40 हजार करोड़ का चिटफंड घोटाला, लूट ली 20 लाख लोगों की गाढ़ी कमाई

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कोलकाता, 04 फरवरी (हि.स.)। अरबों रुपये के सारदा और रोज वैली चिटफंड घोटाला मामले को लेकर कोलकाता की सड़कों पर सीबीआई और कोलकाता पुलिस के बीच जो घमासान मचा हुआ है, उससे एक बार फिर चिटफंड पीड़ितों के जख्म ताजे हो गए हैं। करीब 20 लाख लोगों से निवेश के नाम पर वसूली गई 40 हजार करोड़ रुपये की धनराशि हजम करने का मामला एक बार फिर पश्चिम बंगाल में सुर्खियों में है। साल 2013 में जब यह पता चला था कि चिटफंड कंपनियां भाग चुकी हैं, तब राज्य भर में उनके एजेंटों को लोगों ने पकड़-पकड़कर मारा-पीटा था। डर के मारे और शर्म से 100 से अधिक एजेंटों ने आत्महत्या कर ली थी।
दरअसल, रोजवैली और सारदा चिटफंड मामले में कथित तौर पर साक्ष्यों को मिटाने के आरोप में कोलकाता पुलिस आयुक्त राजीव कुमार से पूछताछ करने सीबीआई की टीम रविवार रात पहुंची थी, जिन्हें कोलकाता पुलिस ने न केवल कॉलर पकड़कर सड़कों पर घसीटा बल्कि वैन में डालकर थाने तक ले गई और हिरासत में भी ले लिया। अब ममता बनर्जी ने केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार पर सीबीआई का इस्तेमाल राज्य की प्रशासनिक एजेंसियों को नियंत्रित करने के लिए करने का आरोप लगाकर धरने पर बैठ गई है। रविवार रात से ही वह लगातार धरने पर हैं। एक तरफ राज्य विधानसभा का बजट सत्र चल रहा है, दूसरी ओर ममता बनर्जी धर्मतल्ला में धरने पर बैठी हैं। उन्होंने धरने पर ही कैबिनेट की बैठक भी की। अब पूरे देश की नजर बंगाल पर टिकी है और लोग जानना चाहते हैं कि आखिरकार चिटफंड घोटाला है क्या।
दरअसल बंगाल में दो घोटाले सबसे चर्चित हैं। एक है सारदा चिटफंड घोटाला जिसने पश्चिम बंगाल के अलावा झारखंड, असम, ओडिशा राज्य के कम से कम 10 लाख लोगों से निवेश के नाम पर 20 हजार करोड़ रुपये एकत्रित किए थे और निवेशकों के रुपये लौटाने के बजाय सारदा प्रमुख सुदीप्त सेन और उसके अन्य सहयोगी कंपनियों के दफ्तर पर ताला लगाकर फरार हो गए थे। इसी तरह से रोजवैली चिटफंड घोटाला है जिसके निदेशक गौतम कुंडू और अन्य ने निवेशकों से भारी रिटर्न के नाम पर बाजार से करीब 18000 करोड़ रुपये उठाया था और इसे लौटाने के बजाय कंपनियों के दफ्तर पर ताला लगा दिए थे। इन चिटफंड कंपनियों ने जिन लोगों से रुपये वसूले थे वे रोज कमाने खाने वाले लोग थे। यानी सुबह काम करते थे और शाम को घर चलाने लायक पैसा लाते थे। उसमें से रोज कोई 10 तो कोई 20 रुपये, कोई 30 तो कोई 50 रुपये तक जमा करता था। रिक्शा चलाने वाले, सब्जी बेचने वाले, दैनिक मजदूरी करने वाले समूह के ये अति गरीब तबके के लोग थे, जिनकी गाढ़ी कमाई डूब गई थी और आज तक नहीं मिली है।
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर वर्ष 2014 के बाद सीबीआई ने इसकी जांच शुरू की तो पता चला कि लोगों से जो रुपये उठाए गए थे उसे चिटफंड कंपनियों के मालिकों ने सत्तारूढ़ तृणमूल के कई शीर्ष नेताओं, मंत्रियों, सांसदों और पार्टी फंड में करोड़ों करोड़ों रुपये जमा करा दिए थे, जिसकी वजह से निवेशकों का पैसा लौटाने लायक राशि उनके पास बची ही नहीं थी। इस मामले में तृणमूल संसदीय दल के नेता सुदीप बनर्जी, राज्य के परिवहन व खेल मंत्री मदन मित्रा, सांसद तापस पाल, राज्यसभा सांसद सृंजय बसु, कुणाल घोष और कई अन्य वरिष्ठ नेता गिरफ्तार हुए हैं और अब सीबीआई कोलकाता पुलिस आयुक्त राजीव कुमार को गिरफ्तार करना चाहती है।
