एटा, 23 जून (हि.स.)। कम ही लोगों को याद होगा कि 25 जून 1975 की रात जिस समय तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा की थी तो उस समय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तत्कालीन सरसंघचालक बालासाहब देवरस सहित संघ के प्रमुख नेता उप्र. के फिरोजाबाद में चल रहे संघ के प्रशिक्षण वर्ग में थे।
इस प्रशिक्षण वर्ग में द्वितीय वर्ष का प्रशिक्षण पा रहे अधिवक्ता नारायण भास्कर बताते हैं कि आपातकाल की घोषणा होते ही संघ नेतृत्व ने समझ लिया कि देर-सबेर इसकी लपेट में संघ भी आएगा ही। इसी कारण ऐहतिहात के तौर पर प्रशिक्षण शिविर एक दिन पूर्व ही समाप्त कर दिया गया। इसके बाद सरसंघचालक जी फिरोजाबाद से नागपुर जाते समय गिरफ्तार कर लिये गये। 3 जुलाई 1975 को संघ पर भी प्रतिबन्ध लगा दिया गया। हां, इस बीच इतना समय मिल गया कि संघ के प्रमुख कार्यकर्ता भूमिगत हो गये। संघ ने आपातकाल को चुनौती देने का निर्णय लिया तथा इसके लिए योजना बनाई।
इस योजना के तहत कासगंज के वैद्य रामाधार जाजू, प्राचार्य सुरेशचंद्र गुप्त, श्रीकृष्ण गुप्त, अलीगंज के गेंदालाल गुप्त, सांसद महादीपक सिंह शाक्य, जिन्हैरा के रामभरोसीलाल, राजेन्द्र प्रसाद शर्मा, एटा के ओमप्रकाश राठी, फकीरचंद्र अग्रवाल, शिवनारायन गुप्ता, रामप्रकाश जैन, मैमड़ा (सिढ़पुरा) के वीरेन्द्रपाल पांडे आदि आंदोलन के लिए तैयार किये गये। ये सभी बाद में डीआईआर या मीसा में जेल भी भेजे गये। जिला प्रचारक क्षेत्रपाल उपाध्याय, जलेसर के तहसील प्रचारक मोहन कौशिक, कासगंज के तहसील प्रचारक यतीन्द्र जी, एटा के तहसील प्रचारक रमेशचंद्र उर्फ भैयाजी पहले व्यवस्था संभालते रहे किन्तु प्रशासन की निगाह में आ जाने पर ये भी डीआईआर या मीसाबंदी के रूप में जेल भेजे गये।
इस समय तक अधिवक्ता के रूप में पंजीकृत हो चुके नारायण भास्कर के अनुसार उन्हें न्यायालय व कचहरी में कार्यकर्ताओं की पैरवी, एटा नगर के डीआईआर व मीसाबन्दियों के परिवारों की आवश्यक चिन्ता व सहायता करने, जेल में बंद कार्यकर्ताओं से मुलाकात कर उन्हें आवश्यक वस्तुएं तथा सूचनाएं पहुंचाने तथा तानाशाही को चुनौती देने के लिए बनायी गयी लोक संघर्ष समिति की आवश्यक कानूनी सहायता करने का दायित्व सौंपा गया। इसके अलावा उन पर सबसे बड़ा दायित्व था स्वयं को गिरफ्तारी से यथासंभव बचाए रखना।
कचहरी में संभाला मोर्चा
भास्कर जी के अनुसार एटा जनपद में कचहरी के मोर्चे पर मिली एक सफलता अन्य जनपदों के लिए नजीर बनी। सरस्वती शिशु मंदिर के आचार्य सोनेलाल को सत्र न्यायाधीश द्वारा इसी आधार पर जमानत दी गयी कि वे आचार्य हैं। इस जमानत प्रार्थनापत्र व न्यायालय के आदेश की प्रतियां संघ नेतृत्व द्वारा अन्य जनपदों में भी संदर्भ के लिए प्रसारित की गईं। भास्कर जी द्वारा यह पैरवी निःशुल्क व कई बार स्वधन लगाकर की जा रही थी।
