21वीं सदी का सबसे लंबा चंद्रग्रहण आज
गुरुपूर्णिमा पर 21वीं सदी का सबसे लंबा चंद्र ग्रहण लगेगा। चंद्र ग्रहण का सूतक शुक्रवार दोपहर बाद 2.55 मिनट पर शुरू होगा। ग्रहण काल में धर्मनगरी कुरुक्षेत्र स्थित पवित्र ब्रह्मसरोवर में श्रद्धालु मोक्ष की डूबकी लगाएंगे। 104 वर्ष बाद 21वीं सदी का सबसे लंबा चंद्र ग्रहण लग रहा है, इसलिए यह बेहद खास भी है। चंद्रग्रहण को पूरे भारत में देखा जा सकता है। पूर्ण चंद्र ग्रहण के दौरान चंद्रमा पृथ्वी की छाया के मध्य हिस्से से होकर गुजरेगा। ग्रहण के दौरान चंद्रमा जब पृथ्वी की छाया से होकर गुजरता है तो वह चमकीले नारंगी रंग से लाल रंग का हो जाता है और एक दुर्लभ घटना के तहत गहरे भूरे रंग से और अधिक गहरा हो जाता है। यही कारण है कि पूर्ण चंद्र ग्रहण लगता है और उस समय इसे ब्लड मून कहा जाता है। ग्रहण का आरंभ 27 जुलाई की मध्य रात्रि में 11. 54 बजे पर होगा और इसका मोक्ष काल यानी अंत 28 जुलाई की सुबह 3.30 बजे तक होगा।
पवित्र ब्रह्मसरोवर में स्नान करने से मातृ-पितृ, चर्म रोग सहित अन्य रोगों से मुक्ति मिलती है। ब्रह्मसरोवर में सूतक लगते ही स्नान आरंभ हो जाएगी। जो 28 जुलाई शनिवार सुबह मोक्ष (ग्रहण समाप्ति) तक सुबह चार बजे तक चलेगा।ग्रहण के समय में मंत्र सिद्धि
शुक्रवार को श्री गुरुधाम संस्कृत वेद विद्या पीठम एवं अनुसंधान ट्रस्ट के आचार्य राजेश शर्मा ने बताया कि शास्त्रों के अनुसार ग्रहण काल का समय अशुभ माना गया है जिसमें मंदिरों के कपाट बंद रहते है। ग्रहण काल के समय किसी भी प्रकार की पूजा-पाठ करना वर्जित माना गया है, किन्तु ग्रहण काल के समय में ब्रह्मसरोवर में किया गया स्नान, यज्ञ और मंत्र जप का पुण्य 100 गुना अधिक प्राप्त होता है ऐसा शास्त्रों में वर्णित है। किसी भी शाबर मंत्र को सिद्ध करने के लिए ग्रहण काल का समय सबसे उपयुक्त माना गया है।खग्रास चंद्रग्रहण
आचार्य राजेश शर्मा का कहना है कि यह खग्रास चंद्रग्रहण उत्तराषाढ़ा-श्रवण नक्षत्र तथा मकर राशि में लग रहा है। इसलिए जिन लोगों का जन्म उत्तराषाढ़ा-श्रवण नक्षत्र और जन्म राशि मकर या लग्न मकर है उनके लिए ग्रहण अशुभ रहेगा। मेष, सिंह, वृश्चिक व मीन राशि वालों के लिए यह ग्रहण श्रेष्ठ, वृषभ, कर्क, कन्या और धनु राशि के लिए ग्रहण मध्यम फलदायी तथा मिथुन, तुला, मकर व कुंभ राशि वालों के लिए अशुभ रहेगा।
ग्रहण कब से कब तक
ग्रहण 27 जुलाई की मध्यरात्रि से प्रारंभ होकर 28 जुलाई को तड़के समाप्त होगा।
स्पर्श : रात्रि 11 बजकर 54 मिनट
सम्मिलन : रात्रि 1 बजे
मध्य : रात्रि 1 बजकर 52 मिनट
उन्मीलन : रात्रि 2 बजकर 44 मिनट
मोक्ष : रात्रि 3 बजकर 49 मिनट
ग्रहण का कुल पर्व काल : 3 घंटा 55 मिनट
सूतक कब प्रारंभ होगा
