46 हजार करोड़ रुपये की बड़ी धनराशि धरी की धरी रह गई,सीएजी की रिपोर्ट में खुलासा

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पटना, 24 मार्च (हि.स.)। भारत के नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) ने सार्वजनिक क्षेत्र (पीएसयू) उपक्रमों की 31 मार्च, 2018 तक की जो रिपोर्ट दी है उसके मुताबिक बिहार सरकार के विभागों द्वारा खर्च नहीं कर पाने के कारण 46 हजार करोड़ रुपये की धनराशि पड़ी रह गई।

कार्यशील 33 और अकार्यशील 44 कंपनियों पर बकाया है राशि

सीएजी ने रिपोर्ट में बिहार के सार्वजनिक क्षेत्र (पीएसयू) के उपक्रमों के काम-काज के तरीके पर सवाल उठाया है। सीएजी के मुताबिक बिहार में कुल 32 सरकारी कंपनी और तीन सांविधिक निगम हैं जो कार्यशील हैं, जबकि 44 सरकारी कंपनियां अकार्यशील है। इनमें 33 पीएसयू क्षेत्र की कंपनियों और 44 अकार्यशील क्षेत्र की कंपनियों पर राशि बकाया है, जिसमें पीएसयू क्षेत्र की कंपनियों पर 1998-99 से राशि बकाया है, जबकि अकार्यशील कपंनियों पर 1977-78 से राशि बकाया है।

इसमें से बिहार राज्य वित्तीय निगम और बिहार राज्य भंडारण निगम ने एक वर्ष से लेखापरीक्षा नहीं दिया। वहीं, बिहार राज्य पथ परिवहन निगम ने 32 वर्षों से लेखा परीक्षा नहीं दिया है। लेखा परीक्षा प्रतिवेदन का सामान्य शब्दों में अर्थ निकालें तो इन उपक्रमों ने खर्च और आमदनी का अंकेक्षण (ऑडिट) रिपोर्ट विधानमंडल के सामने नहीं रखा है।

सात कंपनियां नहीं दे पा रहीं सरकार को लाभ  

बिहार में कुल सात लाभ अर्जित करने वाले उपक्रम हैं लेकिन राज्य सरकार के पास कोई लाभांश नीति नहीं होने के कारण ये उपक्रम अपना लाभ सरकार को नहीं दे रहे हैं। साल 2015-16 में बिहार स्टेट रोड डेवलमेंट कॉपोरेशन लिमिटेड ने अपने लाभ 93.86 करोड़ में से पांच करोड़ और बिहार राज्य पुल निगम ने अपने लाभ 70.26 करोड़ में से केवल 1.05 करोड़ लाभांश सरकार को दिया था।

इसी तरह केन्द्रीय विद्युत विनियामक आयोग विनियमन 2014 के अनुसार बिजली वितरण का सही प्रबंधन नहीं कर पाने के कारण दोनों बिजली डिस्ट्रीब्यूशन कंपनियों, साउथ बिहार पॉवर ड्रिस्टीब्यूशन लिमिटेड (एबीपीडीसीएल) और नॉर्थ बिहार पॉवर ड्रिस्टीब्यूशन लिमिटेड(एनबीपीडीसीएल) को कुल 115.23 करोड़ के बिजली बिल का नुकसान उठाना पड़ा।

दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना (डीडीयूजीजेवाई) के अन्तर्गत बिना वास्तविक सर्वेक्षण के कारण 1,632.67 करोड़ की परियोजना लागत की अल्पस्वीकृति हुई, जिसके परिणामस्वरुप अतिरिक्त परियोजना लागात का 60 प्रतिशत करीब 979.60 करोड़ के अनुदान की हानि हुई। बिहार स्टेट पावर ट्रांसमिशन कंपनी (डीस्कॉम्स) के पास दरों की सूची नहीं रहने के कारण राजीव गांधी विद्युतीकरण योजना में राजकोष पर 830.47 करोड़ का अतिरिक्त भाड़ पड़ा।