तथ्यविहीन आरोप, मनोरंजक बहस
नारायण भास्कर के अनुसार न्यायालय में आने वाले अनेक मामले विवेचक द्वारा पूरी मेहनत से तैयार किये गये होते थे लेकिन अनेक ऐसे मामले भी थे जहां आरोप ही तथ्यहीन होते थे। ऐसे आरोपपत्रों पर अनेक बार मनोरंजक बहस होती थी। उदाहरण के लिए विपक्षीदलों के विलय के बाद बनी जनता पार्टी के जिलाध्यक्ष बने हिन्दू महासभा के नेता ब्रहमानन्द गुप्ता आदि पर आरोप था कि वे रेलवे स्टेशन से करीब 1.5 किमी दूर मेहता पार्क में रेल का इंजन फूंकने का प्रयास कर रहे थे। मामले में जब विवेचक से पूछा गया कि मेहतापार्क के पास कोई रेल की पटरी है तो उन्होंने इंकार कर दिया। इस पर बचावपक्ष की ओर से नारायण भास्कर ने प्रश्न किया कि फिर वे बताएं कि बिना पटरी के रेल का इंजन मेहतापार्क तक कैसे पहुंचा? क्या परिवादी पागल था या अभियुक्तगण? इसके बाद दारोगाजी अगली तारीख पर जिरह के लिए आये ही नहीं। प्रायः प्रत्येक मामले में अभियोजन पक्ष का एक अनिवार्य आरोप होता था कि अभियुक्त ‘इन्दिरा का तख्ता पलट दो- जैसी बात कर रहा था। जब उनसे पूछा जाता कि वे बताएं कि एटा जिले में इन्दिरा का तख्ता कहां है? तो वे निरूत्तर रह जाते थे।
पढ़ा लिखा व होशियार होना भी बना जेल यात्रा का कारण
संघ के तत्कालीन जिला प्रचारक क्षेत्रपाल उपाध्याय पर आरोप था कि वे इतने पढ़े-लिखे हैं कि उनसे जो भी मिलता है, उसका दिमाग फेर देते हैं तथा घूम-घूमकर संघ का प्रचार करते हैं। संघ पर प्रतिबन्ध के तत्काल बाद गिरफ्तार किये गये क्षेत्रपाल हालांकि 3 माह बाद जमानत पर रिहा हो गए किन्तु अपनी गतिविधियों के चलते प्रशासन की निगाहों में खटकते रहे। क्षेत्रपाल ने अपना नाम बदलकर जब नरेन्द्र कर लिया तो प्रशासन ने उनकी जगह धिरामई इंटर कालेज के प्रधानाचार्य क्षेत्रपाल शास्त्री को प्रचारक मानकर जेल में डाल दिया।
माफीनामे पर रहता था प्रशासन का जोर
एटा आदि जिलों का प्रशासन पूरी तरह से कांग्रेसी मानसिकता का न था, इसलिए जिला प्रशासन का जोर गिरफ्तारी से अधिक संबंधित व्यक्ति से माफीनामा लिखाकर उसे रिहा करने पर रहता था। ऐसे ही एक मामले में अधिवक्ता जगदीश सहाय पर तत्कालीन जिलाधिकारी एपी सिंह ने माफीनामे का दबाव डाला किन्तु 67 वर्षीय जगदीश सहाय के इंकार कर देने पर उन्हें पहले डीआईआर में मेहता पार्क में खंबे पर चढ़कर तार काटने के आरोप में गिरफ्तार किया गया। न्यायालय में यह आरोप झूठा साबित होने पर उन्हें रिहाई का आदेश दिया गया तो प्रशासन ने उन्हें मीसा में बंद कर दिया।
जब लड़का देखने पहुंचे ‘रज्जू भैया’
