श्रीनगर, 12 अगस्त (हि.स.)। बादलों का पहाड़ों को चूमते देखना और फिर उन्हें पार कर के हवाई जहाज बादलों को चीरता हुआ जब धरती की जन्नत पर उतर रहा था तो लगा कि ऊपर वाले ने कितनी मेहरबानी की है इस ज़मीं पर।
मुसाफिरों से भरी फ्लाइट ने जब श्रीनगर के रनवे को छुआ तो उस वक्त बारिश हो रही थी, वक्त तो दिन का था लेकिन दृश्यता कम होने से सबकुछ धुंधला दिख रहा था। फ्लाइट क्रू ने श्रीनगर पहुंचने का ऐलान किया और आदतन कहा कि अब आप अपने मोबाइल फोन का इस्तेमाल कर सकते हैं तो उतरने की हड़बड़ी करते यात्रियों के बीच एक ठहाका गूंज गया।
एक सप्ताह से पूरे कश्मीर में मोबाइल और इंटरनेट सेवाएं बंद हैं, कोई कनेक्शन नहीं, किसी से कहीं बात नहीं हो सकती। ईद-उल-जुहा के मौके पर घर पहुंचने के लिए यात्रियों ने पहले से ही टिकट बुक करा रखे थे, इसलिए फ्लाइट तो सभी फुल चल रही थीं।
श्रीनगर की ज़मीं पर उतरने वाले ज़्यादातर मुसाफिरों के दिलो दिमाग में एक डर सा बैठा हुआ था, चिंता थी अपने घर वालों को लेकर। हालांकि कुछ भी ऐसा नहीं हुआ था घाटी में। इसके बावजूद बातचीत ना हो पाने से एक स्याह अंधेरा पसर गया था।
मेरे साथ बैठे दो यात्री नौजवान थे। इनमें एक गुड़गांव में और दूसरा बेंगलुरू में मल्टी नेशनल कंपनी में काम कर रहा था। घाटी के ज़्यादातर पढ़े लिखे नौजवान अब कश्मीर से बाहर निकल कर देश और दुनिया की बड़ी कंपनियों में काम कर रहे हैं।
वे समझते हैं कि कश्मीर में उतना विकास नहीं हुआ जितना होना चाहिए था। ये भी मानते हैं कि केन्द्र सरकार ने कश्मीर के विकास के लिए काफी धन दिया। उसमें से ज़्यादातर धन यहां के राजनेताओं और सरकारी अफसरों की ज़ेब में चला गया। अलगाववादी नेताओं ने बेशुमार दौलत बना ली लेकिन कश्मीर को वो खाली करते रहे और यह कोशिश भी की कि आम कश्मीरी कहीं पढ़ लिख कर आगे ना बढ़ जाए। ऐसा होने पर उऩकी बात कौन सुनेगा। भारत के ख़िलाफ़ तब वो किसे भड़का सकेंगें और अपनी दुकान कैसे चला सकेंगें।
मेरी गाड़ी के ड्राइवर साहब असलम ने कहा कि मोदी सरकार को सबसे पहले यहां के नेताओं को जेल में बंद कर देना चाहिए। इन्होंने हमारा ज़्यादा नुकसान किया है। इनके घर भर रहे हैं और हमारे पास रोटी खाने का इंतज़ाम नहीं है।आए दिन के बंद से मजदूरी, रोज़गार कुछ नहीं बचा है। रोटी नहीं तो ईद मनाने का क्या करें?