जांच एजेंसी का दावा है कि 2013 में जब सारदा प्रमुख को जम्मू-कश्मीर के सोनमार्ग से पकड़ा गया था, तब उनके पास लाल डायरी, पांच मोबाइल फोन और लैपटॉप बरामद हुए थे। इसमें इस बात का जिक्र था कि किन-किन नेताओं को कब-कब कितने पैसे दिए गए। साल 2014 में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद जब सीबीआई जांच शुरू की, तब पुलिस ने सीबीआई को न तो लाल डायरी दी न ही वो पांचों मोबाइल फोन जो सारदा प्रमुख के पास से बरामद हुए थे। लैपटॉप भी नहीं दिया गया। पश्चिम बंगाल पुलिस की जिस एसआईटी ने सुदीप्त सेन को गिरफ्तार किया था, उसके प्रमुख वर्तमान पुलिस आयुक्त राजीव कुमार थे।
दरअसल, इन दोनों चिटफंड कंपनियों पर आरोप है कि पैसे ठगने के लिए लोगों से लुभावने वादे किए थे और रकम को 34 गुना करके वापस करने के लिए कहा था। इस घोटाले में करीब 40 हजार करोड़ की हेरफेर हुई थी। साल 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को आदेश दिए थे कि इन मामलों की जांच करे। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल, ओडिशा और असम पुलिस जांच में सहयोग करने का आदेश दिया था। सारदा व रोजवैली ग्रुप ने महज चार सालों में पश्चिम बंगाल के अलावा झारखंड, उड़ीसा और नॉर्थ ईस्ट राज्यों में अपने 300 ऑफिस खोल लिए थे। पश्चिम बंगाल की इस चिटफंड कंपनी ने 20,000 करोड़ रुपये लेकर दफ्तरों पर ताला लगा दिया था।
इस मामले में पी. चिदंबरम की पत्नी नलिनी के खिलाफ भी आरोप पत्र दाखिल किया गया था। उन पर आरोप है कि उन्होंने सारदा ग्रुप के प्रमुख सुदीप्तो सेन के साथ मिलकर साल 2010 से 2012 के बीच 1.4 करोड़ रुपये लिए थे। इन चिटफंड घोटालों की जांच करने वाली पश्चिम बंगाल पुलिस की एसआईटी टीम का नेतृत्व 2013 में राजीव कुमार ने किया था। रिपोर्ट्स के मुताबिक, सीबीआई सूत्रों का कहना है कि एसआईटी जांच के दौरान कुछ खास लोगों को बचाने के लिए घोटालों से जुड़े कुछ अहम सबूतों के साथ या तो छेड़छाड़ हुई थी या फिर उन्हें गायब कर दिया गया था। इसी सिलसिले में सीबीआई कुमार से पूछताछ करना चाहती है। राजीव कुमार पश्चिम बंगाल कैडर के 1989 बैच के आईपीएस ऑफिसर हैं। रोज वैली और सारदा चिटफंड मामले में सीबीआई ने अब तक 80 चार्जशीट फाइल की हैं जबकि एक हजार करोड़ से ज्यादा रुपये रिकवर कर लिए गए हैं।
रोजवैली घोटाले पर काफी वक्त से हड़कंप मचा हुआ है। इसमें कई बड़े नेताओं का नाम भी शामिल होने की बात सामने आ चुकी है। रिपोर्ट्स के मुताबिक लोगों को बड़े-बड़े सपने दिखाकर चूना लगाने वाले इस समूह के पैर राजनीति, रियल एस्टेट और फिल्म जगत तक पसरे हुए थे. दरअसल, रोज वैली चिटफंड घोटाले में रोज वैली ग्रुप ने लोगों दो अलग-अलग स्कीम का लालच दिया और करीब एक लाख निवेशकों को करोड़ों का चूना लगा दिया था। फिलहाल इन दोनों चिटफंड कंपनियों के मालिक सीबीआई की हिरासत में है।
राजीव कुमार के पीछे क्यों पड़ी है सीबीआई