सदन में पेश सीएजी रिपोर्ट पर एक नजर

राज्य के 44 विभाग साल 2017-18 के 187344.00 करोड़ के कुल बजट में से 140947.00 करोड़ ही खर्च कर पाए।

281420.43 करोड़ के वित्तीय मामले से जुड़े 7760 निरीक्षण प्रतिवेदनों को एक साल से आठ साल तक लंबित रखा गया।

ग्राम पंचायतों में पंचायत सचिव के 56 प्रतिशत पद खाली हैं, जबकि नगरपालिकाओं में 62 प्रतिशत पद खाली हैं।

एलइडी लाईट की खरीद के लिए निविदा के मूल्यांकन के दौरान न्यूनतम दर का टेंडर डालने वाले को नगर परिषद्, अरवल ने जान-बूझकर नहीं लिया। इससे 50.33 लाख रुपये की राशि का अधिक भुगतान किया गया।लापरवाही से कूड़ेदान की खरीद पर दो शहरी निकायों को छह करोड़ 98 लाख रुपये का नुकसान हुआ।

2015 से 2018 के दौरान ग्राम पंचायतों को अनुदानों का हस्तांतरण करने में 11 से 261 दिनों की देरी हुई। इस कारण 8.12 करोड़ की राशि पंचायती राज विभाग को दांडित ब्याज के तौर पर ग्राम पंचायतों को भुगतान किया गया।

बिहार सरकार द्वारा शर्तो को पूरा नहीं करने के कारण 2016-18 के त्रिस्तरीय पंचायती राज संस्थाओं को 878.56 करोड़ की राशि नहीं मिल पाई। शिक्षा विभाग द्वारा बच्चों के आधार डिजिटलीकरण के रोके जाने से 1.98 करोड़ का व्यय बेकार हो गया।

वित्तीय नियमों की अनदेखी के कारण 2.89 करोड़ का गबन हुआ। विद्युत शुल्क छूट लेने में नगर-निगमों के असफल होने के कारण 5.14 करोड़ की राशि का ज्यादा भुगतान करना पड़ा।

इन विभागों ने वित्तीय वर्ष के 11 महीनों की अपेक्षा अकेले मार्च माह में कुल बजट की औसतन 40 प्रतिशत राशि खर्च की। इन विभागों ने वित्तीय वर्ष के 11 महीनों की अपेक्षा अकेले मार्च माह में कुल बजट की औसतन 40 प्रतिशत राशि खर्च की।

सरकारी अफसरों और कर्मचारियों ने किया गबन

पिछड़ा वर्ग एवं अति पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग के जिला कल्याण पदाधिकारी की लापरवाही की वजह से आरा, बेगूसराय और बांका में जिन छात्रावासों के जीर्णोद्धार पर 3.47 करोड़ रुपये खर्च किया गया, उनकी जांच करने पर भवन क्षतिग्रस्त ही पाया गया। कार्यपालक अभियंताओं ने छात्रावासों के जीर्णोद्धार कार्य पूरा होने की रिपोर्ट विभाग को दी थी पर विभाग के स्तर से कार्रवाई नहीं की गई। जब सीएजी ने इस ओर ध्यान दिलाया तब विभागीय स्तर पर जांच में अफसरों को चिन्हित कर कार्रवाई की गई है।

अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति कल्याण विभाग में 2.89 करोड़ रुपये गबन का मामला सामने आया है। रिपोर्ट के मुताबिक रोकड़पाल ने बच्चों के वजीफे की राशि 1.43 करोड़ रुपये अपने निजी बैंक खाते में ट्रांसफर कर लिया और इसकी भनक तक जिला कल्याण पदाधिकारी, बांका को नहीं लगी। इसी तरह विभाग की वित्तीय व्यवस्था में नियमों की अनदेखी कर 1.46 करोड़ रुपये की गड़बड़ी का मामला भी उजागर हुआ है।

 


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