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाकर उसका विशेष राज्य का दर्जा खत्म करना एक बड़ा फ़ैसला है और फिर जम्मू कश्मीर को केन्द्र शासित प्रदेश में बदलना ताकि केन्द्र सरकार के अधीन वहां काम किया जा सके, चौंकाने वाला फ़ैसला रहा।
दिल्ली से लेकर कश्मीर तक ज़्यादातर लोगों को इस बात का अंदाज़ा नहीं था कि मोदी सरकार अपने दूसरे कार्यकाल में इतनी जल्दी यह फ़ैसला कर लेगी। घाटी में जब पहली बार अमरनाथ यात्रा को बीच में ही रोक दिया गया और पर्यटकों को वापस जाने की एडवाइजरी जारी की गई तो लोगों को पहले लगा कि कोई बड़े आतंकवादी हमले की आंशका के मद्देनज़र ऐसा किया गया होगा।फिर कुछ लोगों ने समझा कि सरकार कश्मीर से अनुच्छेद 370 में से 35-ए को हटाने पर फ़ैसला कर सकती है लेकिन जब एक सुबह कश्मीर से विशेष राज्य का दर्ज़ा वापस ले लिया गया तो वहां के लोगों को लगा कि इस पर पहले उन्हें भरोसे में लेना चाहिए था।
मेरा बरसों से कश्मीर में आना जाना रहा है, घाटी में बंद होना और गुस्सा यूं तो आम बात है लेकिन इस बार नाराज़गी कुछ ज़्यादा है और उससे भी ज़्यादा घनी चुप्पी और शक का माहौल।
बहुत से लोग समझ रहे हैं कि इस फ़ैसले से भविष्य बेहतर होगा और कश्मीर आगे बढ़ेगा लेकिन स्थानीय नेता और अलगाववादी नेता इस समझ को पक्का नहीं होना देना चाहते और वे लोगों को गुमराह करने में लगे हैं।
कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाने के बाद से केन्द्रीय सशस्त्र बलों का खासा जमावड़ा है। बीएसएफ और सीआरपीएफ हर जगह तैनात है। बीएसएफ वहां सिर्फ़ सुरक्षा का इंतज़ाम ही नहीं देखती बल्कि स्थानीय लोगों की मदद के लिए भी हर वक्त तैयार रहती है। ईद मनाने के लिए बीएसएफ ने एक दिन पहले दूध और ब्रेड के दस हज़ार पैकेट श्रीनगर और दूसरे इलाके में बांटे।
केंद्र सरकार ने वहां नेशनल प्राइवेट न्यूज़ चैनलों के प्रसारण पर रोक लगा रखी है लेकिन पाकिस्तानी न्यूज चैनलों का प्रसारण नहीं रुका है और उन पर भारत के ख़िलाफ़ प्रोपेगंडा ज़ोरों पर चल रहा है और उनसे अफवाह फैलने के साथ गलत संदेश भी जाता है।
पाकिस्तान के अखबार डॉन और विदेशी न्यूज एजेंसी रॉयटर ने शनिवार को श्रीनगर में दस हजार लोगों के प्रदर्शन की अफवाह चलाई जबकि हकीकत ये है कि वहां पूरे शहर में एक साथ इतने लोग सड़क पर बाहर नहीं निकले।
धारा 144 लागू है और लोगों को सिर्फ़ ज़रूरी चीजों की खरीदारी या इलाज के लिए बाहर निकलने की इजाज़त दी गई है। सबसे बड़ा नुकसान पर्यटन उद्योग को हुआ है। पर्यटकों को वापस भेजे जाने के फ़ैसले से वहां होटलें खाली पड़े हैं और डल झील पर किनारे पर लगे हाउस बोट में सन्नाटा पसरा हुआ है और उनके मालिकों में नाराजगी का आलम है।
काम धंधा नहीं होने से खरीदारी भी उतनी नहीं हो पाई। कुर्बानी के लिए बकरों और भेड़ों की कीमत आमतौर पर 20 से 25 हज़ार होती थी, जो इस बार 10 से 12 हज़ार में मिल रहे थे लेकिन खरीदार नहीं थे।
श्रीनगर के डाउनटाउन इलाके यानी पुराने शहर के इलाके में अब भी तनाव बना हुआ है। लोगों को लगता है कि 15 अगस्त के बाद रक्षा बन्दोबस्त में कुछ छूट मिलेगी तब ही जिंदगी पटरी पर आ पाएगी।