जीटी रोड, एटा पर स्थित ‘सुनहरी भवन’ उन दिनों भूमिगत संघ कार्यकर्ताओं का ऐसा गढ़ था, जिसके बारे में विश्वास था कि वहां पहुंचकर उन्हें अपेक्षित सहायता और सहयोग मिल ही जाएगा। यह भवन बहुत दिनों तक पुलिस की निगाह से भी बचा रहा। इसका कारण था कि भवन के स्वामी फिरोजाबाद के कांग्रेस अध्यक्ष पीके तेलंग के भाई कृष्णमोहन तेलंग थे जबकि उस मकान में उनकी पत्नी के मौसेरे भाई तथा संघ के जिला व्यवस्था प्रमुख बाबूराम उपाध्याय रहते थे। इसलिए गाहे-बगाहे वहां कोई न कोई संघ का बड़ा कार्यकर्ता पहुंचता ही रहता था। इस दौरान वहां पहुंचे प्रमुख नेताओं में डा. जगमोहन, सूर्यकृष्णजी, श्यामजी गुप्त, शरतचंद्र महरोत्रा, कौशल किशोर जी, दन्तोपंत ठेंगड़ी, सुन्दरसिंह भंडारी, अशोक सिंघल के नाम उल्लेखनीय हैं। स्वाभाविक था कि मकान बहुत दिनों तक सीआईडी की निगाह से बचा न रह सका किन्तु निगरानी व बार-बार की पूछताछ के अतिरिक्त पुलिस की सीधे छापा मारने की हिम्मत न हुई।ऐसी ही एक पूछताछ के समय अचानक तत्कालीन सह सरकार्यवाह स्व. रज्जूभैया ‘सुनहरी भवन’ पहुंच गये। गुप्तचर विभाग के अधिकारी ने जब उनसे परिचय जानना चाहा तो वे सहजता से बताने लगे कि उनके एक मित्र ने इन पंडित बाबूराम जी के लड़के के बारे में बताया था। इसलिए वे लड़का देखने आये हैं किन्तु आप लोगों को देखकर लगता है कि यह परिवार लफड़ेवाला है अतः अब वे अपना विचार बदल रहे हैं। इस पर पूछताछ कर रहे इंस्पेक्टर सत्येन्द्र शर्मा ने उन्हें आश्वस्त किया कि चाचा, लड़का तो योग्य है, जमीन-जायदाद भी है, कोई ऐब भी नहीं है। ऐसे में उनकी बिटिया इस परिवार में सुखी ही रहेगी किन्तु उनकी मानें तो यह आपातकाल की आपाधापी गुजर जाने के बाद ही बिटिया की शादी की सोचें। इस समय तो कोई गारंटी नहीं कि लड़के को कब जेल जाना पड़े।
कलाकार के रूप में तानपुरा लिये एटा पहुंचे अशोक सिंहल
तत्कालीन जिला प्रचारक क्षेत्रपाल जी बताते हैं कि भूमिगत प्रचार के दौरान विहिप नेता स्व. अशोक सिंहल एक कलाकार के रूप में रहते थे। उनका एटा प्रवास भी इसी रूप में हुआ। नगला समन में हुई उनकी बैठक के दौरान उन्होंने ‘मैया मोरी मैं नहिं माखन खायो’ भजन भी अपने तानपुरा पर सुनाया।
छोटे भाई ने भटकाए नानाजी
नारायण भास्कर के अनुसार उनका छोटा भाई कृष्णप्रभाकर हालांकि इस कालखंड में रहता तो गांव में ही था, किन्तु कभी-कभी एटा आ जाता था। इस समय उसकी उम्र भी 10-11 साल ही थी। किन्तु घर में होनेवाली चर्चाओं और दिये गये निर्देशों के चलते वह भी भलीभांति जानता था कि किसी अनजान को पिता या भाई का पता नहीं बताना है। ऐसे में एक दिन संघ की भूमिगत गतिविधियों के प्रदेश प्रमुख बनाये गये नानाजी देशमुख का आना हुआ। एक पार्क में साथियों के साथ खेल रहे भाई से जब उन्होंने पिताजी का पता पूछा तो सब ने कह दिया कि ‘वे नहीं जानते।’ फिर भी नानाजी किसी तरह पता पूछकर घर आ गये। थोड़ी देर बाद देखते हैं कि छोटे भाईसाहब भी चले आ रहे हैं। दोनों एक-दूसरे को देख भौचक रह गये। किन्तु नानाजी ने प्यार से कान उमेठते हुए उसे शाबासी दी कि ऐसे ही आगे भी किसी अनजान को अपने पिता या भाई का पता नहीं बताओगे।
