंद्रीय मंत्री डा रमेश पोखरियाल निशंक के खिलाफ चुनाव लड़ी थीं, लेकिन चौथे नंबर पर रहीं।
आप ने नैनीताल सीट पर जनकवि और उत्तराखंड आंदोलन में सक्रिय बल्ली सिंह चीमा को उम्मीदवार बनाया था। चीमा वह शख्सियत हैं, जिनके लोकगीतों की उत्तराखंड आंदोलन में धूम मची थी, मगर उनका भी चुनावी प्रदर्शन खराब रहा। टिहरी सीट पर पार्टी अनूप नौटियाल को सामने लेकर आई थी। उत्तराखंड में आपातकालीन चिकित्सा सेवा 108 के सफल संचालन में सीईओ रहते हुए अनूप नौटियाल का उल्लेखनीय योगदान रहा था। हालांकि वह भी बुरी तरह से चुनाव हारे। पौड़ी गढ़वाल सीट पर राकेश सिंह और अल्मोड़ा मेें हरीश चंद्र अपेक्षाकृृत बडे़ नाम नहीं थे। उन्हें भी करारी पराजय मिली।
2014 के बाद उत्तराखंड के छोटे बडे़ किसी चुनाव में आप ने भागीदारी नहीं की है। इस बीच, एक समय आप से जुडे़ प्रख्यात कवि कुमार विश्वास की उत्तराखंड में सक्रियता को उनकी यहां चुनावी सक्रियता से जोड़कर देखा जा रहा था। संकेत देने में वह खुद पीछे नहीं रहे थे। कुमार विश्वास ने बकायदा बयान दिया था कि उनका हरिद्वार में घर है और वह यहीं के निवासी हैं। इसके बावजूद वह चुनावी मैदान से दूर ही रहे।
उत्तराखंड में आप के संगठन विस्तार के लिए बातें तो बहुत हुईं लेकिन काम नहीं हो पाया। आधे अधूरे संगठन की स्थिति के बीच आप के नेताओं में सिर फुटव्वल की खबरें ज्यादा आईं। आज की स्थिति में आप का उत्तराखंड में संगठन कहीं नहीं दिखता। भाजपा गांव गांव, गली गली में है। बुरी स्थिति से गुजर रही कांग्रेस का भी कैडर वोट हर जगह मौजूद है। हरिद्वार और ऊधमसिंहनगर जैसे मैदानी क्षेत्रों में बसपा भी चुनाव नतीजों को प्रभावित करती है। ऐसी स्थिति के बीच में आप को अपने लिए रास्ता तलाशना है। आज की स्थिति में आप के लिए उत्तराखंड की डगर बहुत आसान नहीं दिख रही है।