आचार्य राजेश शर्मा ने बताया कि ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस खग्रास चंद्रग्रहण का सूतक आषाढ़ पूर्णिमा शुक्रवार को ग्रहण प्रारंभ होने के तीन प्रहर यानी 9 घंटे पहले लग जाएगा। यानी 27 जुलाई को दोपहर 2 बजकर 55 मिनट पर लग जाएगा। सूतक लगने के बाद कुछ भी खाना-पीना वर्जित रहता है। रोगी, वृद्ध, बच्चे और गर्भवती स्त्रियां सूतक के दौरान खाना-पीना कर सकती हैं। सूतक प्रारंभ होने से पहले पके हुए भोजन, पीने के पानी, दूध, दही आदि में तुलसी पत्र या कुशा डाल दें। इससे सूतक का प्रभाव इन चीजों पर नहीं होता।
ग्रहण काल में क्या सावधानियां रखें
ग्रहणकाल में प्रकृति में कई तरह की अशुद्ध और हानिकारक किरणों का प्रभाव रहता है। इसलिए कई ऐसे कार्य हैं जिन्हें ग्रहण काल के दौरान नहीं किया जाता है।
ग्रहणकाल में सोना नहीं चाहिए। वृद्ध, रोगी, बच्चे और गर्भवती स्त्रियां जरूरत के अनुसार सो सकती हैं। वैसे यह ग्रहण मध्यरात्रि से लेकर तड़के के बीच होगा इसलिए धरती के अधिकांश देशों के लोग निद्रा में होते हैं।
ग्रहणकाल में अन्न, जल ग्रहण नहीं करना चाहिए।
ग्रहणकाल में यात्रा नहीं करना चाहिए, दुर्घटनाएं होने की आशंका रहती है।
ग्रहणकाल में स्नान न करें। ग्रहण समाप्ति के बाद स्नान करें।
ग्रहण को खुली आंखों से न देखें।
ग्रहणकाल के दौरान गुरु प्रदत्त मंत्र का जाप करते रहना चाहिए।
गर्भवती स्त्रियां क्या करें
ग्रहण का सबसे अधिक असर गर्भवती स्त्रियों पर होता है। ग्रहण काल के दौरान गर्भवती स्त्रियां घर से बाहर न निकलें। बाहर निकलना जरूरी हो तो गर्भ पर चंदन और तुलसी के पत्तों का लेप कर लें। इससे ग्रहण का प्रभाव गर्भस्थ शिशु पर नहीं होगा। ग्रहण काल के दौरान यदि खाना जरूरी हो तो सिर्फ खानपान की उन्हीं वस्तुओं का उपयोग करें जिनमें सूतक लगने से पहले तुलसी पत्र या कुशा डला हो। गर्भवती स्त्रियां ग्रहण के दौरान चाकू, छुरी, ब्लेड, कैंची जैसी काटने की किसी भी वस्तु का प्रयोग न करें। इससे गर्भ में पल रहे बच्चे के अंगों पर बुरा असर पड़ता है। सुई से सिलाई भी न करें। माना जाता है इससे बच्चे के कोई अंग जुड़ सकते हैं। ग्रहण काल के दौरान भगवान के नाम का जाप करती रहें।क्या है वैज्ञानिक मान्यता
वैज्ञानिक दृष्टि से ग्रहण के दिन हमारी पृथ्वी की परछाई चंद्रमा पर पड़ती है। इससे चंद्रमा पर अंधकार आ जाता है, अब ये चंद्रमा थोड़ा लाली में होता है जिसका कारण है कि इसे पृथ्वी की परछाई तो काला करती है लेकिन वायुमंडल से सूर्य की किरणें छण कर जाती हैं और चंद्रमा पर गिरती है। जिससे उस पर लाली आती है। चंद्र ग्रहण के दिन हम चंद्र को ग्रहण के समय डायरेक्ट भी देख सकते हैंं। ग्रहण के दौरान अल्ट्रावॉयलेट किरणें निकलती हैं जो एंजाइम सिस्टम को प्रभावित करती हैं, इस दौरान सावधानी बरतनी चाहिए। चंद्रमा, पृथ्वी के सबसे नजदीक होता है, जिससे गुरुत्वाकर्षण का सबसे अधिक प्रभाव पड़ता है।