2013 में सारदा मामले का खुलासा होने के बाद पश्चिम बंगाल सरकार ने सारदा प्रमुख सुदीप्त सेन और उसकी सहयोगी देवयानी मुखर्जी को गिरफ्तार करने के लिए स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम (एसआईटी) का गठन किया था। राज्य के गृह सचिव की देखरेख में गठित की गई इस एसआईटी के प्रमुख वर्तमान कोलकाता पुलिस आयुक्त राजीव कुमार थे एवं पल्लव कांति घोष इस टीम के अहम अधिकारी थे। इन दोनों के अलावा इसमें आईपीएस विनीत गोयल वर्तमान में मालदा के एसपी अर्णव घोष समेत अन्य अधिकारी शामिल थे।
उधर कोलकाता छोड़कर जम्मू-कश्मीर के गुप्त ठिकाने पर छिपे बैठे सारदा प्रमुख सुदीप्त सेन और देवयानी को वहां की स्थानीय पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था। उनके पास से एक लाल डायरी और सारदा प्रमुख के फोन पर आने वाले लोगों के फोन का रिकॉर्ड भी पुलिस ने जब्त किया था। जम्मू- कश्मीर पुलिस से सूचना मिलने के बाद एसआईटी की टीम वहां गई थी और उन दोनों को अपनी हिरासत में लेने के साथ-साथ उनके पास से बरामद की गई डायरी और फोन का रिकॉर्ड भी ले आई थी। यहां तक कि जम्मू-कश्मीर पुलिस ने कोलकाता पुलिस को इनके पास से बरामद की गई पेन ड्राइव, पांच मोबाइल फोन और लैपटॉप भी दिया था। आरोप है कि उस फोन रिकॉर्ड में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के उन सभी नेताओं का नंबर दर्ज था जो बड़े पैमाने पर सारदा प्रमुख से रुपये लेते रहे हैं।
इन लोगों ने लगातार सुदीप्त सेन से संपर्क बनाए रखा था। इसके साथ ही जो लाल डायरी बरामद की गई थी उसमें सत्तारूढ़ पार्टी के ही उन नेताओं का नाम था जिन्हें सारदा समूह की ओर से करोड़ों करोड़ों रुपये की धनराशि समय समय पर दी गई थी। किसको कब कितना पैसा दिया गया था, इसका पूरा ब्यौरा उस डायरी में था।
2014 में कलकत्ता हाईकोर्ट के निर्देश के बाद सीबीआई ने सारदा घोटाला मामले की जांच शुरू की थी। कोर्ट ने पुलिस को निर्देश दिया था कि वे जांच में सामने आए सभी तथ्यों और दस्तावेजों को सीबीआई के हवाले करें, लेकिन आरोप है कि पुलिस की एसआईटी ने ना तो लाल डायरी दी थी और ना ही सुदीप्त सेन के फोन का रिकॉर्ड। यहां तक कि मिडलैंड पार्क स्थित सारदा समूह के कार्यालय से बरामद किए गए सैकड़ों दस्तावेजों में से एक कागज का टुकड़ा भी एसआईटी की टीम ने सीबीआई के हवाले नहीं किया। इस मामले में दो महीने पहले ही केंद्रीय जांच एजेंसी की ओर से सुप्रीम कोर्ट में आरोप लगाया गया था कि मामले की प्राथमिक जांच करने वाली एसआईटी के सदस्यों ने सत्तारूढ़ पार्टी के नेताओं को बचाने के लिए लाल डायरी समेत वे सारे साक्ष्य मिटा दिए जिससे सारदा प्रमुख के साथ उनके संबंधों का खुलासा हो सके। तब सुप्रीम कोर्ट ने राज्य प्रशासन को निर्देश दिया था कि सीबीआई जांच में सहयोग करें और मामले में तथ्यों के आदान-प्रदान के लिए दोनों ही एजेंसियों के अधिकारी एक दूसरे के साथ बैठें। लेकिन बार-बार नोटिस के बावजूद बाकी सारे अधिकारी तो कमोबेश जांच एजेंसी के कार्यालय में पहुंचे लेकिन कोलकाता पुलिस आयुक्त नहीं गए।
इधर केंद्रीय गृह मंत्रालय ने मामले की जांच जल्द से जल्द पूरी करने का निर्देश दिया है जिसके बाद सीबीआई की टीम नई ऊर्जा के साथ मामले की जांच में जुटी है। इसी कड़ी में कोलकाता पुलिस आयुक्त राजीव कुमार स सीबीआई की टीम पूछताछ करना चाहती है। सीबीआई सूत्रों की ओर से यह स्पष्ट किया गया है कि इस बार निश्चित तौर पर इन के खिलाफ कानूनी कार्रवाई होगी।


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