लोक संघर्ष समिति का ‘लोकसंघर्ष’
एटा जनपद में गठिक लोकसंघर्ष समिति के अध्यक्ष सेवानिकेतन के संचालक जयप्रकाश शर्मा भाई जी बनाए गये। इस समिति ने ‘लोकसंघर्ष’ नामक एक भूमिगत साइक्लोस्टाइल समाचारपत्र निकाला। यह समाचारपत्र पहले एटा के गांधी स्मारक इंटर कालेज से साइक्लोस्टाइल मशीन पर, फिर विश्वनाथ प्रसून के जब्त प्रेस से, बाद में हाथरस से निकलता था। बाद में एटा जिले के लिए विशेष रूप से ‘रणभेरी’ नामक भूमिगत समाचारपत्र निकाला गया। नारायण भास्कर को इस समाचारपत्र की सामग्री को कानूनी रूप से देखने व यथावश्यक संशोधित करने की जिम्मेदारी दी गयी। सबसे बड़ा दायित्व उस समिति का था जो उन कार्यकर्ताओं के परिवारों की चिन्ता करती थी, जिसके मुखिया डीआईआर या मीसा में जेल में निरूद्ध थे। व्यवस्था प्रमुख होने के नाते बाबूराम उपाध्याय व सहयोगी के रूप में शान्ती रूवरूप दीक्षित ऐसे परिवारों के लिए कार्यकर्ताओं से धन व सामग्री का संग्रह कर पहुंचाया करते थे।
बारात के जनवासे में हुई लोकसंघर्ष समिति की बैठक
करीब 19 माह चले शह व मात के खेल के मध्य जनवरी 1977 आ गया। लोगों के दबाववश पिता बाबूराम उपाध्याय ने नारायण भास्कर की शादी तय कर दी। 24 जनवरी को जिले के प्रमुख कस्बा सोरों में बारात जानी थी किन्तु बारात में जानेवाले लगभग ढाई दर्जन ऐसे बाराती थे, जिनके खिलाफ डीआईआर या मीसा के वारंट कटे थे। बारात सोरों की जिस ‘जयपुरवाली’ धर्मशाला में रूकी, वहीं लोक संघर्ष समिति की एक बैठक भी सम्पन्न कर ली गयी। ध्यान रहे इसी धर्मशाला से 1942 में सुप्रसिद्ध क्रांतिकारी योगेश चंद्र चटर्जी की भी गिरफ्तारी हुई थी। जिले में वर्तमान में 20 लोग लोकतंत्र सेनानी के रूप में पंजीकृत हैं जबकि 5 लोगों के बारे में प्रशासनिक रिपोर्ट प्रतिकूल होने के कारण उनकी पेंशन रोक दी गयी है। इन रोके गये लोगों में 7 बार के सांसद रहे डा. महादीपक सिंह शाक्य भी शामिल हैं।
1977 में आपातकाल हटाए जाने की घोषणा हुई। संघ सहित विभिन्न संगठनों के कार्यकर्ताओं को जेल से रिहाई मिली। बाद के चुनावों में महादीपक सिंह शाक्य एटा से और चौ. मुल्तानसिंह जलेसर से सांसद चुने गये। विधानसभा के चुनावों में सोरों से पं. रामप्रताप वैद्य, कासगंज से नेतरामसिंह, एटा से गंगाप्रसाद वर्मा, निधौलीकलां से रामसिंह, जलेसर से माधव नट, सकीट से चौ. वदनसिंह, पटियाली से चौ. जसवीर सिंह तथा अलीगंज से गेंदालाल गुप्त विधायक निर्वाचित हुए। लोकसभा व विधानसभा की सभी सीटों पर कांग्रेस की पराजय हुई।